Politalks.News/Rajasthan. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) ने पुरानी पेंशन योजना (old pension scheme) को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का कवच (Socio-economic security cover) करार देते हुए उम्मीद जताई है कि राज्य में इसे पुनः लागू करने के निर्णय से भविष्य में अधिक संख्या में प्रतिभाशाली युवा राजकीय सेवा की तरफ आकर्षित होंगे. सीएम गहलोत ने इसको लेकर एक आलेख लिखा है जिसमें सीएम गहलोत ने कहा कि, ‘नई पेंशन प्रणाली एनपीएस अपने वर्तमान स्वरूप में समस्याग्रस्त है तथा पूरे देश के कर्मचारी पुरानी पेंशन प्रणाली की पुनर्बहाली की मांग कर रहे हैं. राजस्थान सरकार के कर्मचारियों के हितों (interests of rajasthan government employees) की रक्षा तथा सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने एक जनवरी, 2004 के पश्चात राजकीय सेवा में आये सभी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन प्रणाली को पुनः बहाल करने का निर्णय किया’. सीएम गहलोत के इस फैसले की चर्चा प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों में भी हो रही है.
अपने आलेख में मुख्यमंत्री गहलोत ने लिखा है कि, ‘राजस्थान सरकार नागरिकों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा प्रदान कराने के अपने कर्तव्य को भली-भांति जानती हैं. कांग्रेस पार्टी की विचारधारा भी इसी तरह की रही है. एक सरकारी कर्मचारी 30-35 वर्षों तक सेवा करता है और सेवानिवृत्ति के पश्चात पेंशन के आधार पर जीवन व्यतीत करता है. प्रत्येक निर्वाचित सरकार का यह कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे, कि उसके कर्मचारी सुरक्षा की भावना के साथ जीवन निर्वाह करें ताकि वे भी सुशासन में मूल्यवान योगदान दे सकें.सरकारी कर्मचारियों के सामाजिक-आर्थिक आधार को मजबूती प्रदान करने की दृष्टि से सेन्ट्रल सिविल सर्विस (पेंशन) नियम 1972 लागू किया गया जिसमें पेंशनकृपारिवारिक पेंशन, ग्रेच्युटी एवं रूपान्तरित राशि का प्रावधान किया गया. दुर्भाग्य से इस पुरानी पेंशन प्रणाली को दिसम्बर, 2003 में केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर 1 अप्रैल, 2004 से नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) लागू की’.
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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लिखा है कि, ‘नई पेंशन प्रणाली समस्याग्रस्त है तथा पूरे देश के कर्मचारी पुरानी पेंशन प्रणाली की बहाली की मांग कर रहे हैं, क्योंकि नई पेंशन प्रणाली कर्मचारियों की वर्तमान और सेवानिवृत्ति पश्चात की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रही. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, वर्ष 2020 की सीएजी रिपोर्ट सं. 13 तथा द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग ने भी नई पेंशन प्रणाली तथा इसके तहत कर्मचारियों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की गारंटी को लेकर सवाल उठाए हैं. नई पेंशन योजना के तहत कर्मचारी की गाढ़ी कमाई से एकत्रित किया गया सेवानिवृत्ति का कोष शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव के अधीन हो जाता है. शेयर बाजार में छोटी सी घटना को लेकर उथल-पुथल मच जाती है. एनपीएस के लागू होने के 17 साल बाद भी सुरक्षा की जब गारंटी न हो तो कर्मचारियों के मन में वृद्धावस्था के समय असुरक्षा का डर होना स्वाभाविक है. वर्तमान में यूक्रेन जैसे बड़े अन्तराष्ट्रीय संकट के समय शेयर बाजार जब औंधे मुंह गिरता है तो कर्मचारियों की धड़कनें बढ़ जाती हैं और उनकी सामाजिक सुरक्षा पर जोखिम के बादल मंडराने लगते हैं. जब किसी कर्मचारी की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है तो वह पूर्ण क्षमता के साथ काम नहीं कर सकता तथा सुशासन में मनोयोग से योगदान भी नहीं दे सकता’.
सीएम अशोक गहलोत ने लिखा कि, ‘राज्य के कर्मचारियों के हितों की रक्षा तथा सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने 1 जनवरी 2004 के पश्चात राजकीय सेवा में आए कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन प्रणाली को पुनः बहाल करने का निर्णय लिया. मैंने विधानसभा में 23 फरवरी, 2022 को अपने बजट भाषण में पुरानी पेंशन प्रणाली को अगले वित्तीय वर्ष से लागू करने की घोषणा की है. इस निर्णय का न केवल राजस्थान सरकार के कर्मचारियों, बल्कि सभी राज्यों के कर्मचारियों ने स्वागत किया है. सरकारी एवं निजी क्षेत्र के बीच पूर्व में मुख्य अन्तर पेंशन ही था. सरकारी नौकरियों में एक तय सीमा से अधिक वेतनमान नहीं हो सकता, परन्तु पेंशन से भविष्य की सुरक्षा के कारण प्रतिभाशाली युवा सरकारी नौकरी को प्राथमिकता देते थे. ऐसा देखने में आया कि नई पेंशन प्रणाली लागू होने के बाद प्रतिभाशाली युवाओं का सरकारी नौकरी की तरफ रूझान कम हो गया था. पुरानी पेंशन प्रणाली को पुनः लागू करने के निर्णय से भविष्य में अधिक संख्या में प्रतिभाशाली युवा राजकीय सेवा की तरफ आकर्षित होंगे’.
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मुख्यंमत्री अशोक गहलोत ने लिखा कि, ‘पुरानी पेंशन प्रणाली के बारे में यह कहा जाता है कि इससे सरकारों पर वित्तीय भार बढ़ेगा तथा विकास और जनकल्याण के कार्य प्रभावित होंगे. यहां यह तथ्य समझना जरूरी है कि जब पुरानी पेंशन प्रणाली लागू थी तो उस समय भी देश ने प्रत्येक क्षेत्र में शानदार तरक्की की थी. पुरानी पेंशन प्रणाली के कारण विकास और जनकल्याण के कार्यों में कभी भी कटौती नहीं की गई’.
सीएम गहलोत ने लिखा कि, ‘राजस्थान सरकार ने अनेक घटकों को ध्यान में रखते हुए पुरानी पेंशन प्रणाली को पुनः बहाल किया है. इस प्रणाली के तहत कर्मचारी को उसके अंतिम मूल वेतन का 50 प्रतिशत प्लस महंगाई राहत के साथ पेंशन की गारंटी मिलती है. सेवानिवृत्ति के समय तथा सेवाकाल के दौरान निधन की स्थिति में उस कर्मचारी और उसके परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए ग्रेच्युटी भी दी जाती है. नई पेंशन प्रणाली के तहत ऐसी कोई गारंटी नहीं है. तालिका 1.1 में नई तथा पुरानी पेंशन प्रणाली के अन्तर को दर्शाया गया है’.
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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लिखा कि, ‘जल सेना, थल सेना और वायु सेना कार्मिकों के लिए नई पेंशन प्रणाली लागू नहीं की है. इस तथ्य से स्पष्ट है कि पुरानी पेंशन योजना उनको पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है. रक्षा मंत्रालय के अधीन सैन्यबल इण्डियन कोस्टगार्ड के कार्मिकों के लिए नवीन पेंशन प्रणाली लागू की गई जबकि इस सेवा के जवान भी सैन्य बलों की तरह ही मुस्तैदी से काम करते हुए कठोर चुनौतियों का सामना करते हैं. ऐसी ही सेवाएं बीएसएफ, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एसएसबी इत्यादि के कार्मिक भी करते हैं किन्तु उन्हें भी एनपीएस के तहत कवर किया गया है. केन्द्र और राज्य सरकारों के कर्मचारी भी पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं. ऐसी स्थिति में दो अलग-अलग प्रकार की पेंशन प्रणाली रखना न केवल भेदभावपूर्ण है बल्कि नेसर्गिक न्याय के सिद्धान्त के विरूद्ध भी है’.
सीएम गहलोत ने लिखा कि, ‘सीएजी ने नवीन पेंशन प्रणाली की ऑडिट रिपोर्ट (रिपोर्ट सं. 13 वर्ष 2020) में इस व्यवस्था के क्रियान्वयन, आयोजना तथा निरीक्षण को लेकर चौकाने वाले तथ्यों का खुलासा किया है. रिपोर्ट के पैरा 3.2 के अनुसार ‘एनपीएस के लागू होने के 15 वर्ष बाद भी इसके तहत आने वाले कर्मचारियों के लिए सेवा शर्तों तथा सेवानिवृत्ति लाभों के सम्बन्ध में नियमों को अंतिम रूप नहीं दिया गया है.’ इस योजना के सम्बन्ध में टिप्पणी करते हुए सीएजी ने उक्त रिपोर्ट के पैरा 3.9 में लिखा है कि ‘इस बात का कोई संकेत नहीं है कि इस योजना का प्रत्येक 2 वर्षों में कोई बीमांकिक मूल्यांकन किया गया है तथा न ही फण्ड की व्यवहारिकता के आंकलन हेतु कोई पद्धति अथवा तंत्र अपनाया गया है’. सीएजी ने एनपीएस के क्रियन्वयन को लेकर उक्त रिपोर्ट के पैरा 4.1.3 में कहा है कि ‘इस योजना के लागू होने के 15 वर्षों के बावजूद भी ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया है कि पात्र कर्मचारियों को इस योजना के तहत 100 प्रतिशत कवर किया गया है’. उक्त सभी आपत्तियाँ गंभीर है जो कर्मचारियों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालती है. केरल, आन्ध्रप्रदेश, असम, हिमाचल तथा पंजाब जैसे राज्यों ने कर्मचारियों के विरोध को देखते हुए एनपीएस की समीक्षा हेतु राज्य स्तरीय समितियां गठित की है. पश्चिम बंगाल सरकार ने एनपीएस को अभी तक लागू ही नहीं किया है’.
मुख्यंमत्री अशोक गहलोत ने लिखा कि, ‘नवीन पेंशन प्रणाली तैयार करते समय सेवानिवृत्ति के पश्चात कर्मचारी को देय पेंशन की राशि पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. इस कारण पूरे देश में कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना है, यदि नवीन पेंशन प्रणाली इतनी ही अच्छी और पवित्र है तो फिर द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग ने फरवरी 2020 की अपनी रिपोर्ट में न्यायिक सेवाओं में एनपीएस लागू नहीं करने की अभिशंषा क्यों की है ? राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने 20 दिसम्बर, 2021 को केन्द्र सरकार को लिखे अपने पत्र में कर्मचारियों के मानव अधिकारों की रक्षा के खातिर एनपीएस की समीक्षा हेतु समिति गठित करने के लिए कहा है’.
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सीएम गहलोत ने लिखा कि, ‘दिनांक 1 जनवरी, 2004 एवं उसके पश्चात नियुक्त कर्मचारियों में से अब तक जिन कार्मिकों की सेवानिवृत्ति हुई है उन्हें या तो कोई पेंशन नहीं मिली है अथवा इतनी कम पेंशन प्राप्त हुई है कि वे अपना जीवनयापन नहीं कर सकते. इस दृष्टि से राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली अपने उद्देश्य को पाने में विफल रही है. आरम्भ में नवीन पेंशन योजना के अन्तर्गत पारिवारिक पेंशन और ग्रेच्युटी का भी प्रावधान नहीं था जिसे भारत सरकार को बाद में लागू करना पडा’.
मुख्यंमत्री अशोक गहलोत ने लिखा कि, ‘राजस्थान सरकार ने एनपीएस के बावजूद अपनी विकास योजनाओं के साथ कभी समझौता नहीं किया. पुरानी पेंशन योजना लागू होने के बाद भी राजस्थान में विकास कार्य निरन्तर जारी रहेंगे. एनपीएस के कारण कर्मचारियों में व्याप्त चिन्ताओं से राजस्थान सरकार पूरी तरह वाकिफ है. पुरानी पेंशन प्रणाली के तहत कर्मचारियों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जाती है इसलिए राजस्थान सरकार ने कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखकर पुरानी पेंशन प्रणाली को बहाल करने का निर्णय लिया. दो प्रकार की पेंशन योजनाएं रखकर कर्मचारियों में भेदभाव करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है’.