Politalks.News/Budget2022. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व वाली भाजपा (BJP) की केन्द्र सरकार ने बीते मंगलवार को अपना नौवां बजट पेश किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitaraman) ने 91 मिनट का बजट भाषण पढ़ा लेकिन उन्होंने 2022 तक पूरे होने वाले प्रधानमंत्री के किसी लक्ष्य के बारे में कुछ नहीं कहा. इसके उलट उन्होंने अमृत काल की चर्चा की और 2047 तक नया व आधुनिक भारत बनाने की बात कही. ऐसे में अब सियासी गलियारों में चर्चा है कि नए और आधुनिक भारत के निर्माण की प्रतीक्षा और लंबी हो गई है. क्या इसके लिए अब आजादी के स्वर्णिम वर्ष यानी 2047 तक इंतजार करना होगा?
पहले ऐसा लग रहा था कि नया व आधुनिक भारत का यह काम आजादी के अमृत वर्ष यानी 75 साल पूरे होने तक ही पूरा हो जाएगा. इसकी वजह भी थी, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के सारे लक्ष्य 2022 यानी आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष तक ही तय किए थे. लेकिन अब जब देश अमृत महोत्सव के वर्ष में है और खुद पीएम मोदी द्वारा घोषित किसी लक्ष्य के बारे में इस बजट में कोई चर्चा नहीं की गई है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि मोदी सरकार खुद अपने हिसाब से गोल पोस्ट बदलती रही है वो भी चुनावी राज्यों को देखते हुए. हर साल का बजट पिछले साल से अलग रहा है. इनमें कोई तारतम्य नहीं होता है और न कोई दिशा मिलती दिखाई देती है. हर साल की राजनीतिक या चुनावी जरूरतों के हिसाब से कुछ बातों का समावेश जरूर बजट में होता है और बाकी तो रूटीन की बातें ही होती हैं.
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पिछले साल के बजट की नहीं दी जानकारी, अगले 25 साल का दिखाया सब्ज बाग!
सियासी चर्चा है कि, मोदी सरकार के आने से पहले यानी 2014 से पहले जब वित्त मंत्री बजट पेश करते थे तो पिछले बजट में की गई घोषणाओं के बारे में जानकारी देते थे कि उनमें से कितनी घोषणाएं पूरी हुईं, कितनी अधूरी रह गईं और कितनी घोषणाओं पर अमल ही नहीं हो पाया. लेकिन साल 2014 के बाद अब बजट भाषण में पिछले बजट की घोषणाओं के बारे में नहीं बताया जाता है और अगले वित्त वर्ष के बजट में अगले पांच-सात साल का लक्ष्य घोषित कर दिया जाता है. लेकिन इस बार तो वित्त मंत्री ने अगले 25 साल यानी आजादी के सौ वर्ष पूरे होने तक का लक्ष्य घोषित कर दिया है. सबसे हैरानी की बात यह है कि इसे ‘अमृत काल’ कहा जा रहा है.
2022 के लिए किए गए वादों का क्या हुआ?
2014 के बाद बजट भाषण से सरकार की किसी तरह की जिम्मेदारी तय करना मुश्किल हो गई है. सरकार समयबद्ध योजना की घोषणा करती है और समय निकल जाता है तो उसके बारे में कुछ नहीं कहती है. जैसे आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष यानी 2022 में देश के हर नागरिक को अपनी छत उपलब्ध कराने की घोषणा की गई थी. लेकिन बजट में इसका कोई जिक्र नहीं किया गया. चार करोड़ से ज्यादा आवास बनने थे, उनका क्या हुआ, किसी को पता नहीं है लेकिन 80 लाख और आवास बनाने की घोषणा कर दी गई. इस साल किसानों की आय दोगुनी होनी थी लेकिन उस बारे में कुछ नहीं कहा गया. इस साल हर घर को बिजली उपलब्ध करानी थी लेकिन लाखों घर अब भी बिना बिजली के हैं और बजट में इसका जिक्र नहीं है. इन सबके उलट अमृत महोत्सव वर्ष के लिए पांच-छह साल पहले जो लक्ष्य तय किए गए थे वे पूरे नहीं हुए और उनकी चर्चा नहीं हुई तो 25 साल बाद स्वर्णिम वर्ष की योजनाओं और लक्ष्यों पर कैसे भरोसा किया जा सकता है?
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विनिवेश और निजीकरण से जुटाने थे 1 लाख 75 हजार करोड़, मात्र 15 हजार करोड़ किए हासिल
मोदी सरकार हर साल ‘बजट’ में गोल पोस्ट बदल देती है और पिछली बातों को भूल कर नई बात का राग अलापा जाता है. इस साल 2022 में सब कुछ डिजिटल कर देने और पूंजीगत खर्च बढ़ाने का नया राग है. पिछले साल 2021 में विनिवेश और निजीकरण का राग था. उससे पहले किसानों और गरीबों को मुफ्त बांटने का हल्ला था. आपको याद दिला दें कि, ‘पिछले साल विनिवेश और निजीकरण के हल्ले में एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए विनिवेश से हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन मजे की बात यह है कि, ‘अभी तक 15 हजार करोड़ रुपए भी नहीं हासिल हुए हैं‘. तो सरकार ने इसकी बात ही नहीं की. अब सरकार ने संशोधित अनुमान में इसे घटा कर 78 हजार करोड़ कर दिया गया है और अगले साल का लक्ष्य 65 हजार करोड़ रुपए का है.
न किसान सम्मान निधि बढ़ ना मनरोगा की राशि!
इसी प्रकार मोदी सरकार के इस नवें बजट में न किसानों की सम्मान निधि बढ़ाई गई है, न मुफ्त अनाज बांटने की योजना की चर्चा हुई है और न मनरेगा की राशि बढ़ाई गई है. पूंजीगत खर्च बढ़ाने का भी जो हल्ला है वह सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी है. केंद्र ने राज्यों को दिए जाने वाले अनुदान को ब्याज मुक्त कर्ज में बदल दिया है और उस मद में एक लाख करोड़ रुपए का प्रावधान करके उसे पूंजीगत खर्च में जोड़ दिया है.
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वास्तविक विकास दर है 1.9 फीसदी!
अगले साल का बजट 39.4 लाख करोड़ रुपए का है, जो चालू वित्त वर्ष के संशोधित बजट अनुमान 37.7 लाख करोड़ रुपए से करीब साढ़े चार फीसदी ज्यादा है. लेकिन अगर एक वित्त वर्ष का मुद्रास्फीति का औसत आंकड़ा पांच फीसदी रखें और तब हिसाब लगाएं तो पता चलेगा कि बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, बल्कि आधा फीसदी की कमी हो गई. इसी तरह 9.2 फीसदी विकास दर का हल्ला आर्थिक सर्वेक्षण के समय से मचा हुई है लेकिन पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी की विकास दर माइनस 7.3 फीसदी थी. इसका मतलब है कि वास्तविक विकास दर 1.9 फीसदी ही रहने वाली है. यह बढ़ोतरी भी सरकारी खर्च की वजह से हो रही है.
चालू वित्त वर्ष में उपभोक्ता खर्च 2018 के स्तर से भी कम
आपको बता दें कि, भारत की जीडीपी में उपभोक्ता खर्च का हिस्सा 56 फीसदी होता है. उपभोक्ता खर्च का मतलब है कि नागरिक अपनी निजी क्षमता से अपनी जरूरतों पर जो खर्च करते हैं. चालू वित्त वर्ष में वह उपभोक्ता खर्च 2018 के स्तर से भी कम है. इससे आम लोगों के जीवन स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है.
84 फीसदी लोगों की घटी आय
सरकार के अनुसार भारत में रोजगार की हालत सुधरी है और महामारी के समय बेरोजगारी दर जिस ऊंचाई पर पहुंच गई थी उससे कम हुई है. इसके बावजूद सर्वविदित तथ्य यह है कि 84 फीसदी लोगों की आय घटी है. रोजगार के आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी से ज्यादा लोगों की आय महामारी से पहले की आय के 80 फीसदी के आसपास है. यानी अगर महामारी से पहले किसी की आय सौ रुपए थी तो आज उसकी आय औसतन 80 रुपए है. इसके बावजूद बजट में लोगों की आय बढ़ाने का कोई उपाय नहीं किया गया है.
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मनरेगा का नहीं बढ़ाया आवंटन
सबसे आश्चर्य की बात इस बजट में यह भी देखी गई कि महामारी के पिछले दो साल में लोगों के जीवन का आधार बनी रोजगार की योजना मनरेगा का आवंटन नहीं बढ़ाया गया है. वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मनरेगा का आवंटन 73 हजार करोड़ रुपए का है, जबकि चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान में इस योजना पर 98 हजार करोड़ रुपए खर्च होना है और महामारी के पहले वर्ष यानी 2020-21 में एक लाख 11 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुआ था.