क्या सच में बसपा सुप्रीमो मायावती बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नक्शे कदम पर चलने की दिशा में कदम बढ़ा रही है या उन जैसी बनने की कोशिश कर रही है? इस बात पर हर कोई कहेगा कि बिलकुल नहीं. इसकी वजह है कि ममता बनर्जी और मायावती की छवि बिलकुल अलग है.
एक ओर ममता दीदी बिलकुल बेबाक और दबंग छवि वाली महिला है. वहीं मायावती एक राजनीतिज्ञ की तरह सोचती हैं. उस दौरान अगर थोड़ा झुकना भी पड़े तो उन्हें बिलकुल नहीं अखरता. लोकसभा में समाजवादी पार्टी के साथ बरसों पुराने क्लेश भुलाकर अखिलेश यादव से गठबंधन करना इसका परिचय देता है. वहीं ममता बनर्जी बीजेपी सरकार से चुनावों से पहले और बाद में भी अकेली लोहा ले रही हैं. इतनी दबंगई तो कांग्रेस तक नहीं दिखा पा रही है.
देखा जाए तो काफी हद तक ये सभी बातें बिलकुल सही हैं लेकिन मौजूदा हालातों में जो मायावती कर रही हैं, उनकी छवि ममता बनर्जी से कमतर आंकना भी ठीक नहीं है. सोशल मीडिया पर हाल के दिनों में बीजेपी पर किए जा रहे प्रहार और बेबाक ट्वीट इस बात को साबित करते हैं. लोकसभा चुनावों में प्रचार के दौरान मायावती की यही छवि देखने को मिली. उन्होंने सपा हो या बसपा, दोनों पार्टियों की चुनावी सभाओं में गजब का समां बांधा. अब सोशल मीडिया पर उनकी इसी बेबाक छवि की झलक फिर से देखी जा सकती है.
माया और ममता दोनों में इन दिनों एक खास समानता और देखने को मिल रही है और वो है ‘जय श्री राम’ के नारे से चिढ़ जिसकी खीज़ बीजेपी पर निकल रही है. पं.बंगाल में लोकसभा चुनाव प्रचार और उसके बाद भी ममता बनर्जी को ‘जय श्री राम’ के नारों से जमकर परेशान किया गया. इस मामले में बीजेपी कार्यकर्ताओं सहित कई अन्य लोगों की गिरफ्तारी भी हुई. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह तक ने कहा कि पता नहीं ममता दीदी को जय श्री राम से चिढ़ क्यों है. अब बसपा सुप्रीमो मायावती को भी कुछ इसी तरह की दिक्कत होने लगी है.
हाल में मायावती ने अपने ट्वीटर हैंडल से इस संबंध में ट्वीट किया है. उन्होंने ट्वीटर पर पोस्ट किया, ‘यूपी सहित कुछ राज्यों में जबरन अपने धार्मिक नारे लगवाने व उस आधार पर जुल्म-ज्यादती की जो नयी गलत प्रथा चल पड़ी है, वह अति-निन्दनीय है. केन्द्र व राज्य सरकारों को इस हिंसक प्रवृति के विरूद्ध सख्त रवैया अपनाने की जरूरत है ताकि भाईचारा व सद्भावना हर जगह बनी रहे व विकास प्रभावित न हो.’
इससे पहले मायावती ने नरेंद्र मोदी सरकार पर बजट 2019 और ईवीएम को लेकर भी निशाना साधा था. यहां तक कि बीजेपी सरकार की तुलना फ्रांसीसी क्रांति से कर दी. मायावती ने कहा था, ‘आज बीजेपी सरकार में देश क्या उसी रास्ते पर चल रहा है जिस प्रकार फ्रांसीसी क्रान्ति के समय कहा गया कि अगर लोगों के पास खाने को रोटी नहीं है तो वे केक क्यों नहीं खाते? वास्तव में जुमलेबाजी त्याग कर सरकार को देश की 130 करोड़ जनता की मूलभूत समस्याओं के प्रति गंभीर होना होगा.’
लोकसभा चुनाव के बाद इस तरह का बेबाकपन तो ममता बनर्जी के श्रीमुख पर ही देखा गया. देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस और उसके दिग्गज़ नेता जिस बीजेपी की आंधी का सामना नहीं कर पाए, उनके सामने ममता बनर्जी बिना किसी सहारे के दबंगई के साथ टिकी रहीं. चुनावों के समय अमित शाह और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के चौपर को उन्होंने बंगाल की जमीं पर उतरने तक नहीं दिया. उनके करारे प्रहारों और जुबानी जंग का जवाब नरेंद्र मोदी तक के पास नहीं है. पीएम मोदी ने खुद कहा था कि अगर ‘दीदी’ थप्पड़ भी मार दें तो वो सहन कर लेंगे. यह उनकी बेबाकी का ही नतीजा है.
हाल में बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी ममता बनर्जी के बढ़ते सियासी कद को आंकते हुए कहा कि बीजेपी के बाहुबल के सामने कांग्रेस, टीएमसी और एनसीपी को एकजुट होना चाहिए और इस एकजुट कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी को बनना चाहिए.
फिलहाल मायावती उस लेवल तक तो नहीं आ पायी है लेकिन अपनी बेबाकी से उस दिशा में कदम जरूर बढ़ा रही है. लोकसभा में यूपी महागठबंधन को मिली करारी शिख्स्त के बाद सपा का साथ छोड़ अकेले उपचुनाव लड़ना और अब लगातार बीजेपी पर करारे प्रहार उन्हें ममता दीदी के नक्शे कदम पर ले जा रहे हैं. ‘जय श्री राम’ मुद्दे पर उनकी यह ठसक भी दोनों में समानता जाहिर कर रही है. अब तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि मायावती सियासी होड़ में ‘ममता दीदी’ के कितना समकक्ष आ पाती हैं.