कहते हैं कि मजबूत सरकार विकास के पथ पर रहती है और मजबूर सरकार झगड़ों में उलझ कर विकास के पथ से भटक जाती है. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है इन दिनों राजस्थान (Rajasthan) में, यहां सरकार में वर्चस्व की लड़ाई का खामियाजा प्रदेश में बिगड़ी कानून व्यवस्था के रूप में देखने को मिल रहा है. मरुधरा में जनतंत्र (Public System) पर अपराधियों का गन तंत्र (Gun System) भारी पड़ रहा है. गुंडे-मवालियों के सामने खाकी लाचार और कमजोर नजर आ रही है. राजधानी में इंसाफ मांग रहे लोगों पर लाठी बरसाई जा रही है तो बहरोड़ में खुलेआम लॉक-अप में फायरिंग कर अपराधियों को छुड़ाया जा रहा है तो वहीं सीकर में सरेआम बंदूक की नोक पर बैंक को लूटा जा रहा हैं. आखिर क्या हो गया है अमन-चैन वाले प्रदेश राजस्थान को?
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच की तनातनी का संघर्ष अब सतह पर है. नौबत यहां तक आ गई है कि अब सरकार के दोनों सिपहसालार एक दूसरे के खुशियों के पल से भी कन्नी काटने लगे हैं. शनिवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सीएम सचिन पायलट के जन्मदिन के मौके पर मुख्यमंत्री पहले दिल्ली और बाद में जैसलमेर में घूम रहे थे. इस दौरान उन्हें प्रदेश में पिछले तीन दिन से बिगड़ी कानून व्यवस्था का ख्याल भी नहीं आया. इससे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जन्मदिन के मौके पर सचिन पायलट भी कुछ ऐसा ही कर चुके हैं. इससे दोनों के बीच का मनमुटाव फिर जगजाहिर हो चुका है.
पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट ने अपने जन्मदिन के अवसर पर शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की जिसमें वह नाकाम रहे और उनका यह प्रदर्शन फीका ही रहा. हालांकि पीसीसी से सभी जिलों में जनप्रतिनिधियों को जयपुर भीड़ लेकर आने का संदेश दिया गया था और उम्मीद थी 20,000 से ज्यादा भीड़ जुटाने की लेकिन जयपुर में 5000 नेता और कार्यकर्ता ही उपस्थित हुए. प्रदेश सरकार के छः मंत्रियों सहित करीब 12 विधायकों ने ही पीसीसी जाकर पायलट को बधाई दी जबकि कुछ नेताओं ने विवाद से बचते हुए बधाई देने के लिए पीसीसी के बजाय पायलट के घर को चुना. क्योंकि इस बात पर भी नजर रखी जा रही थी कि कौन-कौन से बड़े नेता पायलट को बधाई देने पहुँचते हैं. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की खींचतान का सबसे बड़ा उदाहरण तो यही है, जनप्रतिनिधियों की सबसे बडी फांस की किसकी बोलें और किसकी नहीं. यही कारण रहा कि मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार पायलट के जन्मदिन की रौनक फिकी रही आखिर वर्तमान नेतृत्व से पंगा कौन ले?
सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम व पीसीसी चीफ सचिन पायलट के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई अब शायद अंतिम दौर में पहुंच चुकी है. मुख्यमंत्री गहलोत जहां दिल्ली दरबार में प्रदेश में नया पीसीसी चीफ और एक डिप्टी सीएम और बनाने की अर्जी लगा चुके हैं तो वही गाहे-बगाहे पायलट खेमा भी सरकार की मुखालफत का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा है. बहराल हम बात कर रहे हैं कि दोनों नेताओं की आपसी खिंचतान का सीधा खामियाजा प्रदेश की जनता को उठाना पड़ रहा है. वरना मुख्यमंत्री जी को इस बिगड़ी कानून व्यवस्था को संभालने के बजाय इस तरह पायलट के जन्मदिन पर राजधानी छोड़कर जाने की नौबत नहीं आती. जबकि दिल्ली या जैसलमेर में कोई ऐसा अतिआवश्यक काम भी नहीं था की जिसे टाला नहीं जा सकता था.
प्रदेश के मुखिया अशोक गहलोत के पास गृह विभाग भी है ऐसे में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी भी गहलोत के ही कंधों पर है लेकिन पिछले 3 महीने और ख़ासकर गतसप्ताह में प्रदेश में हुए अपराध और उनके तरीकों पर नजर डाले तो पुलिस लाचार और नाकाम नजर आती है. मुख्यमंत्री गहलोत जहां राजधानी में पुलिस अधिकारियों को कानून व्यवस्था का पाठ पढ़ा रहे थे तो उसी वक़्त अलवर में बदमाश उसकी बखिया उधेड़ने का प्लान बना रहे थे. प्रदेश के इतिहास में शायद पहली बार हुई बहरोड़ थाने में फायरिंग कर अपराधी को छुड़ाने की घटना के बाद गहलोत के कंट्रोल वाली पुलिस की कलई खुल गई है. मुख्यमंत्री के चहेते डीजीपी अपराध पर अंकुश लगाने में अब तक विफल साबित हुए हैं. ऐसे में राजनीतिक स्थिरता का फायदा अब अपराधी उठा रहे हैं और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
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अचानक बदले समीकरण
सोनिया गांधी के अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में सत्ता के केंद्र बदल गए. सोनिया के विश्वस्त माने जाने वाले अशोक गहलोत को मानो अभय दान मिल गया हो. राहुल गांधी जहां युवा नेतृत्व की बात करते थे तो ऐसे में सचिन पायलट आत्मविश्वास के साथ रेस में खुद को बरकरार रखे हुए थे. इसी कारण गहलोत खेमे में थोड़ा भय भी था कि कहीं किसी दिन नेतृत्व परिवर्तन का फरमान न आ जाये. लेकिन सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद तो गहलोत खेमा अधिक पॉवरफुल हो गया है. इसीलिए पहले जो नेता और कार्यकर्ता सचिन पायलट का खुल कर समर्थन करते थे यहां तक कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाये जाने की खुलकर पैरवी करते थे उनमें से कुछ एक को छोड़कर ज्यादातर उनके जन्मदिन के मौके पर भी कन्नी काटते नजर आये.