बिहार में भारी बदलाव कर क्या कोई बड़ा ‘खेला’ करने की फिराक में है कांग्रेस?

विधानसभा चुनाव से पहले बिहार अध्यक्ष पद से अखिलेश सिंह की छुट्टी कर कांग्रेस ने दिखाई अपनी तेज तर्रार रणनीति, दलित समुदाय पर किया ध्यान केंद्रित, राजद से मनमुटाव की संभावना से भी इनकार नहीं..

bihar congress
bihar congress

Bihar Politics: बिहार में यह साल चुनावी साल है. हालांकि विधानसभा चुनावों में कई महीने अभी शेष हैं लेकिन राजनीतिक दलों की राजनीति तेज हो चली है. तीखी बयानबाजी तो चरम पर है ही, तेज तर्रार राजनीतिक दांव भी चले जा रहे हैं। लड़ाई महागठबंधन और एनडीए के बीच है. राजद का नेतृत्व करते हुए तेजस्वी यादव बीजेपी और सीएम नीतीश कुमार को पहले ही सीधी चुनौती पेश कर चुके हैं. अब बारी कांग्रेस की है. इस बार कांग्रेस भी बिहार में बड़ा खेला करने की जुगत में लगी हुई है. इसी क्रम में उन्होंने बिहार में शीघ्र नेतृत्व को बदलते हुए दलित राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया है और अखिलेश सिंह की छुट्टी करते हुए राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस अध्यक्ष का बड़ा दायित्व सौंपा है. कांग्रेस के इस फैसले को आगामी चुनावों की रणनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है.

राजेश कुमार औरंगाबाद के कुटंबा से विधायक हैं और दलित समुदाय से आते हैं. उनके नेतृत्व में पार्टी अब नई रणनीति के तहत काम करेगी. पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष बनाकर सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है. साथ ही दलित वोट बैंक, जो फिसलकर बसपा, सपा सहित चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के जरिए एनडीए की ओर चला गया था, उसे वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है.

यह भी पढ़ें: राम नवमी के जरिए पश्चिम बंगाल में राजनीति साधने की कोशिश में बीजेपी!

दूसरी ओर, अखिलेश सिंह को हटाने की वजह पार्टी के अंदरूनी मतभेद और प्रदेश इकाई में लगातार उठ रहे असंतोष को माना जा रहा है. अखिलेश सिंह पर यह आरोप लग रहा है कि उन्होंने सेल्फ इंटरेस्ट में पॉलिटिक्स की. उनका राज्यसभा का टर्म पूरा हो गया था, वे चाहते तो किसी अन्य कांग्रेसी को मौका दे सकते थे, लेकिन दोबारा कांग्रेस से राज्यसभा गए. बेटे आकाश को महाराजगंज से टिकट दिलवाया, फिर भी वे बीजेपी नेता जनार्दन सिंह सिग्रीवाल से हार गए। पार्टी की जगह राजद से प्रेम और लालू से नजदीकी भी अखिलेश को भारी पड़ी है. लालू प्रसाद और अखिलेश प्रसाद सिंह की निकटता काफी रही है.

पार्टी के अंदर और बाहर कई नेता ऐसा मानते हैं कि बिहार में कांग्रेस इसलिए मजबूत नहीं हो पा रही कि लालू प्रसाद नहीं चाहते. इसका उदाहरण लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला. पार्टी के अंदर और बाहर कई नेता ऐसा मानते हैं कि बिहार में कांग्रेस इसलिए मजबूत नहीं हो पा रही कि लालू प्रसाद नहीं चाहते. इसका उदाहरण लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला. पप्पू यादव ने अपनी पार्टी जाप का विलय कांग्रेस में कर दिया, लेकिन पप्पू यादव को मनचाही जगह पूर्णिया से कांग्रेस टिकट नहीं दे पाई, लालू प्रसाद ने जेडीयू से आरजेडी में लाकर बीमा भारती को पूर्णिया से आरजेडी का टिकट दे दिया। पप्पू यादव निर्दलीय लड़कर जीत गए और कांग्रेस देखती रह गई.

जमीनी स्तर पर अखिलेश सिंह की कमजोर पकड़ बताई जा रही है. यही वजह है कि लोकसभा का चुनाव लड़ने की बजाय दो बार राज्यसभा जाना सही समझा. वे अपने बेटे तक को पिछली बार भी लोकसभा चुनाव में नहीं जितवा पाए थे। इस बार भी आकाश की हार हुई. उनकी राजद प्रेमी रणनीति की वजह से ही पार्टी बिहार में कमजोर साबित हुई, जिसका खामियाजा उन्हें अब उठाना पड़ रहा है. अब देखना होगा कि बिहार कांग्रेस के नए मुखिया राजेश कुमार किस तरह से पार्टी की नैया को राजद, जदयू और बीजेपी के उफान के बीच तार कर लाते हैं.

Google search engine