राजनीतिक रणनीतिकार से राजनीतिज्ञ बने प्रशांत किशोर इन दिनों काफी चर्चा में हैं. वजह उनकी जन सुराज रैली, जिसमें दो से तीन लाख लोगों के शामिल होने की बात बताई जा रही है. सत्ताधारी सरकार में साझेदार बीजेपी और जदयू ने इस रैली को फ्लॉप शो बताया है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जयसवाल ने तो प्रशांत किशोर को ‘पैसा किशोर’ तक बता दिया. वहीं राजद ने कहा कि उनकी ये रैली वोट कटवा की भी हैसियत नहीं है. इसी भी वजह पार्टियों ने बताई है. वो ये है कि पीके की जन सुराज रैली में केवल 20 से 30 हजार जन समुदाय की उपस्थिति रही. सच चाहें जो भी हो लेकिन पीके इस समय बिहार में सभी की आंख की किरकिरी बने हुए हैं.
प्रशांत ने हाल में अपनी राजनीति पार्टी जन सुराज पार्टी स्थापित की है. उनका दावा है कि इस पार्टी में 10 लाख से अधिक बिहार के युवा कार्यकर्ताओं की हैसियत से शामिल हैं. प्रशांत पिछले 5 से 6 साल से बिहार में जमकर पसीना बहा रहे हैं. बिहार की गत सुधारने का कथित तौर पर बीड़ा उठाने वाले पीके ने पिछले बिहार चुनाव में इसलिए उपस्थिति दर्ज नहीं करायी, क्योंकि उनकी तैयारी अधूरी थी. इस बार वे पूरी तरह से तैयार हैं. सीएम नीतीश कुमार के सहयोगी और जदयू के उपाध्यक्ष रह चुके पीके पार्टी की रणनीति तय कर चुके हैं इसलिए भली भांति नीतीश और जदयू को जानते हैं.
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पीके सबसे पहले साल 2013 में नरेंद्र मोदी की रणनीति कैंपेन का हिस्सा बनकर चर्चा में आए थे. उसके बाद उन्होंने किसी पार्टी से न जुड़ते हुए केवल अपना काम जारी रखा. पहले पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, फिर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल सहित कई राज्यों में कई राजनीतिक पार्टियों के साथ उन्होंने काम किया और उनके लिए चुनावी रणनीतियां या यूं कहें कि सफल चुनावी रणनीतियां तैयार की. 2015 में बिहार में हुए विस चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार के लिए काम किया. नीतीश ने उनके काम से खुश होकर उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया. हालांकि पार्टी में बढ़ने दखल और उच्च पदाधिकारियों के नाखुश रहने के चलते पीके को बाहर का रास्ता दिखाया गया. उसके बाद से ही पीके ने अपने राजनीतिक करियर को शुरू करने का फैसला लिया.
प्रशांत किशोर की जन सुराज रैली का आयोजन 11 अप्रैल को पटना के गांधी मैदान में हुआ था. पीके ने आते ही नीतीश कुमार पर ठीकरा फोड़ते हुए अपने भाषण की शुरूआत की. उन्होंने ये भी कहा कि कई राज्यों से आने वाले दो लाख लोग जाम में फंसे हुए हैं.उनकी रैली के बाद बिहार की सियासत तेज हो गयी. बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष जायसवाल ने कहा कि करोड़ों खर्च कर भीड़ जुटाने की कवायत फेल हो गयी. पांच लाख के दावे पर 20 से 30 हजार लोग गांधी मैदान पहुंचे. उन्होंने ये भी कहा कि पीके ने पैसे के दम पर राजनीति शुरू की, ऐसे में उनका नाम प्रशांत किशोर की जगह पैसा किशोर हो जाना चाहिए. इधर पार्टी प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने पीके की बिहार बदलाव रैली को ‘बदहाल रैली’ कहकर तंज कसा.
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वहीं राजद ने पीके को बीजेपी की टीम बी पार्टी करार दिया. पार्टी नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि रैली का दृश्य देखकर पता चल गया कि उनकी क्या हैसियत है. वहीं राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने तंज कसते हुए कहा, ‘खाली कुर्सियों के सहारे कुर्सी तक पहुंचने का सपना छोड़ दीजिए. बिहार के लोगों ने आपको आईना दिखा दिया है. जनता को पीआर एजेंसी और मैनेजमेंट वाला नेता नहीं चाहिए.’
हालांकि पीके की राजनीतिक पारी अभी अनुभवहीन ही कही जाएगी. इसके बावजूद उनके चुनावी कैपेंन, उनकी आक्रामक सोच और उनकी रणनीतियों को नजरअंदाज करना भी ठीक न होगा. नहीं भूलना चाहिए कि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पारी की शुरूआत भी कुछ इसी तरह से हुई थी. पीके अभी राजनीति में नए नए हैं लेकिन युवाओं में उनका बढ़ता क्रेज कहीं न कहीं बिहार में बीजेपी, जदयू, राजद एवं कांग्रेस के लिए सिरदर्द तो बनता जा रहा है.



























