विधानसभा चुनाव 2022: तपोभूमि में किस करवट बैठेगा सत्ता का ऊंट? जानिए सियासी आकलन

प्रदेश में हर 5 साल में बदलती है सत्ता, बीजेपी की कुर्सी बचेगी या दोहराया जाएगा इतिहास, बागी बिगाड़ रहे समीकरण

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Himachal Pradesh Assembly Election 2022: तपोभूमि हिमाचल प्रदेश की ठंडी धरती इस वक्त सियासी सरगर्मियों से तप रही है. विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो चुका है. हिमाचल में विधानसभा चुनाव एक फेज में 12 नवंबर को होने हैं जबकि चुनावी परिणाम 8 दिसम्बर को घोषित किए जाएंगे. 1985 के बाद का सियासी इतिहास उठा कर देखें तो यहां हर 5 साल में सरकार एवं सत्ता पलटने का चलन है. यानी एक बार बनी सरकार अगली बार रीपीट नहीं होगी। यह चलन चार दशक पुराना है. प्रमुख पार्टियों के तौर पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस है लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी सहित अन्य के आने से मुकाबला त्रिकोणीय हो रहा है. ऐसे में इतिहास की सियासी परिपाटी का वजीर किस गली चलेगा, फिलहाल बता पाना मुश्किल है.

अगर सी-वोटर ओपिनियन का विश्वास करें तो इस बार के नतीजों से हिमाचल प्रदेश असेंबली इलेक्शन में करीब 37 सालों का ट्रेंड बदल सकता है और बीजेपी की सत्ता में वापसी हो सकती है. सी-वोटर ओपिनियन में बीजेपी को पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोट हासिल हो रहे हैं. एक सर्वे के अनुसार, बीजेपी को 46 प्रतिशत हासिल हो रहे हैं और बीजेपी के खाते में 38 से 46 सीट आ रही हैं. बहुमत के लिए 35 सीटों की जरूरत हैं.

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पिछली बार हिमाचल प्रदेश के चुनाव में बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की थी. उसे 68 में से 44 सीटें मिली थीं. इस बार भी कमोवेश उसकी सीटें पिछली बार की संख्या के आसपास रहने के आसार दिख रहे हैं. कांग्रेस के लिए भी यही स्थिति बनती दिख रही है। पिछली दफा उसे 21 सीटें मिली थीं. इस बार भी कांग्रेस के खाते में 20 से 28 सीट जाने का अनुमान है.

अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने भले ही पंजाब में बंपर सीटें हासिल करके सरकार बना ली हो. लेकिन पड़ोस के सूबे में उनका असर होता नहीं दिख रहा. यहां आप को केवल एक और दो से तीन सीट निर्दलीयों या अन्य के पास जाते दिख रही है.

वहीं, हिमाचल में सरकारों के हर पांच साल में बदलने का पैटर्न है, इसलिए इस बार बीजेपी के सत्ता में आने, न आने को लेकर तमाम तरह के कयास लगने भी शुरू हो गए हैं. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस भी बीजेपी के समान्तर चल रही है. जिस साल बीजेपी ने सत्ता गंवाई, उसी साल कांग्रेस ने वापसी की. ऐसे में यह समीकरण कांग्रेस के पक्ष में जाता दिख रहा है.

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हिमाचल में 20 विधानसभा सीटें एसटी और एसटी की हैं। ऐसे में जिस पार्टी ने इस सीटों पर कब्जा जमाया, उसके हिस्से में जीत तय लिखी है. इन सीटों पर कांग्रेस पार्टी का दबदबा माना जाता है. ऐसे में यहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिख रही है. बीजेपी के लिए कई जिलों में एंटी इनकम्बेंसी देखने को मिल रही है. कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए कुछ नेताओं को टिकट मिलने से बीजेपी के वर्तमान विधायकों में भी खासी नाराजगी है, जिससे उनमें से कई निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं. ऐसे में ये बीजेपी को ही नुकसान पहुंचाएं, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है.

हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी काफी ज्यादा है और किसी भी सरकार के लिए अपने कर्मचारियों को पांच सालों तक खुश रख पाना भी टेड़ी खीर है. इन सभी बातों को नजदीकी से गौर किया जाए तो इस बार मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए जीत आसान न होगी लेकिन बड़े राज्यों में मोदी की लहर को देखते हुए यह निश्चित रूप से यहां भी काम कर सकती है.

इधर, पड़ौसी राज्य पंजाब में एक तरफा सत्ता हासिल कर चुकी आम आदमी पार्टी आत्मविश्वास की आंधी पर सवार है. पंजाब सरकार में शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस, जो कि हिमाचल प्रदेश चुनाव के प्रभारी भी हैं, ने अपने रटे रटाए महंगाई, बेरोजगारी, मुफ्त बिजली और स्वास्थ्य सुविधाएं जैसे चुनावी मुद्दों को जनता के बीच रखा है. बाहरी तौर पर देखा जाए तो यहां कांग्रेस और बीजेपी को आम आदमी पार्टी तीसरा मोर्चा बनकर कड़ी टक्कर देते दिख रही है लेकिन अंदरूनी तौर पर यहां बीजेपी और कांग्रेस के किले पर झाडू मारना आसान काम नहीं है.

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हिमाचल प्रदेश में भाग्य आजमा रही अन्य पार्टियों में बसपा 53, CPI(M) 12 और राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इन सभी पार्टियों का पूरा फोकस एससी/एसटी की 20 सीटों पर है. हालांकि इन सीटों में अधिकांश पर कांग्रेस के विधायक जीत कर सदन में पहुंचे हैं. बीजेपी और कांग्रेस के 30 से अधिक बागी भी निर्दलीय मैदान में हैं, जिनसे चुनावी समीकरणों पर असर पड़ना लाज़मी है.

हालांकि अंतिम निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जा सकता है कि मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होना है. आम आदमी पार्टी का प्रचार कार्य अच्छा हे लेकिन उन्नत नहीं है. प्रचार कार्य को धुंआधार बनाना उनके लिए अच्छा रहेगा. बसपा और अन्य लोकल पार्टियों की पैठ एक या दो सीटों तक रह सकती है. निर्दलीय अगर अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो वे निश्चित तौर पर किंग मेकर की भूमिका में नजर आ सकते हैं.

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