गांधी परिवार के दो बड़े निर्णय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीति को चुनौती देने से कम नहीं

तीन सदस्यों की कमेटी बनाना दर्शाता है कि राजस्थान में दो पाॅवर सेंटर थे, जो हमेशा रहेंगे और किसी एक को भी कमजोर नहीं होने दिया जाएगा, इतने बड़े घटनाक्रम के बाद यूं अचानक फ़ेरबदल होगा तो क्या समझा जाएगा?

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत

Politalks.News/Rajasthan. एक के बाद एक कई राज्यों में आॅपरेशन लोटस के कारण अपनी सरकारें गंवाने वाली राष्ट्रीय कांग्रेस ने राजस्थान में जैसे-तैसे करके अपनी सरकार तो बचा ली, लेकिन अब उसे अपने कुनबे में पहले से ज्यादा बडा घमासान देखने के लिए तैयार रहना होगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आॅपरेशन लोटस को जिस तरह राजस्थान में धूल चटाई, उससे गहलोत ने साबित कर दिया कि अनुभव और राजनीतिक कौशल के बिना यह लडाई नहीं जीती जा सकती थी.

34 दिनों तक राजस्थान में सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की नाराजगी के कारण चले पाॅलिटिकल ड्रामे के बाद अब कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यानि गांघी परिवार फुल फॉर्म में नजर आ रहा है. सचिन पायलट की शिकायत पर राजस्थान प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की छुट्टी हो चुकी है, उनकी जगह अजय माकन को लाया गया है. वहीं मुख्यमंत्री गहलोत और पायलट के बीच के विवादों को समाप्त कराने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने तीन सदस्य कमेटी भी बना दी है, इसमें अहमद पटेल, अजय माकन, केसी वेणुगोपाल को शामिल किया गया है.

आखिर क्या सन्देश देना चाहता है आलाकमान?

जिस तरह से राजस्थान में शुक्रवार को गहलोत सरकार के विश्वास मत हासिल करने के तुरन्त बाद रविवार को अचानक से अविनाश पांडे को हटाया गया और तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया, तो क्या गांधी परिवार को कांग्रेस के सबसे दिग्ग्ज नेता अशोक गहलोत पर एक तरफा भरोसा नहीं रहा या मैसेज कुछ और ही देना है. कुछ जानकारों का कहना है कि अविनाश पांडे को तीन साल पूरे हो गए थे, तो भईया तीन महीने और रुक जाते, अभी इस इतने बड़े घटनाक्रम के बाद यूं अचानक फ़ेरबदल होगा तो क्या समझा जाएगा?

Patanjali ads

यह भी पढ़ें: पायलट ने निभाया तो आलाकमान ने भी पूरा किया वादा, माकन बने प्रभारी वहीं कमेटी का भी हुआ गठन

इसके साथ ही तीन सदस्यों की कमेटी बनाना दर्शाता है कि राजस्थान में दो पाॅवर सेंटर थे, जो हमेशा रहेंगे और किसी एक को भी कमजोर नहीं होने दिया जाएगा. मतलब साफ है कि हम जहां से चले थे वहीं वापस आ गए. इससे पहले भी गांधी परिवार द्वारा मुख्यमंत्री गहलोत और सचिन पायलट के बीच सामंजस्य बैठाने के लिए पूर्व प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय एक समन्वय समिति बनाने का फार्मूला पूरी तरह विफल रहा है. अब फिर से वही सब?

दरअसल गांधी परिवार खुद ही उलझा हुआ है. इस परिवार में अब तीन-तीन पावर सेंटर बन गए हैं. पहले देश के वो सीनियर नेता जो सानिया गांधी के प्रति समर्पित हैं, दूसरे वो युवा नेता जो राहुल गांधी के प्रति समर्पित हैं और वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव से सक्रिय राजनीति में आई प्रियंका गांधी के नाम पर भी नेताओं का तीसरा वर्ग तैयार हो रहा है.

कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो किसी समय कांग्रेस की हर राज्य में सरकार थी. फिर उसी के दिग्गज नेता उससे छिटकते गए और राज्यों से उसकी सरकारों की विदाई होनी शरू हो गई. समयचक्र के साथ-साथ में कांग्रेस राज्यों में होने वाले चुनाव में दूसरे नंबर और फिर तीसरे नंबर पर आना शुरू हो गई.

हालात ऐसे होते गए कि कई राज्यों में उसे अपने बनाए दिग्गज नेताओं द्वारा खड़े किए गए लोकल दलों से समझौते करने पड गए. पिछले तीस साल में कांग्रेस की की इस बिखरी राजनीति में भाजपा ने कांग्रेस को करीब करीब हर राज्य से उखाड दिया. जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बची है, वहां की सरकारें आॅपरेशन लोटस से बचने के उपायों में लगी हुई है. आप सोच रहे होंगे कि कांग्रेस के इतिहास पर क्यूं नजर डाली जा रही है तो केवल इसलिए कि गांधी परिवार के द्वारा लिया गया निर्णय राजस्थान में एक नई कहानी रचेगा और यह बहुत ही जल्दी नजर भी आएगा.

यह भी पढ़ें: ‘बीजेपी ने तय किया है राजस्थान में सरकार को गिरा कर रहेंगे और मैं भी तय कर चुका हूं कि गिरने नहीं दूंगा’- गहलोत

जानकारों की मानें तो यह निर्णय कुछ इस तरह का है जैसे मुख्यमंत्री गहलोत के 50 साल के राजनीतिक अनुभव के बाद बनी लोकप्रियता से डरे गांधी परिवार ने तय कर लिया है कि राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सारे निर्णय नहीं करने दिए जाएंगे. इसका अर्थ यह हुआ कि अब उनके निर्णयों में सीधा-सीधा हस्तक्षेप होगा. वहीं राजनीतिक संकट से उभरने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अब मंत्रीमंडल का विस्तार करना है और साथ ही विभिन्न बोर्ड, निगमों में अध्यक्ष और अन्य पदों पर राजनीतिक नियुक्ति भी करनी है.

तो अब होगा क्या, मुख्यमंत्री गहलोत अपने हिसाब से मंत्रिमंडल और राजनीतिक पदों पर बैठने वालों की सूची बनाएंगे. वहीं ऐसी ही दूसरी सूची सचिन पायलट बनाएंगे. फिर गांधी परिवार द्वारा बनाई गई कमेटी दोनों सूचियों में संतुलन बैठाएगी. ऐसे में यह भी 100% तय है कि यह सब करने के बाद दोनों पावर सेंटर ना तो संतुष्ट हो सकते हैं और ना ही उनके बीच वर्चस्व की लडाई कभी समाप्त हो सकती है.

राजनीतिक जानकार तो इसे एक तरह से कांग्रेस के आज के समय के सबसे दिग्गज नेता अशोक गहलोत के बढते राजनीतिक कद को नियंत्रित करने के लिए गांधी परिवार की ओर से उठाए गए कदमो में से एक मान रहे हैं. यहां एक बात और नजर आ रही है कि 32 दिनों तक राजस्थान में कांग्रेस की सरकार और मुख्यमत्री अशोक गहलोत के लिए संकट खडा करने वाले सचिन पायलट और उनके साथ मानेसर गए 18 विधायकों की बगावत को ना सिर्फ माफ किया गया, बल्कि उनकी शर्तों को भी माना गया.

यह भी पढ़ें: सचिन पायलट खेमे की वापसी का राज – गांधी परिवार के बड़े वफ़ादार केसी वेणुगोपाल के पास

ऐसे में अब कई सवाल भी खडे हो रहे हैं, क्या सचिन पायलट को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा? क्या वो फिर से उपमुख्यमंत्री बनेंगे? उनके खेमे के विधायकों को मंत्री पदों से नवाजा जाएगा? क्या गांधी परिवार इस तरह के एकतरफा निर्णय करके मुख्यमंत्री गहलोत पर थोप देगा तो क्या गहलोत सहर्षता से उन्हें स्वीकार कर लेंगे? सवाल बहुत हैं और सभी कांग्रेस के भविष्य से जुडे हैं. यूं समझ लीजिए कि बीजेपी तो तैयार ही बैठी है, बीजेपी के नेता कह चुके हैं, गहलोत सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी.

भले ही वर्तमान में कुछ राजनीतिक जानकारों को गांधी परिवार का यह निर्णय बिल्कुल सही लग रहा है लेकिन भविष्य में इससे बगावत के रास्ते ही खुलेंगे, जो कांग्रेस के लिए किसी भी प्रकार से एक बड़ी मुसीबत से कम नहीं होंगे. एक लाइन में समझें तो जब केवल सचिन पायलट की नाराजगी से कांग्रेस के लिए इतना बडा राजनीतिक संकट पैदा हो सकता है तो जरा सोचिए अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नाराज हो जाएं तो क्या होगा?

Leave a Reply