This big political event happened in January 2024
This big political event happened in January 2024

वर्ष 2024 अपने ढलान पर है. देखा जाए तो ये साल राजनीतिक तौर पर काफी हलचल भरा रहा है. ऐसे में हमने सियासी कैलेंडर उठाया है और 2024 का राजनीतिक हिसाब-किताब करने बैठे हैं. साल के इस अंतिम सप्ताह में हम लेकर आए हैं साल 2024 की वो सभी राजनीतिक घटनाक्रम, जिन्होंने देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला है. लोकसभा चुनाव, तमाम प्रदेश चुनाव, बड़े सियासी उलटफेर आदि को इसमें शामिल किया गया है. जनवरी से लेकर दिसंबर माह की वे सभी घटनाएं इस लेख में मौजूद हैं जिनका किसी न किसी तरह से राजनीति या सरकार से ​सीधा संबंध रहा हो. इसके बाद आप खुद समझ जाएंगे कि मौजूदा वर्ष राजनीति के लिहाज से कैसा रहा, अच्छा या बुरा. आइए जानते हैं..

जनवरी माह के बड़े सियासी घटनाक्रम

साल 2024 की शुरूआत भी देश में बड़े सियासी घटनाक्रमों से हुई थी. जब साल के पहले महीने में बड़े सियासी उलटफेर हों, तो पूरे वर्ष तो ऐसा होना लाजमी है ही. साल के पहले महीने में तीन बड़ी ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाएं हुईं, जो निम्न हैं..

  1. अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा

साल की शुरूआत में ही लोकसभा चुनाव की हलचलें तेज हो चली थी. इसी बीच ऐतिहासिक तौर पर अयोध्या में राम लला मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम रखा गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम बड़े नेता इस पावन कार्यक्रम में पहुंचे. हालांकि कांग्रेस ने इसे राजनीतिक रंग देते हुए पीएम मोदी के निमंत्रण पर यहां जाने से इनकार कर दिया. काफी बयानबाजी हुई, पार्टी में ही कई गुट बन गए. बाद में इस मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनावों में जमकर उठाया. इससे कांग्रेस की काफी किरकिरी भी हुई.

  1. उद्धव से छिनी शिवसेना

जनवरी के मध्य में महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित करने वाला एक बड़ा घटनाक्रम हुआ, जिसने देश की राजनीति पर बड़ा प्रभाव छोड़ा. शिवसेना के दोनों प्रतिद्वंद्वी गुट के विधायकों की अयोग्यता पर फैसला हुआ. अयोग्यता का फैसला महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सुनाया, जिसका आदेश उच्चतम न्यायालय ने दिया था. स्पीकर ने उद्धव गुट की दलीलें खारिज कर दीं और शिंदे गुट को असली शिवसेना माना. यहां तक की उद्धव ठाकरे से शिवसेना का नाम, पार्टी सिंबल और तमाम संपत्ति शिंदे गुट को देने का फैसला सुनाया.

  1. बिहार में तख्ता पलट

महीने के अंत में बिहार ने एक बार फिर नीतीश कुमार को गठबंधन बदलते देखा. नीतीश कुमार ने बिहार सीएम के पद से इस्तीफा देकर बीजेपी के साथ नई सरकार बना ली. यह पहली बार नहीं था, जब नीतीश कुमार महागठबंधन को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के साथ आए. इससे पहले तीन बार जदयू ने साथी बदले थे. दिलचस्प है कि नीतीश कुमार हर बार मुख्यमंत्री रहे. भले उनकी पार्टी के विधायकों की संख्या उनके सहयोगी से कम रही हो. इसका सीधा असर आम चुनाव पर भी पड़ा.

  1. झारखंड के मुख्यमंत्री चले जेल की राह

जनवरी के अंत में ही झारखंड में बड़ी उठापटक हुई. अवैध जमीन घोटाले में फंसे हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री के पद से अपना इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के तुरंत बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस गठबंधन ने सोरेन सरकार में परिवहन मंत्री चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता चुन लिया गया. हालांकि सीएम का चुनाव अभी बाकी था.

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