आकाश जमीं पर: क्या उनकी पॉपुलैरिटी से डर गईं बसपा सुप्रीमो मायावती?

मायावती के पार्टी सुप्रीमो बनने के मायावती ने किसी अन्य नेता को अपनी अलग पहचान बनाने नहीं दी, ऐसे में आकाश आनंद के पार्टी से निकाले जाने के बाद बसपा के भविष्य पर भी मंडराने लगा है खतरा..

mayawati vs akash anand
mayawati vs akash anand

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे और कथित तौर पर भविष्य में बसपा के उत्तराधिकारी आकाश आनंद को पार्टी से निकाल दिया. एक दिन पहले ही आकाश को पार्टी के सभी पदों से हटाया गया था. मायावती ने ये कहते हुए भी सभी को चौंका दिया कि मेरे जीते-जी और आखिरी सांस तक पार्टी में मेरा कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा. मेरे लिए पार्टी और आंदोलन सबसे पहले हैं, परिवार और रिश्ते बाद में आते हैं. जब तक मैं जीवित रहूंगी, तब तक पूरी ईमानदारी से पार्टी को आगे बढ़ाती रहूंगी.

सीधे अर्थों में कहा जाए तो मायावती ने दूसरी बार भतीजे आकाश आनंद के पर कतरे हैं. इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी वह आकाश को हटा चुकी हैं. लेकिन 43 दिनाें बाद ही उन्हें वापस लाते हुए अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया था. अब सवाल है कि आखिर बीते 8 महीने में ऐसा क्या हुआ, जिसकी वजह से मायावती को अपना फैसला बदलना पड़ा. आकाश आनंद का आगे क्या भविष्य है? राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, इसके तीन कारण समझ में आए..

खुद के कद से किसी को बड़ा न होने देना 

मायावती के पार्टी सुप्रीमो बनने के बाद से बहिनजी ने अपना वर्चस्व इतना बढ़ाया कि किसी भी दूसरे नेता को अपनी अलग पहचान बनाने नहीं दी. बसपा के संस्थापक कांशीराम के बाद मायावती ने पार्टी में एकतरफा फैसले लिए. पार्टी में अपनी अलग पहचान बना चुके स्वामी प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर,नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा, नकुल दुबे, इंद्रजीत सरोज, सुनील चित्तौड़, लालजी निर्मल, केके गौतम, बृजलाल खाबरी जैसे नेताओं को एक झटके में निकाल बाहर किया. वहीं आकाश तेजी से दलित समाज को प्रभावित कर रहे थे. युवा होने के नाते आकाश अपनी अलग इमेज बना रहे थे.

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आकाश लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से बोल रहे थे, उससे भी उनकी अलग इमेज बनी है. आकाश आनंद तेज तर्रार हैं और उनकी टीम सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव है. आकाश अगर कोई विकल्प तैयार करते, तो निश्चित रूप से बसपा के कैडर को आगे ले जा सकते हैं. वह एक नई राजनीति खड़ी कर सकते हैं. बीते कुछ सालों में जिस तरह का पार्टी का प्रदर्शन रहा है, उसके लिए युवा पीढ़ी को संचालन देना एक बेहतर निर्णय साबित होता लेकिन ऐसा हो न सका.

परिवार में आंतरिक कलह 

मायावती ने 15 दिन पहले ही पार्टी के पूर्व राज्यसभा सांसद और आकाश के ससूर अशोक सिद्धार्थ और उनके करीबी नितिन सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था. यह एक्शन संगठन में गुटबाजी और अनुशासनहीनता पर लिया था. इसके बाद से ही परिवार एवं पार्टी में भी आंतरिक कलह शुरू हो गया है. वजह स्पष्ट करते हुए मायावती ने कहा, ‘आकाश को पश्चाताप करके अपनी परिपक्वता दिखानी थी, लेकिन आकाश ने जो प्रतिक्रिया दी, वह राजनीतिक मैच्योरिटी नहीं है. वो अपने ससुर के प्रभाव में स्वार्थी, अहंकारी हो गया है.’ इन बयानों के बाद स्पष्ट है कि परिवार में कलह का माहौल है. वहीं पार्टी नेताओं के बागी स्वर भी अब उंचे होने लगे हैं. आकाश के समर्थक नेताओं के जल्द ही पार्टी छोड़ने की घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है.

क्या किसी दबाव में निर्णय ले रही हैं मायावती?

सपा नेता के एक नेता ने बताया कि मायावती पिछले कुछ साल से जिस तरीके से निर्णय ले रही हैं, उससे उनके ही समर्थक हैरान हैं. मायावती को मुखर नेता माना जाता है, लेकिन वे पिछले कुछ समय से बीजेपी पर सीधे हमले करने से बचती रही हैं. इसकी तुलना में सपा-कांग्रेस पर उनका रुख हमलावर रहता है. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जैसे ही भतीजे आकाश आनंद ने भाजपा पर हमला करना शुरू किया, उन्होंने झट से उन्हें चुप करा दिया.ऐसा लगता है कि मायावती किसी के दबाव या प्रभाव में फैसले ले रही हैं, क्योंकि, आकाश तेजी से समाज को प्रभावित कर रहे थे. वे बसपा को आगे ले जा सकते थे. उन्हें हटाने का मतलब है कि वह कहीं से कंप्रोमाइज हैं. बसपा को एक्टिव नहीं करना चाहतीं.

एक अन्य नेता ने कहा कि मायावती ने बसपा को संपत्ति समझ लिया है. उन्हें डर लगता है कि ये किसी के नाम न हो जाए, इसलिए फैसले बदलती रहती हैं. मायावती सतीश मिश्रा पर आश्रित हैं. यही वजह है कि जो लोग मूवमेंट से जुडे़ हुए थे, वह किनारे लगते चले गए.

15 महीनों में दो बार बने पार्टी उत्तराधिकारी

आकाश मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं. आकाश मूल रूप से बिजनेसमैन हैं. उन्होंने लंदन से बिजनेस की पढ़ाई भी की है. 2017 में यूपी विधानसभा हारने के बाद मायावती आकाश को सामने लायी थी. इसके बाद आकाश को बीते 15 महीने में 2 बार पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित किया गया, लेकिन दोनों ही बार हटा दिया. सबसे पहले 10 दिसंबर, 2023 को उत्तराधिकारी बनाया. 7 मई, 2024 को गलतबयानी की वजह से सभी जिम्मेदारियां छीन ली गईं. 23 जून 2024 को फिर से उत्तराधिकारी बनाया और नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी भी सौंप दी, लेकिन 2 मार्च 2025 को उनसे फिर सारी जिम्मेदारियां छीन लीं और 3 मार्च को उन्हें पार्टी से ही बाहर कर दिया गया.

 फिलहाल मायावती की पार्टी राज्य में ही नहीं, बल्कि देशभर में बैकफुट पर है. कुछ राज्यों में उनके एकआत विधायक विधानसभा में बैठे हैं, जबकि 2024 के आम चुनावों में पार्टी का खाता तक नहीं खुल सकता है. ऐसे में मायावती का अगला एक्शन का इंतजार रहेगा, क्योंकि किसी अहम निर्णय के बिना बसपा का भविष्य गर्त में जाता दिख रहा है.

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