RajasthanPolitics. राजस्थान में ये साल चुनावी साल है और कांग्रेस एवं बीजेपी दोनों राजनीतिक दल एक दूसरे की कमियां गिनाने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते हैं. बीजेपी लंबे समय से गहलोत सरकार को भ्रष्टाचार और महिला सुरक्षा को लेकर घेराबंदी कर रही है. इधर, चुनावी समय निकट आने के साथ ही प्रदेश में पानी पॉलिटिक्स तेज होती जा रही है. प्रदेश के सियासी नक्शे पर ईआरसीसी यानी ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट पर सियासत गहरी हो रही है. आगामी चुनावों में इस मुद्दे को भुनाने के लिए प्रदेश कांग्रेस ने कमर कस ली है. इस बात में कोई शक नहीं है कि ईआरसीपी पर राज्य सरकार और मोदी सरकार में गतिरोध चल रहा है. चूंकि अभी लोकसभा चुनावों में एक साल के करीब का समय बचा है, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार भी इस मुद्दे को चुनाव तक लटकाने और तुरुप के इक्के की तरह इस्तेमाल करना चाह रही है.
इधर, कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर एक तीर से दो निशाने साधने की तैयारी में है. पहला- इस मुद्दे को विधानसभा चुनावों में भुनाकर यह साबित करना चाह रही है कि केंद्र में मोदी सरकार होने से राजस्थान और प्रदेश की जनता का हक मारा जा रहा है. वहीं आगामी लोकसभा चुनावों में भी इसी मुद्दे पर बीजेपी के सभी 25 मौजूदा सांसदों एवं 4 केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ ईआरसीपी के लिए आवाज न उठाने की बात कहकर जनता का वोट बैंक अपनी ओर खिसकाने की भी तैयारी है.
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वैसे देखा जाए तो केंद्र भी इस मुद्दे को या तो टाल रही है या दबाना चाह रही है. वहीं राज्य सरकार लगातार बीते काफी समय से केंद्र सरकार से इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग करती रही है. अगर ऐसा होता है तो केंद्र सरकार प्रोजेक्ट लागत की 60 फीसदी राशि वहन करेगी और शेष 40 फीसदी राशि राज्य सरकार. केंद्र सरकार पानी बंटवारा विवादि का तर्क देते हुए टालमटोल कर रही है. इसमें राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीच विवाद की स्थिति बताई जाती रही है. हालांकि राज्य सरकार अनुबंध के तहत स्थिति साफ करने का दावा कर चुकी है. अभी हाल में राज्य सरकार ने प्रोजेक्ट लागत की पूरी राशि प्रदेश के खजाने में से भी खर्च करने की बात कही थी. हालांकि केंद्र से अभी तक इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. वहीं कांग्रेस भी अब इसे सियासी रंग देने का मन बना चुकी है.
13 जिलों में प्रदर्शन की तैयारी, 75-80 सीटों पर दिखेगा असर
चुनावी माहौल में ईआरसीपी के मुद्दे को भुनाने के लिए कांग्रेस ने पूरी तरह से कमर कस ली है. गहलोत सरकार इस परियोजना से जुड़े 13 जिलों में लातार प्रदर्शन करने की रणनीति बना रही है. इसका असर प्रदेश की 75 से 80 विधानसभा सीटों पर पड़ना निश्चित है. इस दौरान आम जन को केंद्र सरकार द्वारा परियोजना को रोकने के पीछे के कारण बताए जाएंगे. पार्टी स्थानीय कार्यकर्ताओं की एक टीम इस पर कार्य कर रही है, जो घर घर जाएगी. इसके अलावा, जिलेवार बड़े प्रदर्शन होंगे जिसमें वरिष्ठ नेता एवं जनप्रतिनिधि शामिल होंगे. राज्य सरकार ने जल संसाधन विभाग से भी इस प्रोजेक्ट के बारे में विस्तृत जानकारी ले ली हे.
बीजेपी की कांग्रेस के प्रदर्शन को फीका करने की तैयारी जोरों पर
इधर, भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस के इस प्रदर्शन को फीका करने की तैयारी कर रही है. संगठन ने स्थानीय नेता, कार्यकर्ताओं को ईआरसीपी अटकने के पीछे राज्य सरकार की कमियां गिनाने के लिए कहा है. इसके लिए सोशल मीडिया पर भी कैंपेन चलाने पर मंथन चल रहा है.
प्रदेश के 13 जिलों को प्रभावित करती है ईआरसीपी
राज्य सरकार की महत्वकांक्षी परियोजना ईआरसीपी प्रदेश के 13 जिलों को प्रभावित करेगी. जयपुर, झालावाड़, बांरा, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, अजमेर, टोंक, दौसा, करौली, अलवर, भरतपुर एवं धौलपुर में इस परियोजना का खास प्रभाव पड़ेगा. अगर यह योजना लागू होती है तो चाकन, ठिकरिया, कुम्हारिया, गलवा, मालवानिया, मासी, टोरडी सागर, बीसलपुर, मुई पंचोलास सूरलवाल, मोरेल, कालीसिल, पांचना, जग्गर, जयसमंद, पार्बती, रामसागर, तालाबशाही, उर्मिला सागर, रामगढ़, कालख सागर, कानोता, छापरवाड़ा और बरेठा आदि बांध भरने के कगार पर आ जाएंगे. इन 13 जिलों में प्रदेश की 200 में से 75-80 सीटें कवर होती है. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल अपने अपने दावों पर काम करते हुए इन सभी सीटों पर अपना दावा मजबूत कर रही है.