Vasundhara Raje
Vasundhara Raje

Rajasthan Bjp: भारतीय जनता पार्टी की ओर से हाल में घोषित की गई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को एक ​बार फिर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है. राजे को विधानसभा चुनावों से ठीक पहले राष्ट्रीय टीम में उपाध्यक्ष बरकरार रखकर पार्टी में यह सियासी संकेत देने का प्रयास किया है कि राजस्थान में सामूहिक लीडरशिप में चुनाव लड़ा जाएगा. कुल मिलाकर बात यह है कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा, न कि वसुंधरा राजे के चेहरे पर. लेकिन हकीकत तो ये है कि राजस्थान की राजनीति अन्य राज्यों के मुकाबले थोड़ी अलग है. अगर बीजेपी को राजस्थान की धरा पर सत्ता स्थापित करनी है तो उन्हें वसुंधरा राजे को आगे लाना ही होगा. सी-वोटर्स के नतीजे भी इसी बात की ओर इशारा कर रहे हैं.

वैसे तो राजस्थान में सियासी सत्ता पर प्रत्येक पांच सालों में परिवर्तन का ट्रेंड है. यहां हर पांच सालों में सत्ता बदलती है, रिपीट नहीं होती. लेकिन इस बार का माहौल थोड़ा सा अलग है. मौजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा चलाई जा रही जनहितकारी योजनाओं के चलते जनता में खासतौर पर ग्रामीण जनता में गहलोत के लिए खासा सम्मान है. सी-वोटर्स के एक सर्वे के मुताबिक 35 फीसदी लोगों ने मुख्यमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत का नाम लिया है. वहीं 25 फीसदी लोगों ने मुख्यमंत्री पद के लिए वसुंधरा राजे का नाम लिया. बात ये भी सच है कि पिछले 25 सालों में राजस्थान की जनता ने सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर केवल दो चेहरों को देखा है – अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे.

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ऐसा नहीं है कि सर्वे में इन दोनों के नामों पर ही चर्चा की गई है. सी-वोटर्स सर्वे में गहलोत एवं राजे के साथ-साथ पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और बीजेपी सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ एवं अन्य का विकल्प दिया गया था. यहां सचिन पायलट के पक्ष में 19 फीसदी लोगों ने अपना समर्थन दिया. जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को नौ फीसदी और राज्यवर्धन राठौड़ को पांच फीसदी लोग मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. अन्य नेताओं के पक्ष में सात फीसदी लोगों ने राय दी.

इन हालातों में वसुंधरा राजे को सक्रिय सियासी पर्दे पर न लाना बीजेपी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है. दरअसल, वसुंधरा राजे की गिनती बीजेपी में जनाधार वाले नेताओं में की जाती है. राजस्थान में वे दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. उनकी लीडरशिप में बीजेपी को दोनों बार ऐतिहासिक बहुमत मिला. साल 2003 में वसुंधरा राजे की अगुवाई में लड़े गए चुनाव में बीजेपी ने 200 में से 120 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. 2013 में फिर वसुंधरा राजे की अगुवाई में बीजेपी ने राजस्थान के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा 163 सीटों पर जीत दर्ज की. 2008 और 2018 में बीजेपी प्रदेश में हारी लेकिन उसकी सीटें विपक्ष में भी 70 से कम नहीं हुई.

2008 में बीजेपी हार गई, लेकिन उसे 78 सीटें मिली. 2018 के चुनावों में बीजेपी फिर हारी, लेकिन उसकी सीटों की संख्या 73 थीं. यह भी फैक्ट है कि राजे की अगुवाई में लड़े गए चुनावों में दो बार बीजेपी सरकार बनी उस वक्त कांग्रेस की बुरी तरह हार हुईं. 2003 में कांग्रेस 56 सीटों पर और 2013 में 21 सीटों पर सिमट गई थी.

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सूत्रों के मुताबिक बीजेपी का केंद्रीय थिंक टैंक इस बार राजस्थान में कोई नया चेहरा मुख्यमंत्री के तौर पर लाना चाहता है. इसमें अलवर सांसद बाबा बालकनाथ का नाम सबसे उपर चल रहा है. इसके बाद गजेंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह राठौड़ और गजेंद्र सिंह का नाम है. वहीं वसुंधरा राजे का राजनीतिक कद एवं सियासी अनुभव इन सभी पर भारी पड़ता है. राजस्थान में अगर अशोक गहलोत की राजनीतिक जादूगरी को कोई टक्कर दे सकता है तो वो केवल एक ही है – खुद वसुंधरा राजे.

वैसे देखा जाए तो वसुंधरा राजे भी बीजेपी की मंशा को अच्छी तरह से भांप गई हैं. यही वजह है कि केंद्रीय नेतृत्व के अलावा अन्य नेताओं द्वारा किए गए किसी भी कार्यक्रम में राजे की उपस्थिति गौण ही रहती है. दूसरी ओर, विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी चेहरों की लड़ाई को रोककर चुनावी तैयारियों पर ध्यान लगाने की रणनीति में जुट गई है. इसी रणनीति के तहत जयपुर के बीजेपी मुख्यालय के बाहर सभी तरह के होर्डिंग्स, चाहें वो किसी भी नेता के हो, सभी को हटवा दिया गया है.

इधर, वसुंधरा राजे ने अंदरुनी तौर पर अपने समर्थकों द्वारा स्वयं को मुख्यमंत्री बनाने का दावा रखने की मुहिम शुरू करवा दी है. उनके बंगला नंबर 13 के बाहर ‘वसुंधरा राजे को भावी मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम’ शीर्षक के साथ होर्डिंग लगा हुआ है जो उनके समर्थक ने लगाया है. इसमें वसुंधरा राजे का फोटो भी लगा है. काबिलेगौर है कि बिना राजे की परमिशन से इस तरह के बैनर या होर्डिंग तो उनके सरकारी निवास के बाहर लगेगा नहीं. ऐसे में इस तरह के कृत्यों को एक्स सीएम की मौन स्वीकृति है, इस बात में कोई संयश तो नहीं है.

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खैर सच चाहें जो हो, लेकिन ये तो पूर्णतया सच है कि राजे को सामने लाए बिना राजस्थान में बीजेपी सियासी लड़ाई जीत नहीं सकती. केंद्रीय ​राजनीति में भले ही पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का नाम वसुंधरा राजे से कहीं आगे हो लेकिन राजस्थान की धरा पर केवल वसुंधरा का ही राज है. यहां इस नाम से बड़ा बीजेपी के किसी नेता का नाम नहीं है, फिर चाहें वो नड्डा, मोदी या शाह ही क्यों न हो. फिर चाहें बीजेपी मोदी के नाम पर ही चुनाव क्यों न लड़ ले लेकिन राजस्थान के विधानसभा चुनावों में मुख्य मुकाबला वसुंधरा के राज और अशोक गहलोत की जादूगरी में ही होना तय है.

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