Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में सियासी घमासान अपने चरम पर है. इसी बीच कांग्रेस ने गहलोत सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में सचिन पायलट गुट के चूरू की सरदारशहर सीट से विधायक भंवर लाल शर्मा (Bhawar Lal Sharma) और डीग-कुम्हेर (भरतपुर) विधायक विश्वेंद्र सिंह को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है. बताया जा रहा है कि पायलट गुट में सात बार से लगातार विधायक रह चुके भंवरलाल शर्मा सबसे बुजुर्ग और सबसे अनुभवी विधायक है. यहां तक कि सरकार बनवाने और गिराने की कोशिश का भी उन्हें जबरदस्त अनुभव है. कभी बीजेपी औऱ बाद में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं, लेकिन अपनी पार्टी के लिए हमेशा सिरदर्द बनते रहे हैं. भंवर लाल शर्मा पहली बार पार्टी से निलंबित नहीं हुए हैं बल्कि निलंबित होने का भी उनका अनुभव बड़ा है.
जानकारों की मानें पूर्व मंत्री एवं विधायक भंवर लाल शर्मा ने 90 के दशक में भाजपा में और बीजेपी से बाहर रहते हुए सरकार गिराने के कई प्रयास किये लेकिन कभी सफल नहीं हुए. यह भंवरलाल शर्मा का सचिन पायलट के साथ मिलकर सरकार गिराने का उनका 5वां प्रयास है. अपने राजनीतिक जीवन में शर्मा ने कभी सरकार बचाई तो कभी गिराने का प्रयास किया. भंवर लाल शर्मा ने विधानसभा का पहला चुनाव लोकदल (Lok Dal) से 1985 में लड़ा और 1990 में वे जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते.
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उस समय जनता दल ने भैरोंसिंह शेखावत की अगुवाई वाली सरकार को समर्थन दिया. इसी दौरान भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा यात्रा के विरोध में शेखावत सरकार में शामिल जनता दल के सात मंत्रियों ने इस्तीफे दे दिए थे. इस पर शर्मा ने तत्कालीन उनियारा विधायक दिग्विजय सिंह के साथ मिलकर नई पार्टी बनाई और शेखावत सरकार को बचाया. इस पर भैरोंसिंह शेखावत ने उन्हें इंदिरा गांधी नहर परियोजना मंत्री बनाया. हालांकि शेखावत सरकार साल 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद बर्खास्त कर दी गई. इसके बाद साल 1993 के नवंबर तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन रहा. दिसंबर1993 में चुनाव हुए तो भैरोंसिंह शेखावत एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. लेकिन इस बार शेखावत ने पंडित भंवर लाल शर्मा को मंत्री नहीं बनाया. इस पर भंवर लाल बहुत नाराज हुए और उन्होंने शेखावत सरकार गिराने का मन बना लिया.
इसके बाद जब साल 1996 में भैरोंसिंह शेखावत अपने हार्ट का ऑपरेशन कराने (क्लीवलैंड) अमेरिका गए तो पीछे से भंवर लाल शर्मा ने शेखावत सरकार को गिराने की तैयारी कर ली. इसके लिए उन्होंने करीब एक दर्जन विधायकों को भी अपने साथ मिला लिया. तत्कालीन राज्यपाल स्व.बलिराम भगत से मुलाकात की. विधायक भंवर लाल शर्मा उस समय अशोक गहलोत से भी मिले थे. बताया जाता है कि उस वक्त अशोक गहलोत ने केन्द्रीय मंत्री के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए भाजपा की सरकार गिराने का कड़ा विरोध किया और कहा कि ये हॉर्स ट्रेडिंग एवं खरीद-फरोख्त के द्वारा सरकार गिराना हमारे राजस्थान में परम्परा नहीं है. उस समय मुख्यमंत्री गहलोत ने भंवर लाल को समझाते हुए कहा था कि बीमार व्यक्ति के विदेश जाने पर पीछे से सरकार गिराने का षडयंत्र भी नैतिकता के खिलाफ है.
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यहीं नहीं, उस समय अशोक गहलोत ने इसके लिए तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत से व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से मिलकर कहा था कि हम इस प्रकार के षडयंत्र में किसी भी कीमत पर भाग नहीं लेंगे. उस वक्त भी भंवरलाल शर्मा द्वारा विधायकों को पैसे भी बांटे गये थे. एक विधायक ने तो मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत को बता भी दिया था कि उन्हें 5 लाख रुपये दिये गये थे. यह बात उस वक्त मीडिया में खूब प्रचारित हुई थी. जब भैरोंसिंह शेखावत इलाज कराकर लौटे एवं राज्यपाल भगत ने उन्हें सीएम अशोक गहलोत की भूमिका से अवगत कराया तो वो भावुक हो गये. यह सभी जानते हैं कि उस समय एक बार तो शेखावत को चौखी ढ़ाणी में विधायकों की बाड़ाबांदी करने के बाद विधायकों को विधानसभा सत्र में ले जाया गया तथा विधानसभा में भी अतिरिक्त जाब्ता लगाकर अपना बहुमत साबित कर सरकार बचानी पड़ी थी.
राजस्थान के पूर्व कैबिनेट मंत्री भंवर लाल शर्मा प्रदेश के एक बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में भी जाने जाते हैं. भंवर लाल शर्मा का जन्म 17 अप्रैल 1945 को चूरू जिले के सरदारशहर में हुआ था, उनके पिता का नाम सेवगराम और मां का नाम पार्वती देवी है. भंवर लाल शर्मा राजस्थान की सियासत के कद्दावर नेता और ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं. उन्होंने सियासी सफर की शुरुआत सरदारशहर के गांव जैतसीसर से की. साल 1962 में भंवरलाल शर्मा ग्राम पंचायत जैतसीसर के सरपंच बने और 1962 से 1982 तक सरपंच रहे. इसके बाद 1982 में वे सरदारशहर पंचायत समिति के प्रधान निर्वाचित हुए.
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गौरतलब है कि विधायक पंडित भंवर लाल शर्मा के 30 साल से ज्यादा के राजनीतिक सफर के दौरान प्रदेश की सरकारों पर तीन बार बड़ा संकट आया है, जिसमें उन्होंने संकटमोचक की भूमिका निभाने का काम किया. पहली बार 1996-97 में भाजपा सरकार को अस्थिर करने के आरोप लगे. इसके बाद 1998 में कांग्रेस की सरकार बनी तब भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी, पर आज वही भंवर लाल शर्मा प्रदेश की गहलोत सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ा संकट बनकर सामने खड़े हैं. चूरू की सरदारशहर सीट से 7 बार विधायक चुने जा चुके भंवर लाल शर्मा एक बार भी गहलोत सरकार में मंत्री नहीं बन सके हैं. इसका नतीजा है कि उन्होंने गहलोत सरकार के खिलाफ बागवत का बिगुल फूंक दिया है.