Politalks.News/Congress. देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा का चुनावी घमासान (Assembly Election 2022) चरम पर है. लेकिन इन चुनावों में जो अजब बात देखने को मिल रही है कि वह यह कि भाजपा (BJP) से नेताओं का मोह खत्म हो रहा है, यानी उल्टी गंगा बह रही है. बीजेपी के उत्थानी साल 2014 के बाद से देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (Congress) से नेताओं का पलायन होता रहा है, लेकिन अब लगभग 7 साल बाद सियासी चर्चा यह है कि दलबदल करके कांग्रेस से भाजपा में गए नेताओं को सबक मिलने लगा है. उत्तराखंड (Uttarakhand Assembly Election) और मणिपुर (Manipur Assembly election) और गोवा (Goa Assembly Election 2022) सहित अन्य राज्यों में इसके उदाहरण देखने को मिल रहे हैं और ऐसा भी माना जा रहा है कि जल्द ही इसका असर देश भर में दिखाई दे.
मणिपुर और उत्तराखंड में दलबदलने वालों के हाल!
आपको याद दिला दें कि मणिपुर में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 28 विधायक जीते थे, जिनमें से 16 ने पाला बदल कर भाजपा का दामन थाम था. इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनमें से सिर्फ 10 को टिकट दी है. वहीं उत्तराखंड में धामी सरकार में मंत्री रहे हरक सिंह रावत को पार्टी से ही निकाल दिया गया. 2017 में रावत ने कांग्रेस से बगावत कर भाजपा का थामा था दामन. अब रो धोकर लौटे रावत को कांग्रेस ने शरण तो दे दी लेकिन टिकट नहीं दिया गया है. सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस से आए नेताओं को भाजपा द्वारा सबक सिखाने का काम शुरु हो गया है.
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मणिपुर में 16 में से 6 विधायकों के भाजपा ने काटे टिकट
मणिपुर में कांग्रेस से आए 16 विधायकों में से भाजपा ने 6 विधायकों के टिकट काट दिए हैं. जिन छह दिग्गजों की टिकट कट गई है वे बेचैन हो रहे हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस भी उनको भाव नहीं दे रही है. आपको याद दिला दें कि, जिन राज्यों में कांग्रेस के दलबदल से सरकार बनी और दलबदल करने वाले विधायकों की सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें तो इन विधायकों का ख्याल रखा गया लेकिन बाकी जगहों पर ऐसा नहीं हुआ.
…भाजपा में जाने से पहले सौ बार सोचेंगे!
बताया जा रहा है कि भाजपा के द्वारा टिकट काटे जाने के संकेत मिलने पर गोवा में भी कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में जाने वाले नेता घर वापसी कर रहे हैं. उनको पहले ही लग गया था कि भाजपा टिकट नहीं देगी इसलिए उन्होंने कांग्रेस या तृणमूल कांग्रेस का रुख किया. मणिपुर से यह बात साबित भी हुई है. ऐसा माना जा रहा है जिन राज्यों में अब भी कांग्रेस का आधार मजबूत है वहां दलबदल करने वाले विधायकों और नेताओं की घर वापसी शुरू हो गई है. कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि, ‘मणिपुर, उत्तराखंड और गोवा के घटनाक्रम से कांग्रेस नेताओं को सबक मिला है और वे भाजपा में जाने से पहले सौ बार सोचेंगे’.
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हरक सिंह को भाजपा ने सिखाया सबक!
उत्तराखंड में भी कांग्रेस के कई नेताओं ने ‘घर वापसी’ की है. हालांकि पार्टी के एक पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय इसी बीच भाजपा में गए और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का परिवार अब भी भाजपा में ही है लेकिन हरक सिंह रावत ने घर वापसी कर ली. हरक सिंह रावत ने पिछले विधानसभा के दौरान बड़ा दलबदल कर भाजपा जॉइन की थी और कांग्रेस की सरकार बनते बनते रह गई थी. हरक सिंह रावत बहुत पहले से ही कांग्रेस के संपर्क में थे. इस बात की जानकारी जब भाजपा के बड़े नेताओं को लगी तो हरक सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. रावत से पहले यशपाल आर्य ने भी मंत्री पद छोड़ कर कांग्रेस में वापसी की. यशपाल और उनका विधायक बेटा दोनों कांग्रेस में लौट गए हैं.
झारखंड में दिग्गजों ने की ‘घर वापसी’
उधर झारखंड में एक बड़े घटनाक्रम में कांग्रेस के दो पूर्व अध्यक्षों ने घर वापसी की है. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में चले गए थे. अप्रैल-मई में उन्होंने लोकसभा का चुनाव कांग्रेस से लड़ा था लेकिन दिसंबर के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में चले गए. झारखंड लोक सेवा के पूर्व अधिकारी सुखदेव भगत मजबूत नेता हैं और उनकी पत्नी लोहरदगा की मेयर भी हैं. उनके साथ साथ एक और पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बालमुचू भी कांग्रेस में वापस लौटे हैं.
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कांग्रेस के दूसरी लाइन के नेताओं को मिला ‘सबक’!
मणिपुर, उत्तराखंड, गोवा और झारखंड में कांग्रेस नेताओं की घर वापसी के बाद सियासी गलियारों में चर्चा है कि, यह संभव है कि कांग्रेस पार्टी के बड़े चेहरे दलबदल करें और अपने लिए कुछ हासिल कर लें, लेकिन जिस तरह से भाजपा टिकट काट रही है उसे देखते हुए बड़ी संख्या में कांग्रेस विधायकों और दूसरी लाइन के नेताओं को बड़ा सबक मिल गया है.