शिंदे और ठाकरे साथ-साथ: विसचु में तल्खी के बाद अब कौनसी खिचड़ी पक रही है?

कई सियासी आशंकाओं को जन्म दे रही ठाकरे निवास पर डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे के बीच लंबी चर्चा और रात्रिभोज की घटना, कहीं उद्धव सेना को खत्म करने की साजिश तो नहीं..

eknath shinde meets raj thackeray
eknath shinde meets raj thackeray

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद से ही महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे और प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं शिवसेना चीफ एकनाथ शिंदे के बीच नाराजगी चल रही थी. अब लगने लगा है कि दोनों के बीच तल्खी अब समाप्त होने की ओर है. राज ठाकरे के निवास पर इन दोनों राजनेताओं की मुलाकात से तो इसी के संकेत मिल रहे हैं. एकनाथ शिंदे ने राज ठाकरे के निवास पर पहुंचकर न केवल मुलाकात की, बल्कि लंबी चर्चा के बाद रात्रिभोज भी किया. इसके बाद से ही महाराष्ट्र के सियायी गलियारों में बाजार गर्म है कि शिवसेना और मनसे आगामी निकाय चुनावों में गठबंधन कर सकते हैं, जो 2022 से लंबित है. यह गठबंधन उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) को रोकने के लिए किया जाएगा.

 

हालांकि दोनों पार्टियों की ओर से अधिकारिक तौर पर स्पष्ट किया गया है कि इस मुलाकात के पीछे कोई राजनैतिक कारण नहीं है. हालांकि अनायास हुई इस भेंट का कोई कारण न हो, ऐसा होना भी मुनासिब नहीं है. इससे पहले शिंदे खेमे के नेता और उद्योग मंत्री उदय सामंत ने भी राज ठाकरे से मुलाकात की थी. शिंदे जब राज ठाकरे के निवास पर पहुंचे, तब भी सामंत उनके साथ थे. इस चर्चा में राज ठाकरे के साथ मनसे नेता संदीप देशपांडे और अभिजीत पानसे भी मौजूद रहे थे. इस बात ये पता चलता है कि कहीं न कहीं दोनों के बीच कोई तो खिचड़ी पक रही है.

निकाय चुनावों पर है नजर

इस मुलाकात पर इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दोनों नेताओं ने निकाय चुनावों पर चर्चा नहीं की हो. संभावना इस बात की भी है कि दोनों नेताओं ने निकाय चुनाव को लेकर रणनीति पर भी चर्चा की हो. यह मुलाकात इसलिए भी अहम है क्योंकि नई सरकार के गठन होने के बाद से कहा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे हाशिए पर चल रहे हैं और फडणवीस सरकार में सबकुछ सामान्य नहीं है. पिछले दिनों एकनाथ शिंदे ने अमित शाह से भी इस बावत मुलाकात की थी. तब ऐसी चर्चा होने लगी थी कि वह अपनी शिकवा-शिकायत लेकर पहुंचे हैं.

यह भी पढ़ें: आकाश आनंद की बसपा में रिएंट्री के बाद भी मायावती की रणनीति में बदलाव के क्या हैं मायने?

एक तरह से देखा जाए तो डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने इस मुलाकात के जरिए राज ठाकरे के साथ अपने मतभेदों को दूर करने की कोशिश की है क्योंकि वह अपने गृह क्षेत्र ठाणे में सीधे ‘सेना बनाम सेना’ की लड़ाई चाहते है. इस लड़ाई में मनसे निर्णायक भूमिका निभा सकती है, क्योंकि राज ठाकरे ने उस इलाके में अपनी मराठी पहचान और मराठी अस्मिता की राजनीति को प्रमुखता से खेला है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गठबंधन के सवाल पर शिंदे और ठाकरे दोनों का वेवलेंथ एक जैसा है, इसलिए कल की तारीख में गठबंधन हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.

विस चुनाव के बाद आ गई थीं दूरियां

पिछले साल हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद से सियासी गलियारों में यह चर्चा हो रही थी कि एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे के बीच रिश्तों में दूरियां आ गई थी. इसके पीछे की वजह माहिम सीट है. राज ठाकरे ने माहिम विधानसभा सीट पर अपने बेटे अमित ठाकरे को उम्मीदवार बनाया था. भारतीय जनता पार्टी ने तो इस सीट पर ठाकरे की मदद की लेकिन एकनाथ शिंदे ने वहां से अपना उम्मीदवार उतार दिया.

यह भी पढ़ें: राजस्थान भाजपा में बज रहे बर्तन! खींवसर-मिर्धा मामले पर मदन राठौड़ का बड़ा बयान

इस सीट पर हुए त्रिकोणीय मुकाबले में राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) गुट के उम्मीदवार महेश सावंत से हार गए. यहां दिलचस्प ये रहा कि उद्धव के उम्मीदवार को जहां 50,213 वोट मिले, वहीं शिंदे के उम्मीदवार को 48,897 वोट और राज ठाकरे के बेटे को 33,062 वोट मिले. यानी सिर्फ 1316 वोट के चलते उद्धव के उम्मीदवार यहां से जीत गए. राज ठाकरे को तो इस हार की कसक रही है, एकनाथ शिंदे को भी यह हार चुभने लगी थी. तभी से दोनों के बीच मन मुटाव की खबरें खुलकर सामने आने लगी थी.

बाला साहेब के वफादार सैनिक थे राज और शिंदे

जिस तरह खुद शिंदे ने राज ठाकरे के घर आकर मुलाकात की, उससे सियासी गलियारों में दोनों नेताओं के एकजुट होने यानी दोनों के बीच गठबंधन होने की सुगबुगाहट के तौर पर देखा जा रहा है. इन दोनों में एक समानता यह भी है कि दोनों ही बाला साहेब ठाकरे की बनाई शिवसेना के सैनिक हैं. एकजुट शिवसेना में दोनों साथ थे. उद्धव को सेना प्रमुख बनाने के बाद राज ठाकरे नाराज हो गए और उन्होंने पार्टी से अलग होकर मनसे का गठन किया. वहीं जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे और राज्य में महाविकास अघाड़ी की सरकार थी, तब शिंदे ने पार्टी के विधायकों को तोड़ बीजेपी से हाथ मिलाया और सीएम बन बैठे. अब दोनों के बीच मुलाकात ने सभी गिले शिकवे समाप्त कर दिए हैं. अब देखना होगा कि बाला साहेब ठाकरे के ये दोनों पूर्व सैनिक उद्धव की सेना को पूरी तरह से खत्म कर पाते भी हैं या फिर नहीं.

Google search engine