बिहार में प्रेशर पॉलिटिक्स: कन्हैया कुमार ने कांग्रेस की पदयात्रा से अचानक क्यों बनाई दूरी?

बिहार की सियासत में यह घटना एक छोटा अध्याय हो सकता है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम 2025 के चुनावी समीकरण को कर सकते हैं प्रभावित

pressure politics in bihar by kanhaiya kumar
pressure politics in bihar by kanhaiya kumar

बिहार के सुपौल में कांग्रेस की ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा बड़े जोश के साथ निकाली, लेकिन इस दौरान पार्टी के प्रमुख युवा नेता कन्हैया कुमार की गैरमौजूदगी ने सियासी हलकों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया. कांग्रेस के तेजतर्रार युवा नेता के रूप में उभरे कन्हैया कुमार इस पदयात्रा के शुरुआती चरणों से ही सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं. उन्होंने बिहार में पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गांधी आश्रम से इस पदयात्रा की शुरुआत की थी. हालांकि उनकी गैरहाजिरी में एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी और कांग्रेस जिलाध्यक्ष प्रो. विमल कुमार यादव ने इस यात्रा का नेतृत्व किया लेकिन कन्हैया कुमार के न आने से कई तरह की अटकलों ने जन्म ले लिया है.

इस महत्वपूर्ण पदयात्रा से उनकी अनुपस्थिति स्वाभाविक रूप से सवाल उठाती है. अब सवाल उठने लगे कि क्या यह उनकी रणनीति का हिस्सा था या इसके पीछे पूर्व की तरह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की प्रेशर पॉलिटिक्स काम कर रही है?

लालू की प्रेशर पॉलिटिक्स: कितना सच?

बिहार के सियासी हलको में कन्हैया की अनुपस्थिति को लालू प्रसाद यादव और राजद की प्रेशर पॉलिटिक्स से जोड़कर देखा जा रहा है. बिहार की सियासत में लालू और उनके बेटे तेजस्वी यादव की मौजूदगी अब तक महागठबंधन के लिए निर्णायक रही है लेकिन कन्हैया का उभरता कद तेजस्वी के लिए चुनौती बन सकता है.

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तेजस्वी और कन्हैया दोनों ही युवा नेता हैं और दोनों की अपील बिहार के नौजवानों तक है. दोनों नेता बेरोजगारी-पलायन जैसे मुद्दों को उठाते हैं. तेजस्वी ने 2020 में नौकरी के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था और 2025 के लिए भी उनकी रणनीति इसी के इर्द-गिर्द घूम रही है. कन्हैया का इस मुद्दे पर उभरना उनके नैरेटिव को कमजोर कर सकता है. ऐसे में यह संभव है कि लालू परिवार कन्हैया की बढ़ती लोकप्रियता को अपने लिए खतरा मान रहा हो.

पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस और आरजेडी के बीच तनाव के संकेत मिले हैं. मार्च 2025 में जब कन्हैया ने पदयात्रा शुरू की, तब भी कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि लालू और तेजस्वी इसे पसंद नहीं कर रहे थे. यह भी चर्चा है कि लालू ने कांग्रेस पर दबाव डाला हो कि कन्हैया को इस यात्रा से दूर रखा जाए, ताकि महागठबंधन में सीट बंटवारे और नेतृत्व के सवाल पर उनकी स्थिति मजबूत रहे.

कन्हैया ने जानबूझकर इस पदयात्रा से दूरी

एक सवाल यह भी है कि क्या कन्हैया ने जानबूझकर इस पदयात्रा से दूरी बनाई है? क्या यह उनकी अपनी रणनीति का हिस्सा हो सकता है? क्या कन्हैया कांग्रेस के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं या किसी बड़े सियासी कदम की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि यह तर्क कमजोर पड़ता है, क्योंकि यह यात्रा कांग्रेस की बिहार में जमीन मजबूत करने की कोशिश का हिस्सा है और कन्हैया इसका नेतृत्व करने वाले सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं. भले ही उनकी गैरमौजूदगी में अन्य प्रमुख नेताओं ने इस पदयात्रा का कुशल नेतृत्व किया हो ​लेकिन कैन्हैया की गैरमौजूदगी से पार्टी को नुकसान होने की संभावना ज्यादा है. खासकर तब, जब विपक्षी दल इसे प्रचार के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

कन्हैया की गैरमौजूदगी का असर पड़ना निश्चित

कन्हैया की गैरमौजूदगी का असर कई स्तरों पर हो सकता है. पहला, यह कांग्रेस की एकता और संगठनात्मक मजबूती पर सवाल उठाता है. दूसरा, यह विपक्षी दलों, खासकर बीजेपी और जेडीयू, को मौका देता है कि वे इसे कांग्रेस की कमजोरी के रूप में पेश करें. तीसरा, अगर यह वाकई लालू की प्रेशर पॉलिटिक्स का नतीजा है, तो यह महागठबंधन के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है. 2025 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अगर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश कर रही है, तो उसे राजद के साथ रिश्तों को सावधानी से संभालना होगा.

कन्हैया कुमार की पदयात्रा से दूरी के पीछे कई कारण हो सकते हैं. हालांकि उनकी अनुपस्थिति ने निश्चित रूप से सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है और आने वाले दिनों में यह साफ हो सकता है कि यह महज एक संयोग था या इसके पीछे कोई बड़ा खेल चल रहा है. बिहार की सियासत में यह घटना एक छोटा अध्याय हो सकता है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम 2025 के चुनावी समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं.

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