Rajasthan Politics Crisis. साल 2018 में राजस्थान में बनी गहलोत सरकार के गठन के बाद से ही लगातार थोड़े-थोड़े समय की शांति के बाद की कांग्रेस की राजनीति में सियासी उबाल मचता रहा है. यही वजह रही कि 2020 में तो पूरी गहलोत सरकार को करीब डेढ़ महीने तक होटलों में बन्द रहना पड़ा. खास बात यह कि हर बार वजह एक ही रही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच चली आ रही कुर्सी की अदावत. 2020 के बाद दो साल तक थोड़े थोड़े समयांतराल में हिचकोले खा रही प्रदेश कांग्रेस की सियासत में अचानक बीते गुरुवार यानी 24 नवम्बर को उबाल उस वक़्त आ गया जब NDTV को 2 दिन पहले दिया इंटरव्यू सामने आया.
पिछले कुछ समय से पायलट खेमे के नेताओं की बयानबाजी के बीच आलाकमान के संभावित निर्णय को आशंका से बौखलाए सीएम गहलोत ने NDTV को दिए इंटरव्यू में अपनी नेचर के विपरीत जो सियासी लावा बाहर निकाला, उसने साल 2020 की यादें ताजा कर दी जब पायलट अपनी मांगों को लेकर नाराजगी दिखाते हुए अपने 19 विधायकों के साथ मानेसर जाकर बैठ गए थे. उस समय भी सीएम गहलोत ने पायलट को नकारा, निकम्मा और बिना रगड़ाई वाला नेता सहित न जाने क्या-क्या कह दिया था, बहराल इस बार एक कदम आगे बढ़ते हुए सीएम गहलोत ने पायलट को न सिर्फ धोखेबाज कहा बल्कि 6 से ज्यादा बार ‘गद्दार’ बोलकर अपमानित किया. यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस दौरान जहां सीएम गहलोत की कुर्सी जाने की बौखलाहट साफ नजर आई और इसके चलते उन्होंने सीधे सीधे आलाकमान को धमकी दे दी कि आप सचिन पायलट को कमान सौंप देंगे तो पार्टी को क्या क्या हो सकता है, तो वहीं दूसरी तरफ इस बयान के बाद सचिन पायलट ने एक बार फिर अपनी सियासी परिपक्वता का परिचय देते हुए बहुत कम और सम्मानजनक शब्दों में यह कहकर जवाब दिया कि इतने अनुभवी व्यक्ति को इस तरह की भाषा शोभा नहीं देती और वो भी तब जब राहुल गांधी की यात्रा देशभर में छाप छोड़ते हुए राजस्थान में प्रवेश करने वाली है.
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लेकिन यहां सवाल ये खड़ा होता है की आखिर ऐसा क्या हुआ कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इतने बौखला गए कि शब्दों की मर्यादा को ताक में रखकर सीधे आलाकमान को ही धमकी तक दे दी? दरसअल, पिछले कुछ समय से सचिन पायलट के समर्थक विधायक सहित अन्य पार्टी नेताओं ने राहुल गांधी की यात्रा के राजस्थान में प्रवेश से पहले की प्रदेश में सत्ता की कमान पायलट को सौंपने को लेकर अपनी आवाज तेज कर दी थी, क्योंकि पायलट समर्थक नेता मानते हैं कि कम से कम एक साल काम करने का समय पायलट को मिले वरना यहां भी पंजाब के जैसे हालात हो जाएंगे. यही नहीं इन सभी नेताओं ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व आलाकमान पर पायलट को साइड लाइन करने का आरोप लगाने के साथ यह दावा भी किया कि अभी भी अगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो राजस्थान में किसी भी हाल में कांग्रेस की सरकार रिपीट नहीं हो सकती. वहीं दूसरी तरफ 23 और 24 नवम्बर को सचिन पायलट मध्यप्रदेश जाकर भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए थे. यही नहीं इस दौरान 24 नवम्बर को सुबह यात्रा शुरू होने से पहले पायलट ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ लंबी गुफ़्तुगू भी की और यात्रा में साथ चलते हुए भी राहुल के साथ लंबी चर्चा की, जिसके फ़ोटो और वीडियो तुरन्त ही सोशल मीडिया पर वायरल हुए और पायलट के पक्ष में एक बड़ा माहौल बनता नजर आने लगा. ऐसे में पहले से तैयारी करके बैठे सियासत के सबसे बड़े जादूगर ने अपना सियासी बाण छोड़ दिया.
यहां आपको बता दें कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सियासी जादूगर के साथ राजनीतिक दूरदर्शिता के लिए भी जाना जाता है. सीएम गहलोत को पता था कि सचिन पायलट मध्यप्रदेश जाकर राहुल और प्रियंका गांधी से अपने हक़ के लिए बात करेंगे वहीं पायलट को कमान सौंपने की मांग यात्रा के साथ साथ दिल्ली के AICC के दफ्तर तक तेजी से उठ रही थी, ऐसे में सीएम गहलोत ने एडवांस स्टेप उठाते हुए 22 नवम्बर को ही अपने पाली दौरे के दौरान राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल NDTV को धमाकेदार इंटरव्यू दिया और सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री गहलोत ने इसमें गद्दार और धोखेबाज जैसे शब्दों का इस्तेमाल ही इस लिए किया कि इससे खुद सचिन पायलट या पायलट खेमा भड़क जाए और राहुल गांधी की यात्रा से पहले कुछ ऐसा स्टेप उठा ले कि हमेशा हमेशा के लिए इस सियासी कांटे से मुक्ति मिल जाए. यही नहीं सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री गहलोत ने इस इंटरव्यू के रिलीज टाइम को लेकर चैनल के सामने शर्त रख दी थी, यही कारण है कि यह इंटरव्यू तो क्या इसके बारे में पहली गॉशिप भी 24 नवम्बर को पहली बार सामने आई और दिन में एक बजे के करीब इंटरव्यू का टीजर आया जबकि 3 बजे NDTV पर यह इंटरव्यू टेलीकास्ट किया गया, जिसके बाद प्रदेश ही नहीं देशभर में सियासी चर्चा का विषय बन गया.
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अब जैसा कि हमने खबर के शुरू में आपको बताया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस ‘गद्दार’ वाले शब्द बाण ने 2020 के ‘नकारा-निकम्मा’ वाले बाणों की याद ताजा कर दी है. तो यहां आपको बता दें, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हर बयान में राजनीति छिपी होती है बिना राजनीति के वो एक लफ्ज सार्वजनिक रूप से नहीं बोलते हैं. 2020 के सियासी संकट के समय भी सीएम गहलोत ने इन शब्दों का प्रयोग इसी आशय से किया था कि सचिन पायलट जो कि पहले से अपने हक़ की लड़ाई लड़ते नाराज होकर अपने 19 विधायकों के साथ मानेसर में बैठे थे, उनको इतना ज्यादा अपमानित और जलील कर दिया जाए कि वो वापस लौटकर आएं ही नहीं और ऐसा कोई कदम भी उठा लें कि आलाकमान खुद पायलट को पार्टी से निकाल दे. लेकिन इसके विपरीत सचिन पायलट ने गजब की परिपक्वता का परिचय देते हुए लंबे समय तक सियासी चुप्पी साधे रखी, बहुत लंबे अंतराल के बाद इन शब्दों पर जवाब देते हुए पायलट ने सिर्फ यही कहा कि अशोक गहलोत मेरे पिता तुल्य हैं और उनकी बातों का मैं बुरा नहीं मानता. यही नहीं इस बार जब सीएम गहलोत ने पायलट को गद्दार कहा तब भी पायलट ने सिर्फ इतना कहकर गहलोत के सियासी दांव को उल्टा पटक दिया कि इतने अनुभवी व्यक्ति को इस तरह की भाषा शोभा नहीं देती.
ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह गद्दार वाला सियासी दांव न सिर्फ पूरी तरह उल्टा पड़ गया बल्कि दूसरी तरफ इस तरह की बयानबाजी से आलाकमान सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की नजर में सीएम गहलोत की छवि को भारी नुकसान पहुंचा है. पार्टी के आला नेताओं ने सीएम गहलोत की भाषा पर आश्चर्य व्यक्त किया. हालांकि सीएम गहलोत की छवि को पहला बड़ा झटका तो बीती 25 सितंबर को तभी लग गया था जब उनके समर्थक विधायकों ने न सिर्फ आलाकमान के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर अपने सामुहिक इस्तीफे स्पीकर सीपी जोशी को सौंप दिए थे बल्कि खुलेआम आलाकमान के खिलाफ तक बयानबाजी की थी. सीएम गहलोत लाख सफाई दें कि इस सियासी कांड के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी जबकि सियासत के सुधिजन भलीभांति समझते हैं कि सीएम गहलोत की मर्जी और आदेश के बिना इतना बड़ा कांड करने की हिम्मत मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी या धर्मेंद्र राठौड़ में नहीं है. खैर, हाल ही में गद्दार वाली सियासत ने कम से कम पायलट की ताजपोशी के इंतजार को कम से कम भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान से गुजर जाने तक शायद बढ़ा दिया है.