Sharad Pawar Advised Uddhav Thackeray: चुनाव आयोग के द्वारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना के तौर पर आधिकारिक मान्यता देने से उद्धव ठाकरे काफी चिंतित हैं. ईसी ने शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट को नाम के साथ तीर कमान वाले शिवसेना के निशान को भी उन्हें सौंप दिया है. इसके बाद उद्धव ठाकरे चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाने की तैयार कर रहे हैं. इसी बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने उद्धव को सलाह देते हुए फैसले को स्वीकार करने और नया पार्टी सिंबल लेने की सलाह दी है. शरद पवार ने कहा कि ‘तीर-कमान’ का चिह्न खोने से उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि जनता उसके नए चिह्न को स्वीकार कर लेगी. इस दौरान पवार ने याद दिलाया कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 1978 में एक नया चिह्न चुना था, लेकिन उससे पार्टी को नुकसान नहीं उठाना पड़ा था. वहीं राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम एवं एनसीपी नेता अजित पवार ने आयोग के इस फैसले को अप्रत्याशित बताते हुए कहा है कि आखिर चुनाव आयोग ने फैसला सुनाने में जल्दबाजी क्यों की?
दरअसल, शिवसेना और तीर कमान के निशान पर शिंदे-ठाकरे गुट के दावे की सुनवाई हाईकोर्ट में पहले से ही चल रही है. इस मामले पर 21 फरवरी को मेरिट के हिसाब से सुनवाई की जानी है. इससे पहले ही चुनाव आयोग ने ठाकरे गुट को झटका देते हुए शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता देते हुए तीर कमान वाला निशान शिंदे गुट को चुनाव में इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी. इस पर सीएम शिंदे ने इसे सत्य एवं लोकतंत्र की जीत बताया, वहीं उद्धव गुट ने आयोग को बीजेपी का एजेंट बताते हुए कोर्ट जाने की बात कही है.
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महाराष्ट्र की सियासत में आए इस सियासी भूचाल पर राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले एनसीपी चीफ शरद पवार ने एकनाथ शिंदे वाले गुट को वास्तविक शिवसेना के रूप में मान्यता देने और उसे मूल चिह्न ‘तीर-कमान’ आवंटित करने के निर्वाचन आयोग (ईसी) के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जब कोई फैसला आ जाता है, तो चर्चा नहीं करनी चाहिए. पवार ने ठाकरे गुट को सलाह देते हुए कहा कि उद्धव इसे स्वीकार करें, नया चिह्न लें. पुराना चिह्न खोने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
इंदिरा गांधी के सामने भी आई थी स्थिति
एनसीपी नेता शरद पवार ने इंदिरा गांधी के समय में कांग्रेस में टूट की घटना का जिक्र करते हुए बताया कि, ”मुझे याद है, इंदिरा गांधी को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा था. उस समय दो बैलों की जोड़ी कांग्रेस का चिह्न हुआ करता था. बाद में ये उनसे छिन गया और ‘हाथ’ चुनाव चिह्न मिला, जिसे लोगों ने स्वीकार किया. इसी तरह महाराष्ट्र के लोग नया सिंबल (उद्धव गुट का) स्वीकार करेंगे.
इधर, इस मुद्दे पर शिंदे गुट को अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा का भी साथ मिला है. एक इंटरव्यू में राणा ने कहा कि शिंदे जमीनी स्तर पर बाल ठाकरे के साथ रहे हैं और वे ही पूरी तरह से शिवसेना के निशान और उसकी विरासत के हकदार हैं. गौरतलब है कि शिवसेना द्वारा बिना चुनाव कराए पदाधिकारी नियुक्त करने को लेकर चुनाव आयोग ने पार्टी के मौजूदा संविधान को अलोकतांत्रिक बताया और शिंदे गुट को वास्तविक शिवसेना की मान्यता दे दी. इसी के साथ महाराष्ट्र में शिवसेना से अब उद्धव गुट की दावेदारी खत्म मानी जा रही है.
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फैसला लागू हुआ तो उद्धव के हाथों से फिसलेगी करोड़ों की संपत्ति
कानून के मुताबिक चुनाव आयोग का फैसला अगर लागू होता है तो शिवसेना की सभी संपत्तियों से उद्धव ठाकरे को हाथ धोना पड़ेगा. बताया जा रहा है कि 2019-20 में शिवसेना के पास 148.46 करोड़ की FD और 186 करोड़ की अचल संपत्ति है. वहीं महाराष्ट्र में 82 जगहों पर शिवसेना के दफ्तर हैं. यह भी बताया जा रहा है कि बाला साहब ने अपनी वसीयत में मुंबई में स्थित मातोश्री के तीन मंजिला भवन की पहली मंजिल जयदेव के नाम और दूसरी तथा तीसरी मंजिल उद्धव के नाम कर दी, जबकि ग्राउंड फ्लोर को शिवसेना के लिए रखा था. अगर सच में ऐसा है तो उद्धव ठाकरे के पास से मातोश्री इमारत के ग्राउंड फ्लोर का मालिकाना हक भी चला जाएगा. ऐसे में उद्धव ठाकरे इस मामले को हाईकोर्ट में घसीटने का पूरा मानस बना चुके हैं.