Assembly Election in Tripura. त्रिपुरा में 60 सीटों पर विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है. फिलहाल यहां बीजेपी का राज है और माणिक साहा मुख्यमंत्री हैं. बता दें, बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में 36 सीटें जीतकर CPI(M) की 25 सालों की सत्ता को यहां से उखाड़ फेंका था. इस चुनाव में भी बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर यहां चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. इधर, पूर्वोत्तर के राज्यों में हाशिए पर पहुंची कांग्रेस भी त्रिपुरा में अपना दमखम लगाती दिख रही है. इसके लिए कांग्रेस ने त्रिगुट गठबंधन तैयार किया है जो बीजेपी के लिए रास्ते का कांटा साबित हो सकता है. कांग्रेस यहां कर्नाटक फॉर्मुला पर चुनाव लड़ेगी. ऐसे में मकसद साफ है कि सत्ता की बागड़ौर मिले, न मिले लेकिन बीजेपी को रोकना ही कांग्रेस का एकमात्र मकसद है.
उत्तर-पूर्वी राज्य त्रिपुरा के राजनीतिक घटनाक्रम की बात करें तो राज्य में बीते साल मई में उस वक्त खलबली मच गई, जब अचानक प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल दिया गया. चुनाव से ठीक पहले मौजूदा सीएम बिप्लब देव ने पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह माणिक साहा को नया मुख्यमंत्री बनाया गया. माणिक साहा पेशे से दंत चिकित्सक हैं और कुछ साल पहले ही वह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे.
आपको बता दें, भारतीय जनता पार्टी ने यही फॉर्मुला अपने गढ़ गुजरात में भी अपनाया गया था जहां चुनावों से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को हटाकर भूपेंद्रभाई पटेल को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था. त्रिपुरा में भी कुछ ऐसा ही हुआ. हालांकि बीजेपी चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी. वहीं पिछले चुनाव में त्रिपुरा में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है, ऐसे में सत्ता रिपीट करना बीजेपी के लिए चुनौती साबित होगी.
यहां आपको बता दें कि कभी ऐसा भी समय था जब त्रिपुरा में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं था, लेकिन बीते चुनावों में बीजेपी ने अपने शानदार प्रदर्शन से विरोधियों को चौंका दिया था. अब त्रिपुरा में बीजेपी का विजय रथ रोकने के लिए माकपा और कांग्रेस इस बार साथ आए हैं. वजह है कि त्रिपुरा की सत्ता पर 25 साल राज करने वाली माकपा पिछले विस चुनावों में केवल 16 सीटों पर सिमट गई थी. कांग्रेस का हाथ खाली रहा जबकि क्षेत्रीय आदिवासी संगठन और बीजेपी की एलाइंस पार्टी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के खाते में 8 सीटें आई. इस बार भी दोनों एक साथ मैदान में उतर रहे हैं.
यह भी पढ़ें: दिग्गी के बयान से पल्ला झाड़ते हुए राहुल ने राजनाथ पर किया पलटवार, कश्मीरी पंडितों को दिया आश्वासन
वहीं, इस बार त्रिपुरा में कांग्रेस ने कर्नाटक फॉर्मुला अपनाते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)- माकपा से गठबंधन किया है. पिछले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्यादा सीटें होने के बावजूद जेडीएस के मुखिया एचडी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री बनाया था. त्रिपुरा के विस चुनाव में अगर कांग्रेस और माकपा मिलकर सरकार बनाते हैं तो सीटें किसी की भी ज्यादा हो, माकपा के माणिक सरकार ही मुख्यमंत्री के दावेदार होंगे.
वहीं त्रिपुरा राज्य में नवगठित टिपरा मोथा पार्टी भी कांग्रेस और माकपा के साथ इस त्रिगुट में शामिल हो गई है. बता दें सूबे में नई नवेली टिपरा मोथा पार्टी अपने गठन के कुछ ही माह के अंदर स्वायत्त जिला परिषद चुनावों में जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. इस पार्टी के गठबंधन में शामिल होने से माकपा-कांग्रेस-टिपरा मोथा का महा गठबंधन बीजेपी के समक्ष काफी मजबूत लग रहा है. सत्ताधारी बीजेपी को हराने के लिए तीनों पार्टियां सीटों की बंटवारे की रणनीति को तैयार कर रहे हैं. इसमें ज्यादा मतभेद होने की आशंका न के बराबर है. यहां सीएम कोई भी बने लेकिन कांग्रेस का लक्ष्य आगामी चुनाव में केवल और केवल बीजेपी को हराना है.
यह भी पढ़ें: ‘हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था…’- राजस्थान की सियासत पर सटीक बैठता ये फिल्मी डायलॉग
वहीं इस त्रिगुट को कमजोर कर रही है ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) पार्टी. ममता ने पहले ही स्पष्ट कर दिया हे कि टीएमसी त्रिपुरा में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में अकेले ही लड़ेगी. ऐसे में टीएमसी इस त्रिगुट के वोटों में सेंध लगाने का काम करने वाली है, जो कांग्रेस के लिए परेशानी का काम करेगी.
यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि त्रिपुरा से पहले बंगाल के 2021 और 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वामदलों के मोर्चे का ममता बनर्जी के खिलाफ चुनावी गठबंधन हुआ था, मगर दोनों चुनावों में तृणमूल कांग्रेस इनके साझे गठबंधन पर भारी पड़ी. प्रयोग नाकाम होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी ने त्रिपुरा में वामपंथी दलों और राज्य की जनजातीय पार्टी टिपरा मोथा के साथ चुनावी तालमेल कर आगे बढ़ने का फैसला किया है.
यह भी पढ़ें: अगर मैं मंत्री बन गया तो खटका कौन करेगा- मोदी कैबिनेट में शामिल होने के सवाल पर बोले किरोड़ी मीणा
वहीं बात करें त्रिगुट के बीच सीटों के बंटवारे की तो 60 सदस्यीय वाली त्रिपुरा विधानसभा में कांग्रेस की कोशिश बराबर सीटें लेने की रहेगी, मगर शुरुआती संकेतों से साफ है कि माकपा इस गठबंधन की सीनियर पार्टनर की भूमिका में रहेगी. तीनों के बीच सीट बंटवारे पर सहमति बनने के बाद कांग्रेस-माकपा और जनजातीय दलों के मंच का संयुक्त रूप से चुनाव मैदान में उतरना बीजेपी के लिए सशक्त चुनौती मानी जा रही है. ऐसे में लंबे अर्से तक वामपंथी शासन का गढ़ रहे त्रिपुरा में सत्ताधारी भाजपा पार्टी के लिए अपनी सत्ता बचाने की राह आसान नहीं रहेगी.