Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra. भारत जोड़ो यात्रा, जिसे कांग्रेस अपना कर्तव्य पथ बता रही है, कांग्रेस के नेताओं का तो पता नहीं, लेकिन कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को बहुत कुछ सीखा रही है. जैसे जैसे यात्रा का कारवां बढ़ता जा रहा है, राहुल गांधी का व्यक्तित्व, आवाज, चाल ढाल और जनता को देखने का तरीका बदलता जा रहा है. अब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भाषणों में केवल मोदी मोदी की गूंज नहीं सुनाई देती, बल्कि उनके तरकश में कई तीर जमा हो गए हैं, जिनका तोड़ शायद बीजेपी के पास भी फिलहाल तो नहीं है. यही वजह है कि गुजरात विधानसभा चुनावों में भी एक आध नेताओं को छोड़ दें तो राहुल गांधी पर किसी ने न तो बयानबाजी की और न ही कोई अंगुली उठाई. इसकी वजह रही कि राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमजोर नब्ज को जनता के बीच जाकर पहचाना और उन्हीं के हथियार से उन्हीं को चोट पहुंचाने की तैयारी शुरू कर दी है.
आमतौर पर कई लोगों को कहते सुना जाता है कि कांग्रेस तो समुदाय विशेष की पार्टी है. हालांकि ऐसा इसलिए है क्योंकि आजादी की लड़ाई जातिवाद के आधार पर नहीं बल्कि सभी जातियों के लोगों ने मिलकर लड़ी थी. जबकि बीजेपी का आधार हमेशा हिन्दुत्व रहा है. कुछ अपवाद जरूर हैं लेकिन उन्हें हिन्दुओं की पार्टी ही कहा गया. आरएसएस से निकल कर लोग बीजेपी में गए और सामाजिक से राजनीतिक हो गए. बता दें कि आरएसएस को पूरी तरह से हिन्दुत्व से जोड़ा जाता है और उस पर कोई दाग भी नहीं है.
भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) के जरिए सीधे जनता के बीच इस तरह पहली बार उतरे राहुल गांधी ने जमीं से जुड़े लोगों का नजरिया पहचाना और इस बात को महसूस किया कि केवल इसी मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी युवाओं के मन से उतरती जा रही है. यही वजह है कि राहुल गांधी ने बीजेपी के मजबूत और तेज हथियार से ही उनपर वार करने की ठान ली है. मध्यप्रदेश और अब राजस्थान से होकर गुजर रही भारत जोड़ो यात्रा के पोस्टर इस बात की साफ तौर पर गवाही दे रहे हैं. ऐसा ही कुछ अब राहुल गांधी के बयानों में भी स्पष्ट तौर पर दिख रहा है.
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फिलहाल राहुल गांधी की यह ऐतिहासिक भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में जारी है. इससे पहले भी जहां जहां से यात्रा गुजरी वहां हर राज्य में और अब राजस्थान में राहुल गांधी लगातार राष्ट्रीय स्वयंसेवी संघ और बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहते नजर आ रहे हैं कि संघ ने माता सीता को हमेशा दूर रखा है. राहुल गांधी ने कहा कि संघ वाले जय श्री राम बोलते हैं न कि जय सियाराम, क्योंकि वो सीता की पूजा नहीं करते. आरएसएस ने हमेशा सीता को दूर रखा क्योंकि वहां कोई सीता ही नहीं है.
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यही नहीं जय सियाराम और जय श्री राम का तर्क पूर्ण विश्लेषण देते हुए राहुल गांधी लगातार यह बता रहे हैं कि जय श्री राम का मतलब है कि यहां सिर्फ श्री राम है जबकि ‘जय सियाराम’ का अर्थ है- सीता जी और राम जी एक ही हैं, यानी सीता के बिना रामजी हैं ही नहीं. राहुल गांधी कहते हैं कि हमने हम सबने बचपन से सुना है ‘जय सियाराम’ लेकिन आरएसएस वालों ने इसे केवल ‘श्री राम’ कर दिया है. क्योंकि आरएसएस में कोई सीता यानी कोई महिला नहीं है इसलिए उन्होंने ‘जय सियाराम’ को ‘केवल ‘श्री राम’ कर दिया. इस तरह आरएसएस ने सीताजी का अपमान किया है. राहुल ने आगे कहा कि लेकिन अब आरएसएस और बीजेपी को ‘जय सियाराम’ कहना पड़ेगा. राहुल ने आरएसएस और बीजेपी को सलाह देते हुए यह भी कहा कि जय सियाराम के साथ साथ हे राम का भी जाप किया करें और सीताजी का अपमान न करें.
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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिन्दुत्व के इस वार को अधिक धारदार बनाते हुए ये भी कहा कि आरएसएस के लोग भाजपा में गए लेकिन उन्होंने भगवान राम के जीवन के तरीके को कभी नहीं अपनाया. भगवान राम ने कभी किसी के साथ अन्याय नहीं किया, कभी किसी से नफरत नहीं की, बल्कि राम ने एकता, भाईचारे और प्रेम करना सिखाया, समाज को एकजुट करने का सन्देश दिया. इसी सिद्धांत पर चलकर कांग्रेस ने किसानों, व्यापारियों और मजदूरों की हमेशा मदद की है, लेकिन बीजेपी ने क्या किया? बीजेपी ने लोगों को संप्रायिकता के नाम पर तोड़ने का काम किया. बता दें कि राहुल गांधी के इस तर्क का शायद बीजेपी के पास कोई जवाब नहीं है. हालांकि कुछ नेता जरूर राहुल गांधी के इन बयानों से खुश नहीं हैं लेकिन बड़े नेता इससे बचने की कोशिश कर रहे हैं.
वहीं भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश से पहले लगाए गए बैनर और पोस्टर्स पर जिस तरह राहुल गांधी को आध्यात्म से जुड़ा हुआ दिखाया जा रहा है, उससे भी बीजेपी की नींदे उड़ी हुई हैं. राहुल गांधी अपने इसी सॉफ्ट हिन्दुत्व से एक बड़े वर्ग समुदाय को साधने की कोशिश कर रहे हैं. ‘धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो’ नारे के साथ राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अब धर्म पथ और पूजा पथ (Bharat Jodo Yatra Pooja path) पर भी चल पड़ी है. अपने इस बदलाव के चलते संभावना है कि एक बड़े वर्ग की अनदेखी और तुष्टिकरण के कांग्रेस पार्टी पर लगने वालों आरोपों को राहुल गांधी कुछ हद तक खत्म करते दिखाई दे रहे हैं.
इसके साथ ही अब राहुल गांधी का विरोधियों पर बयान देने और मीडिया की खिंचाई करने का अंदाज भी बदल गया है. राहुल गांधी की वेशभूषा और बोलने के अंदाज पर भी इन दिनों गौर किया जाए तो वो भी बदले हुए दिखाई देंगे. लंबी सफेद दाड़ी और माथे पर बंधा गमछा देखकर एकबारगी तो विश्वास नहीं हुआ कि ये सच में राहुल गांधी हैं.
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कन्याकुमारी से कश्मीर तक जाने वाली यह भारत जोड़ा यात्रा राहुल गांधी को काफी कुछ सीखा रही है. भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी कभी तो ढाप बजाते नजर आते हैं तो कभी ढोल बचाते हुए तो कभी सांस्कृतिक नृत्य करते हुए. ये उनका भारतीय संस्कृति में रचने बसने का अवसर राहुल गांधी के लोकल अनुभव को बढ़ाने का काम कर रहा है. जिस तरह इस यात्रा के माध्यम से उन्हें जिले, शहर और कस्बे के लोगों से मिलने का मौका मिल रहा है, गांव की जमीं से जुड़ने का अवसर मिल रहा है, उसी तरह उनके भाषणों में ठहराव भी देखने को मिल रहा है. इसी ठहराव के साथ जिस तरह राहुल गांधी बिना किसी धूम धड़ाके के अपने कर्तव्य पथ पर चल रहे हैं, या यूं कहें कि गांधी परिवार की प्रथा का निर्वाह कर रहे हैं, उससे लग रहा है कि अब राहुल गांधी पूरी तरह से तैयार हैं.
वहीं इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि 12 राज्यों से होकर निकलकर 180 से अधिक दिनों की 3570 किमी. लंबी पद यात्रा निकालना हर किसी के बस की बात नहीं है. राहुल गांधी ने ये निर्णय ऐसे ही जोश में नहीं ले लिया. इतना साहस गांधी परिवार की अगली पीढ़ी के बस की बात नहीं होगी. कांग्रेस के अन्य नेता केवल सांकेतिक पद यात्रा कर रहे हैं या ज्यादा से ज्यादा राहुल गांधी के साथ कुछ किमी. तक कदमताल कर रहे हैं, जबकि राहुल गांधी मीलों की यात्रा कर जनता के बीच कांग्रेस की धूमिल हो रही छवि को फिर से ताजा कर रहे हैं. इसके साथ ही राहुल गांधी का यह बदला हुआ व्यक्तित्वP और सॉफ्ट हिन्दुत्व का हथियार बीजेपी पर भारी पड़ता नजर आ रहा है.