Devendra fadanvis
Devendra fadanvis

हवा के रुख के विपरीत महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति की जीत के शिल्पीकार देवेंद्र फडणवीस इस दिनों पूरे शबाब पर हैं. देशभर में न केवल उनकी नेतृत्व कुशलता, अपितु उनके बढ़ते कद की चर्चा हो रही है. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हर तरह के जत्न के बीच एकबारगी ऐसा लगने लगा था कि भारतीय जनता पार्टी अपने चिरपरिचित अंदाज में दो में से एक को न चुनते हुए तीसरे को मौका दे सकती है. यानि न शिंदे और न फडणवीस, कोई तीसरा हो सकता था महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री, लेकिन सभी दबावों के बीच फडणवीस ने तीसरी बार प्रदेश के सीएम पद की शपथ लेकर दिखाया कि अब उनकी गिनती देश के अंग्रिम पंक्ति में बैठे नेताओं में होने लगी है.

 

वैसे देखा जाए तो आरएसएस और बीजेपी ने महाराष्ट्र में पहले ही फॉर्मूला तय किया था कि अगर महायुति की सरकार बनी, तो मुख्यमंत्री पार्टी का ही होगा. किसी वजह से अगर सरकार नहीं बन सकी, तो देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा. ये बात यहां भी गौर करने लायक है कि पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल के बाद अब जो संभावित नेता उनका स्थान लेगा, उसमें शिवराज सिंह का नाम अव्वल नंबर पर आ रहा है. बताया ये भी जा रहा है कि शिंदे और अजित पवार को पहले से पता था कि महायुति की सरकार बनने पर बीजेपी का ही मुख्यमंत्री बनेगा, क्योंकि बीजेपी ने इसी रणनीति के तहत 149 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बहुमत मिलने के बाद जब एकनाथ शिंदे दिल्ली पहुंचे तो भी अमित शाह ने उनसे सीएम पद के बारे में कोई चर्चा नहीं की.

अब सवाल ये है कि अगर सब कुछ तय था, तो महाराष्ट्र में सरकार बनने में इतनी देरी क्यों हुई. इसका जवाब है एकनाथ शिंदे, जिन्होंने सब कुछ पता होने के बावजूद केवल और केवल फेस सेविंग के लिए ये सब कुछ किया. हालांकि उनकी मंशा मुख्यमंत्री पद ही थी लेकिन ऐसा होते नहीं दिख रहा था. गांव चले जाना, बिमारी जैसे नाटक जरूर हुए लेकिन इसका फायदा न मिल पाया. फिर भी शिंदे जनता में मैसेज देना चाहते हैं कि वे एक जुझारू नेता हैं और आखिरी दम तक कोशिश करेंगे. यही वजह है कि शिंदे सार्वजनिक मंच पर यही कहते हुए दिखे कि वे सरकार बनाने में रोड़ा नहीं बनने वाले और मोदी-शाह की बात मानेंगे.

शिंद ये जानते थे कि वे अगर पहले दिन ही सरेंडर कर देंगे तो जनता के बीच गलत मैसेज जाएगा. ऐसा लगेगा कि उद्धव वाली शिवसेना से शिंदे वाली शिवसेना कमजोर है. यह तो सर्वविदित है कि अगर शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार वाली एनसीपी अकेले चुनाव में उतरती तो महाविकास अघाड़ी को सीधी टक्कर देने मुश्किल होता. शिवसेना बनाम शिवसेना और एनसीपी बनाम एनसीपी में मुकाबला सहानुभूति के चलते उद्धव ठाकरे और शरद पवार की तरफ झुक सकता था. ऐसे में दोनों ही सेफ गेम खेलते हुए बीजेपी के ‘कमल’ में ओट ली, जिसका फायदा भी उन्हें मिला.

हालांकि शिंदे को उप मुख्यमंत्री पद के लिए मनाने का श्रेय भी देवेंद्र फडणवीस को ही जाता है. इसके लिए उन्होंने एक आदर्श उदाहरण भी खुद ही सेट किया है. 2014 से 2019 तक भी फडणवीस ही राज्य के मुख्यमंत्री थे. शिंदे के साथ आने के बाद उन्होंने सरकार में डिप्टी सीएम पद स्वीकार किया. अब बाकी शिंदे की थी तो उन्होंने इसके लिए भी शिंदे को मनाया.

इस बात में भी कोई शक नहीं है कि देवेंद्र फडणवीस आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से भी काफी मधुर संबंध रखते हैं. नागपुर में ही आरएसएस का मुख्यालय है और यहां फडणवीस का आना जाना है. चुनाव के तुरंत बाद भी वे भागवत से मिलने नागपुर पहुंचे थे. इसका फायदा भी उन्हें अब मिला है. मुख्यमंत्री पद न मिलता तो बीजेपी में सर्वेसर्वा का पद मिलना अपने आप में काफी बड़ी बात है. ये भी उस वक्त, जब फडणवीस ने राष्ट्रीय राजनीति में कोई चुनाव न लड़ा हो.

 खैर जो भी हो, अब स्थिति स्पष्ट है, पूर्ण कालीन शांति है. प्रचंत बहुमत के चलते आगामी पांच सालों तक राजनीतिक खलबली या संकट के आसार दूर दूर तक कहीं नहीं ​हैं. ऐसे में त्रिगुटीय ये सरकार किस शांति के साथ आगे बढ़ेगी और जनता के लिए कितनी कल्याणकारी सिद्ध होगी, ये देखने वाली बात होगी.

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