Politalks.News/ModiSarkar. पांच राज्यों चुनावी घमासान के बीच सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से एक बड़ी खबर आ रही है. सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक (Hindus minority) का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई चल रही है. बीते सोमवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार (Union government) से अपना रुख साफ न करने पर कड़ी नाराजगी जताई है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर सात हजार पांच सौ (7500) रुपये का जुर्माना भी लगाया. दरअसल, इस मामले में केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए 2 और सप्ताह का समय मांगा था. कोर्ट द्वारा वक्त दिए जाने के बावजूद केंद्र ने जवाब दाखिल नहीं किया. सियासी जानकारों का कहना है कि, ‘हिंदू हितों के लिए प्रतिबद्धता जताने वाली पार्टी की सरकार इस मामले में जवाब क्यों नहीं दे रही है? क्या भाजपा (BJP) को लग रहा है कि राज्यवार धार्मिक अल्पसंख्यकों का मामला तय होने से कोई नुकसान होगा?’
सभी हाईकोर्ट के मामले किए गए ट्रांसफर
आपको बता दें कि भाजपा के नेता अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में इस मामले में याचिका दी थी. पंकज डेका ने ऐसी ही एक याचिका गोवाहाटी हाईकोर्ट में दी थी और डेलिना खोंगडुप ने मेघालय हाई कोर्ट में भी ऐसी ही एक याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट से याचिका अपने पास मंगा ली है. क्योंकि इन याचिकाओं में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग अधिनियम 2004 के प्रावधानों को भी चुनौती दी गई है.
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केन्द्र द्वारा जवाब नहीं देने पर कोर्ट ने लगाई सुप्रीम फटकार और जुर्माना दोनों
पिछली सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोविड संकट के समय सुप्रीम कोर्ट सहित अन्य संस्थानों पर पड़ रहे असर को देखते हुए जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था. कोर्ट ने आखिरी मोहलत की ताकीद करते हुए केंद्र सरकार की ये अपील मंजूर की थी. लेकिन बीते सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान भी सरकार के पास जवाब नहीं था, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए न सिर्फ फटकार लगाई और बल्कि रुपए 7500/- का जुर्माना भी लगाया.
इन 9 राज्यों में उठी हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई इस याचिका में कहा गया है कि, ‘देश के 9 राज्य ऐसे हैं, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें इसका (अल्पसंख्यक होने का) लाभ नहीं मिल पा रहा. याचिका में लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर राज्यों का जिक्र किया गया है, जहां पर हिंदू अल्पसंख्यक हैं. इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने और संविधान की ओर से अल्पसंख्यकों को दी गई सुविधाओं का लाभ उठाने की अनुमति देने का अनुरोध किया गया है. इसमें अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 को चुनौती दी गई है.
मामले में मोदी सरकार की रहस्यमयी चुप्पी!
पूरे मसले में केंद्र की (मोदी) भाजपा सरकार ने इस पर रहस्यमयी चुप्पी साधी हुई है. सुप्रीम कोर्ट के कई बार नोटिस जारी करने के बावजूद केंद्र सरकार इस पर जवाब नहीं दे रही है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि, हिंदू हितों के लिए प्रतिबद्धता जताने वाली पार्टी की सरकार इस मामले में जवाब क्यों नहीं दे रही है? क्या भाजपा को लग रहा है कि राज्यवार धार्मिक अल्पसंख्यकों का मामला तय होने से कोई नुकसान होगा?
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सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने आखिरी बार कोर्ट से मांगा समय
केंद्र सरकार ने मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने का विरोध भी नहीं किया है लेकिन उसके बाद केंद्र अपना पक्ष नहीं रख रहा है. ऐसा कम ही हुआ होगा कि सुप्रीम कोर्ट नाराज होकर केंद्र के ऊपर जुर्माना लगा दे. इस मामले में ऐसा हुआ. जब सरकार ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया तो सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के ऊपर साढ़े सात हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया, अब सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने आखिरी बार कोर्ट से समय मांगा है.
कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक बताने से धबरा रही है सरकार!
सियासी जानकारों का कहना है कि, इस मामले में केंद्र की हिचक का कारण समझना मुश्किल है. कहीं ऐसा तो नहीं है कि भाजपा अपने ही देश के कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक बताने से घबरा रही है या उसे यह लग रहा है कि अगर कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यकों वाले अधिकार मिलने लगे तो बाकी राज्यों में मुसलमान, सिख, ईसाई आदि के अधिकारों का मामला उठेगा?