बिहार में साल 2025 चुनावी साल है. साल के अंत में प्रदेश की 243 सीटों पर विधानसभा चुनाव होने हैं. मुख्य मुकाबला इस बार भी सत्ताधारी एनडीए और महागठबंधन के बीच तय है. इससे पहले विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) सुप्रीमो मुकेश सहनी के एक निर्णय ने महागठबंधन को परेशानी में डाल दिया है. पार्टी के एक अहम फैसले की वजह से एलाइंस में शामिल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की चिंता बढ़ते हुए दिख रही है, जिसका फायदा एक बार फिर एनडीए को होते नजर आ रहा है.
दरअसल, बॉलीवुड फिल्मों के सेट डिजाइनर से राजनीतिज्ञ बने मुकेश साहनी ने वाल्मिकी नगर में आयोजित दो दिवसीय प्रदेश एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रदेश की 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. साथ ही टिकट में कोटा भी निर्धारित किया है. उन्होंने बताया कि कुल सीटों में से 50 प्रतिशत सीट पिछड़ा, अति पिछड़ा और एसटी-एससी के लिए रिजर्व रहेंगी, क्योंकि वीआईपी की रीढ़ पिछड़ा समाज है. शेष सीटों पर सर्व समाज के उम्मीदवार भाग्य आजमाएंगे. यहां उन्होंने गठबंधन को जरूरी बताते हुए कहा कि हम चाहते हैं कि समझौता हो. इतना ही नहीं, सरकार बनने पर डिप्टी सीएम का पद भी वीआईपी के खाते में आने की बात कहते हुए प्रमुख राजनीतिक दलों की धड़कने बढ़ा दी.
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गौरतलब है कि राज्य में पार्टी के साथ आठ से दस फीसदी वोट हैं. हालांकि पार्टी 100 से अधिक सीटों पर निर्णायक भूमिका में मानी जा रही है. 2018 में स्थापित हुई वीआईपी 2020 तक महागठबंधन का हिस्सा रही लेकिन नए दलों को तव्वजो न मिलने के चलते सहनी ने पाला बदल लिया और 2021 में एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. पार्टी के चार सदस्य विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे लेकिन वे खुद चुनाव हार गए. हालांकि यूपी विधानसभा चुनाव में अहमियत न मिलने और पार्टी के सभी विधायकों के भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाने की वजह से वीआईपी का बीजेपी से मोह भंग हो चुका है. सहनी की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से राजनीतिक दूरियां जग जाहिर है. ऐसे में सहनी का महागठबंधन के साथ जाना तय माना जा रहा है.
इस वक्त राजद बिहार का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है. पिछले विस चुनाव में उनके पास 75 से अधिक सीटें थीं. कांग्रेस चौथे पायदान पर है और महागठबंधन का अहम हिस्सा है. दोनों दलों का कम से कम 220 सीटों पर चुनाव लड़ना तय है. ऐसे में अगर वीआईपी अपने लिए 60 सीटों की मांग करता है तो कहीं न कहीं दोनों दलों को नुकसान होना निश्चित है. अब देखना होगा कि वीआईपी की नाव के साथ कौन कितने वक्त तक सफर करने के लिए आगे आता है.