sharad pawar
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महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव महाविकास अघाड़ी के लिए किसी दुस्वपन से कम नहीं रहा. पूरा की पूरा विपक्ष 50 की संख्या तक भी नहीं पहुंच सका. महायुति के 234 सीटों के मुकाबले एमवीए के पास कुल 46 सीटें रहीं. उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने 20, कांग्रेस के खाते में 16 और शरद पवार समर्थित एनसीपी केवल 10 सीटें जीत पाने में कामयाब हो पायी. महाविकास अघाड़ी के निर्माता और अपने भतीजे अजित पवार से मिले धोखे के बाद टूटी फूटी पार्टी के बावजूद आम चुनाव में धमाकेदार प्रदर्शन को देखते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक नजरें अगर किसी पर गढ़ी थी, तो वे थे शरद पवार. गठबंधन में सबसे कम सीटों पर समझौता करने वाली उनकी पार्टी को केवल 10 सीटों पर जीत मिले, जिससे राज्यसभा सदस्य शरद पवार के नेतृत्व पर अब सवाल उठ रहे हैं.

84 सावन पार कर चुके शरद पवार मराठा राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा हैं. राजीव गांधी की हत्या के बाद शरद पवार कांग्रेस की ओर से पार्टी सर्वेसर्वा के साथ साथ प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार थे. हालांकि सोनिया गांधी के चलते ये हो न सका. पार्टी से निकाले जाने के बाद भी शरद ने हार नहीं मानी और अपनी पार्टी बना कांग्रेस को मुंह तोड़ जवाब दिया. इसी एनसीपी के साथ कांग्रेस ने 20 साल गठबंधन में राज्य की सत्ता पर राज किया. यही वजह है कि राजनीति में उनके दिमाग का लोहा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह तक सभी मानते हैं. कांग्रेस की एक दशक तक मनमोहन सरकार में शरद केंद्रीय मंत्री के साथ बीसीसीआई अध्यक्ष भी रहे और उनकी फेंकी गुगली का न राज्य की और न ही केंद्र की राजनीति में किसी के पास कोई जवाब था.

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अब लगने लगा है कि शरद पवार के रिटायर होने का वक्त आ चुका है. वैसे भी बारामती से चुनावी सभा को संबोधित करते हुए शरद पवार कह चुके हैं कि अब ये उनका अंतिम चुनाव होगा. वैसे राजनीतिक संन्यास का फैसला शरद पिछले साल ही कर चुके थे, जिसके बाद उन्होंने पार्टी का वारिस अजित पवार को न बनाकर सुप्रिया सुले को बनाया. यही बात अजित को नागवार गुजरी और उन्होंने पार्टी तोड़ बीजेपी-शिवसेना से हाथ मिला लिया. अपनी टूटी और बिखरी पार्टी को लेकर शरद पवार ने आम चुनाव में जो गदर मचाया, उससे एकबारगी तो अजित पवार सहित पूरा सत्ताधारी पक्ष हिल गया था. हालांकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से जो पलटवार हुआ, उसने शरद पवार को तोड़कर रख दिया है.

हालांकि पार्टी में शरद पवार का दर्जा आज भी एक ‘दादा’ का रहा है. इसके बावजूद अब सुप्रिया सुले या किसी अन्य को आगे लाना ही होगा. जिस तरह का एनसीपी एसपी का प्रदर्शन रहा है, उसके मुताबिक अब पार्टी को नए सिरे से व्यवस्थित करना आवश्यक रहेगा. आगामी 5 सालों में पार्टी को मजबूत महायुति के समक्ष मुकाबले के लिए तैयार करना होगा. सुप्रिया सुले के अलावा रोहित पवार भी एक अन्य विकल्प हैं, जिनके हाथों में एनसीपी एसपी की कमान सौंपी जा सकती है.

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वैसे पिछले 5 सालों में महाराष्ट्र की राजनीति कई परिदृश्यों में बदल चुकी है. धुर विरोधी शिवसेना और एनसीपी बीजेपी के साथ आ गयी हैं. वहीं उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के साथ एक छत के नीचे है. ठाकरे परिवार की प्रतिष्ठा भी अब पहले जैसी नहीं रही लेकिन शरद पवार को पूरा महाराष्ट्र आज भी अपना ही परिवार मानता है, खासतौर पर बारामती. इसके बावजूद शरद पवार को अपना वारिस खड़ा करना होगा ताकि वो अपने यंग अनुभव से पार्टी की दशा और दिशा दोनों तय कर सके. अब देखना ये होगा कि शरद पवार एक बार फिर पार्टी को खड़ा करने के लिए खुद मैदान में उतरते हैं या फिर सुप्रिया या रोहित पवार में से किसी को पार्टी की बागड़ौर सौपी जाती है.

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