Politalks.news. भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की आज 76वीं जयंती है. देशभर में उनकी जयंती पूरी आदरभाव के साथ मनाई जा रही है. राजीव गांधी को डिजिटल युग का अग्रदूत माना जाता है. अपनी युवा अवस्था में राजीव गांधी राजनीति से दूर रहते थे. मां इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी. राजीव गांधी पढ़ लिखकर पायलट बन चुके थे और अपनी जिंदगी राजनीति से दूर रहकर जी रहे थे. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को तुरंत फुरंत में प्रधानमंत्री बना दिया गया. दिल्ली सहित देशभर में दंगे भडके हुए थे. दंगों में सिख समुदाय को निशाना बनाया जा रहा था. ऐसी परिस्थितियों के बीच राजीव गांधी देश के छठे प्रधानमंत्री बने.
राजीव गांधी केवल 40 वर्ष की आयु में सबसे युवा आयु में बनने वाले देश के प्रधानमंत्री बने. साफ दिल के थे और राजनीति के जानकार भी नहीं थे. सो एक दिन एक रैली को संबोधित करते हुए कह दिया कि केंद्र से विकास के लिए एक रुपया चलता है, जो जनता तक पहुंचते-पहुंचते 10 पैसे रह जाता है. राजीव गांधी ने तो जो सच था, उसे सच्चे मन से जनता के बीच रख दिया लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी कही हुई बात कांग्रेस और उनकी सरकार के लिए ही मुसीबत बन जाएगी. विपक्ष खास तौर से बीजपी ने राजीव गांधी की इस बात को लंबे समय तक राजनीतिक मुददा बनाए रखा. भाजपा नेता राजीव गांधी सरकार पर हमला करते हुए कहते थे कि प्रधानमंत्री खुद कह रहे हैं कि देश में 90 फीसदी भ्रष्टाचार है. इसके साथ ही विपक्ष के नेता पूरे देश में भ्रष्टाचार को लेकर जनमानस तैयार करने में लग गए.
राजनीतिक जानकारों की माने तो राजीव गांधी द्वारा कही गई यह लाइन कांग्रेस के लिए बडी मुसीबत साबित हुई. इसमें कोई सन्देह नहीं कि राजीव गांधी का प्रधानमंत्री कार्यकाल निर्विवाद नहीं रहा. भोपाल गैस कांड, शाहबानो प्रकरण, राम मंदिर का ताला खुलवाने सहित बोफोर्स दलाली जैसे बडे मामलों में राजीव गांधी सरकार के निर्णयों पर सवाल उठे.
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लेकिन इन सबके बीच दूर संचार के क्षेत्र में देश को विकसित करने का श्रेय राजीव गांधी को जाता है. राजीव गांधी की नीतियों के चलते ही गांव-गांव तक एसटीडी बूथ पहुंचे, जहां से लोग दूर दराज में रह रहे अपने रिश्तेदारों से बात कर सकते थे. यह देश में किसी क्रांति से कम नहीं था. आज की पीढी को तो पता ही नहीं कि एसटीडी बूथ होते क्या थे और वो उस समय में कितना महत्व रखते थे.
इसके साथ ही राजीव गांधी के कार्यकाल में एक और महत्वपूर्ण काम हुआ, वो था सरकारी तंत्र में कम्प्यूटरीकरण. देश में कंप्यूटर आए तो एक वर्ग ने उसका जमकर विरोध किया. इस वर्ग का कहना था कि कंप्यूटर के आने से देश बर्बाद हो जाएगा लेकिन हुआ इसका उलटा. कंप्यूटर क्रांति से देश दुनिया के तरक्की करने वाले देशों की सूची में आ गया. आज देश में कंप्यूटर की मदद से जितने भी सुधार चल रहे है, उसकी नींव स्वर्गीय राजीव गांधी थे.
कहते हैं जब राजीव गांधी राजनीतिक दृष्टि से परिपक्व हो रहे थे, उस समय में दक्षिण भारत में एक मानव बंम बनी महिला द्वारा किए गए विस्फोट में राजीव गांधी का निधन हो गया. इस समाचार ने देश को हिलाकर रख दिया. तथ्य यह भी है कि राजीव गांधी की मौत के बाद सोनिया गांधी भी गहरे सदमें में आ गई थी. राहुल और प्रियंका भी उम्र में काफी छोटे थे. उसके बाद कांग्रेस बिखरती चली गई. यह दौर देश में बड़ा राजनीतिक करवट ले रहा था. कांग्रेस से अलग होकर कई नेता क्षेत्रीय दल बना रहे थे. वहीं बीजेपी को भी आगे बढ़ने का पूरा अवसर मिला.
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हालांकि सोनियां गांधी को इस सदमे से उभरने में काफी समय लगा लेकिन 1998 में पार्टी की बागड़ौर संभालने और वाजपेयी सरकार के बनने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा. यहां तक की 2003 में कांग्रेस के आम चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री पद की प्रबल दावेदार होने के बावजूद उन्होंने डॉ.मनमोहन सिंह को आगे किया. 2008 में हुए लोकसभा चुनावों में फिर कांग्रेस की जीत हुई और एक बार फिर डॉ.मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने. फिलहाल सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष का दायित्व निभा रही हैं और राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी के साथ वरिष्ठ नेताओं की फौज लडखडाती कांग्रेस को संभालने में जुटे हैं.