महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर हलचल उठने लगी है. एक बार फिर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक साथ आने की खबरें सियासी बाजारों में गर्म हैं. वजह है राज ठाकरे का एक बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि वह चाहेंगे कि उनके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे उनके साथ आ जाएं. राज ठाकरे के इस बयान पर तुरंत ही उद्धव ठाकरे का भी रिएक्शन आया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह महाराष्ट्र की भलाई के लिए वह छोटे-मोटे झगड़ों को छोड़कर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं. इसके बाद दोनों ठाकरे घरानों में सुलह की सुनहरी धूप बिखरने की संभावनाओं ने जोर पकड़ा है.
खास बात ये है कि महाराष्ट्र की राजनीति में ये हलचल ठीक उस वक्त शुरू हुई, जब साल के अंत में मुंबई में बीएमसी के चुनाव होने की अटकलें लगाई जा रही है. माना जा रहा है कि दोनों ठाकरे परिवार मुंबई में आगामी नगर निकाय चुनावों में भाजपा के खिलाफ़ मिलकर लड़ेंगे और अपना वोट बैंक एक बार फिर से मजबूत करेंगे.
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अगर महाराष्ट्र की राजनीति को जरा करीब से देखें और मौजूदा दौर में शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) सुप्रीमो राज ठाकरे की राजनीतिक परिस्थितियों का विश्लेषण करें तो इन दोनों नेताओं का साथ आना काफी हद तक समय की मांग भी लगती है. राज ठाकरे का अपना बेटा लोकसभा चुनाव हार चुका है और मनसे लगातार सिमटती जा रही है. मौजूदा प्रदेश विधानसभा में उनका आधार शून्य है. अगर जल्द कुछ न किया तो महाराष्ट्र की राजनीति में दखल न के बराबर रह जाएगा. राज ठाकरे केवल अपने बयानों के चलते सुर्खियों में बने हुए हैं, इसीलिए हिंदू कार्ड से अब मराठी कार्ड पर लौट रहे हैं.
वहीं, उद्धव ठाकरे की स्थिति भी कोई ज्यादा आशावादी नहीं है. उनके हाथ से हिन्दू वोटर छिटक गए हैं. कांग्रेस से हाथ मिलाने के बाद हिंदू वोट बैंक उद्धव ठाकरे पर अब कम से कम आंख मूंदकर भरोसा तो नहीं कर रहा. रही-सही कसर एकनाथ शिंदे ने पार्टी तोड़कर कर दी. कट्टर शिव सैनिक भी उद्धव का साथ छोड़ गए. यहां तक कि शिवसेना का नाम, लोगो और प्रोपर्टी तक उद्धव से छीन ली गयी. विधानसभा में शिवसेना (यूबीटी) बमुश्किल 20 तक पहुंच पायी है. लोकसभा में उनके 9 और राज्यसभा में दो सांसद मौजूद हैं. अब उद्धव की वो छवि भी नहीं रही तो कभी एकजुट शिवसेना के समय हुआ करती थी. अब अगर जल्दी कुछ नहीं किया तो पार्टी कांग्रेस की पिछलग्गू बनकर रह जाएगी.
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राज ठाकरे की छवि आज भी एक कट्टर हिन्दू और मराठी मानुष की मानी जाती है. उन्हें बाला साहेब ठाकरे की परछाई भी कहा जाए तो भी गलत नहीं है. उनकी मराठी इलाकों में एक खास पहचान है. इस छवि का उद्धव को भी फायदा हो सकता है. ऐसे में वक्त की मांग यही है कि दोनों ठाकरे परिवारों को एक समझौते के तहत ही सही, लेकिन एक साथ आ जाना चाहिए.
इधर, राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बयान को लेकर अब भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. इन दोनों ही पार्टियों ने उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने के फैसले का स्वागत किया है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ में आते हैं इससे हमें खुशी होगी. अगर कोई भी बिछड़े लोग साथ में आते हैं या उनका विवाद खत्म होता है तो अच्छी बात है. इसमें हम क्यों बुरा क्यों मानें. साथ आएं, अच्छी बात है. इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कह सकते. इस समझौते का मतलब यह हो सकता है कि कांग्रेस और एनसीपी इस बात को जानते हैं और आशावादी हैं. हालांकि ये सियासी समझौते का ऊँट किस करवट बैठता है, ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन करीब दो दशकों से अलग ठाकरे परिवार का एक साथ आना महाराष्ट्र में एक बड़ी सियासत को जन्म देने वाला साबित हो सकता है.