उद्धव ठाकरे की ‘शिवसेना’ का अस्तित्व खत्म करने जा रहे शिंदे अब मोदी मंत्रिमंडल में भी चाहते हैं हिस्सेदारी

एकनाथ शिंदे चाहते हैं कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिलने का फायदा पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में सीधे तौर पर मिले, आगामी विस और लोकसभा चुनाव के जरिए महाराष्ट्र की राजनीति में असल पहचान बनाना चाहता है शिंदे गुट, आगामी चुनावों में शिंदे गुट का सीधा मुकाबला उद्धव ठाकरे की टीम से, बीजेपी भी रख रही फूंक फूंक कर अपने सियासी कदम

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Eknath Shinde is Seeking a Share in the Modi Cabinet: उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट के बीच ‘शिवसेना’ के नाम और ‘तीर कमान’ के निशान की जंग सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना रुख स्पष्ट करते हुए चुनाव आयोग के फैसले को बरकरार रखा है. यानी अब शिवसेना की आधिकारिक मान्यता और बाला साहब ठाकरे का शिवसेना का निशान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समर्थित गुट की विरासत बन चुका है. हालांकि इस पर सुनवाई चल रही है लेकिन यही निर्णय अब फाइनल माना जा रहा है. शिवसेना की वेबसाइट को भी हटा दिया गया है और उनके विधानसभा कार्यालय पर भी शिंदे गुट ने कब्जा जमा लिया है. अब शिंदे गुट की अगली कोशिश उद्धव ठाकरे की शिवसेना के अस्तित्व को महाराष्ट्र से समाप्त करने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी पर भी है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना के प्रमुख एकनाथ शिंदे चाहते हैं कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिलने का फायदा पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में सीधे तौर पर मिले. केंद्रीय मंत्रिमंडल में शिवसेना को मिलने वाली जगह से न सिर्फ महाराष्ट्र के सियासी समीकरण साधे जाएंगे, बल्कि उद्धव ठाकरे को कमजोर करने में यह दांव भी शिंदे गुट को मुफीद लग रहा है. शिंदे गुट को आधिकारिक रूप से शिवसेना का तमगा और चुनाव चिंह मिलने के बाद अब शिंदे गुट पूरी तरह से उद्धव ठाकरे युग को भी खत्म करने की आजमाइश भी कर रहा है.

चूंकि लोकसभा में मौजूद शिवसेना के 15 में से शिंदे गुट के सांसदों की संख्या 8 है. ऐसे में शिवसेना पार्टी का तमगा मिलने के बाद एकनाथ शिंदे पर दवाब तो पड़ ही रहा है. जैसे जैसे चुनाव पास आ रहे हैं, शिंदे गुट पर दवाब बड़ता जाएगा. दबाव इस बात का है कि 2024 के विधानसभा चुनावों में शिंदे गुट को मिली शिवसेना की बागड़ोर के बाद सीधा मुकाबला उद्धव ठाकरे की पार्टी से होने वाला है. वर्तमान विधानसभा में उद्धव ठाकरे केवल 15 सदस्यों के साथ कमजोर जरूर लग रहे हैं लेकिन जब चुनाव होगा, तब उद्धव की असली ताकत का अंदाजा शिंदे गुट को चुनाव से पहले ही पता चल जाएगा.

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यह बात बीजेपी भी अच्छी तरह से जानती है. यही वजह है कि बीजेपी महाराष्ट्र के सभी सियासी समीकरणों को हर नजरिए से देख कर हर कदम फूंक कर आगे रख रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र में जितना सजग होकर एकनाथ शिंदे और उनकी पार्टी से जुड़े नेता चल रहे हैं, उससे अधिक बीजेपी एक एक कदम सोच समझ कर रख रही है. महाराष्ट्र में जिस तरीके से बड़ा सियासी उलटफेर हुआ है, उससे न सिर्फ सियासत के गलियारों में हलचल मची थी, बल्कि महाराष्ट्र की जनता भी एकबारगी सन्न रह गई थी. जब अगला चुनाव होगा तो उसमें अगर शिंदे गुट अच्छा प्रदर्शन करता है तो बीजेपी को फिर से उनकी जरूरत पड़ेगी. इस बात को ध्यान में रखते हुए शिंदे गुट के सांसदों की केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलना तय है.

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महाराष्ट्र में विधानसभा और लोकसभा चुनाव दोनों एक ही साल में है. हालांकि लोकसभा चुनाव पहले होना तय है. ऐसे में अगर शिंदे गुट को जनता के बीच अपनी पहचान बनाकर महाराष्ट्र में अपने आपको फिर से स्थापित करके सत्ता में वापसी करती है, तो केंद्रीय नेतृत्व में शिवसेना के चेहरों का दिखना जरूरी है. बीजेपी भी चाहती है कि अब महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे युग का समापन हो, ताकि बीजेपी सूबे की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन सके. ऐसे में उन्हें कुछ साल शिंदे गुट को मजबूत करना होगा. ऐसे में मोदी सरकार के अगले मंत्रिमंडल विस्तार में एक या दो मंत्री शिंदे गुट से बनते हुए दिखाई देंगे.

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इन सभी संभावनों के बीच शिंदे गुट ने शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है. इसमें पार्टी के सभी विधायकों के साथ साथ सांसद एवं सभी राष्ट्रीय स्तर के नेता भी उपस्थित होंगे. यहां उद्धव ठाकरे गुट के कुछ विधायक और सांसदों की एंट्री भी संभावित मानी जा रही है. हालांकि शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कुछ नेता ऐसे भी हैं जिनकी आस्था उद्धव और बाला साहेब ठाकरे के परिवार के प्रति बनी हुई है. यही उद्धव की सबसे बड़ी ताकत है. शिंदे गुट नहीं चाहेगा कि कोई भी उद्धव परिवार में आस्था रखने वाले नेता को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हो. ऐसे में जो शिंदे गुट में आस्था रखेगा, उसे ही पद मिलेगा. ऐसे में अन्य का उद्धव ठाकरे के साथ जाना निश्चित है.

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ऐसा होते देना बीजेपी भी नहीं चाहेगी. ऐसे में बीजेपी को विधानसभा चुनाव से पहले लोकसभा चुनाव शिंदे गुट के साथ मिलकर लड़ना पड़ेगा. इसके बाद विधानसभा चुनाव भी शिंदे गुट के साथ ही लड़ना करीब करीब तय है. ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद अगर बीजेपी सत्ता में आती है, तो वहां शिंदे गुट के सांसदों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करना बीजेपी की मजबूरी बन जाएगी. ऐसे में शिंदे गुट का प्रदर्शन विधानसभा चुनावों में चाहें जैसा भी हो, पार्टी के बीच के चेहरों का केंद्रीय मंत्रिमंडल में दिखना निश्चित है.

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