haryana politics
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हरियाणा में कुरूक्षेत्र लोकसभा के तहत आने वाली कैथल विधानसभा पर चुनावी दंगल हॉट और रोचक होने जा रहा है. इस सीट पर कभी कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला के परिवार का मैजिक चला करता था. 2014 में खुद सुरजेवाला यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. हालांकि 2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में उन्हें करीबी वोटों के अंतर से हार का स्वाद चखना पड़ा. अब भी हालात वही है, परिवार एवं प्रतिद्वंदी भी वही है, बस चेहरा बदल गया है. कांग्रेस ने एक बड़ा दांव खेलते हुए रणदीप सिंह के सुपुत्र आदित्य सुरजेवाला को कैथल से मैदान में उतारा है.

आदित्य हरियाणा चुनाव के दंगल में सबसे युवा उम्मीदवार हैं जिनकी उम्र केवल 25 साल है. उनके सामने पिछली बार के विजेता बीजेपी के लीलाराम हैं जिन्होंने सुरजेवाला को पिछले विस चुनाव में 1246 वोटों से शिख्स्त दी थी. आम आदमी पार्टी की ओर से सतबीर गोयत और जजपा ने संदीप गढ़ पर भरोसा जताया है, जबकि इनेलो-बसपा गठबंधन ने अनिल तंवर को टिकट दिया है. जजपा से बागी होकर बलराज नौच निर्दलीय मैदान में हैं. ऐसे में माना जा रह है कि यहां फाइट कांटे की होने वाली है.

पिता विदेशी, बेटा सुपर विदेशी

यहां अनुभव एवं राजनीतिक दांव पेचों में लीलाराम कांग्रेस प्रत्याशी पर भारी पड़ रहे हैं. आदित्य पर ‘विदेशी’ होने का टैग भी लगा है. पिछले साल ही आदित्य ने कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ बीसी से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. उन्होंने बेंगलुरु के इंटरनेशनल स्कूल से पढ़ाई की है. बीजेपी आरोप लगा रही है कि उन्हें अपने क्षेत्र की परेशानियों के बारे में कुछ भी नहीं पता. कथन सत्य भी है.

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वहीं बीजेपी उम्मीदवार अपनी रैलियों में ‘पिता विदेशी, बेटा सुपर विदेशी’ का नारा लगवा रहे हैं. दरअसल, आदित्य ने अपना अधिकांश बचपन हरियाणा से बाहर बिताया है और जवानी विदेश में. रणदीप सुरजेवाला भी मुख्य रूप से राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे हैं. सुरजेवाला ने अपने लिए इस सीट से टिकट के लिए जीतोड़ कोशिश की थी लेकिन लगातार दो चुनाव होने के बाद आलाकमान को विश्वास में न ले सके. कैसे तैसे वे परिवार के लिए लिए जुटा लाए लेकिन अब भी कैथल का दंगल रणदीप सिंह और सुरजेवाला परिवार के लिए साख का प्रश्न साबित हो रहा है.

कैथल में चलेगा सुरजेवाला मैजिक!

कैथल सीट पर आदित्य के दादा शमशेर सिंह सुरजेवाला (अब दिवंगत) ने 2005 में जीत दर्ज की थी. इससे पहले वे नरवाना सीट से चार बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं. रणदीप सुरजेवाला ने 2009 और 2014 में कैथल सीट जीती, लेकिन उसके बाद वे कोई चुनाव नहीं जीत पाए. पहले 2019 में कैथल विधानसभा सीट और फिर 2020 में जींद विधानसभा उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. पिछले विस चुनाव में लीलाराम ने ही उन्हें कैथल से हराया था. रणदीप सिंह वर्तमान में राजस्थान से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हैं. विस चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही उन्होंने जमकर सुर्खियां बटौरी थी.

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सुरजेवाला हुड्डा गुट से अलग हैं और यही वजह है कि उन्होंने चुनावी प्रचार से अपने आपको अलग थलग रखा है. यहां तक की राहुल गांधी की रैली, जहां राहुल गांधी और हुड्डा के साथ कुमारी सैलजा भी बैठी हुई थीं, सुरजेवाला कहीं नजर तक नहीं आए. 8 अक्टूबर को आने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद सुरजेवाला को अभी भी मुख्यमंत्री पद की उम्मीद है. ऐसे में सीनियर सुरजेवाला की विरासत और उनके सपनों को पंख लगाने की जिम्मेदारी जूनियर सुरजेवाला पर है. ऐसे में आदित्य की जीत के लिए कांग्रेस के कोर वोटर के साथ सुरजेवाला परिवार का मैजिक चलना भी जरूरी है.

राजनीतिक करियर में डिग्री बनेगी सहयोगी

आदित्य का मानना है कि उनका डिग्री कोर्स भी उनकी राजनीति में मदद करेगा. उनकी डिग्री ऑपरेशन और लॉजिस्टिक्स के बारे में है. कनाडा में उन्होंने व्यक्तिगत अनुभव से बहुत कुछ सीखा. उन्हें पता है कि कैथल में अलग-अलग समुदायों तक कैसे पहुंचा जाए. उन्होंने अपने पिता के कार्यकाल में कैथल के ‘परिवर्तन’ और उसके बाद से ‘गिरावट’ को देखा है. कैथल उनके लिए मंदिर जैसा है. कांग्रेस पार्टी, दादा एवं पिता एक विजन के साथ सरकार चलाते थे. बीजेपी को विजका ‘वी’ भी नहीं पता है.

आदित्य कैथल के लिए अपना दृष्टिकोण बताते हुए कहते हैं कि मेरी लड़ाई अगले पांच साल के लिए नहीं, बल्कि 50 साल के लिए है. मेरा लक्ष्य कैथल को गुड़गांव से भी बेहतर बनाना है. मैं बुनियादी ढांचा परियोजनाएं लाना चाहता हूं, रोजगार पैदा करना चाहता हूं. हरियाणा के युवाओं से हम ओलंपिक में पदक जीतने की उम्मीद करते हैं लेकिन उनके पास स्टेडियमों में बुनियादी शौचालय तक नहीं हैं. उनका एकमात्र उद्देश्य लोगों के जीवन को बेहतर बनाना है. आदित्य ने दावा ठोका है कि वे उस अंतर से जीतेंगे, जो कैथल ने अपने इतिहास में कभी नहीं देखा है.

जाट और नॉन-जाट के बीच है मुकाबला

हाल में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था, जिसके अंतर्गत कैथल आता है. इसे अपनी सहयोगी आप के लिए छोड़ दिया था. बीजेपी के नवीन जिंदल ने यहां से जीत हासिल की थी.

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जातीय समीकरण पर एक नजर डालें तो यहां से चार जाट और दो गुर्जर प्रत्याशी मैदान में हैं. आप और इनेलो के उम्मीदवार जाट समुदाय से आते हैं. कैथल सीट पर 2 लाख 20 हजार 459 वोटर हैं. इनमें से एक लाख 15 हजार 566 पुरूष, एक लाख 4 हजार 892 महिला और एक थर्ड जेंडर मतदाता शामिल है. यहां पंजाबी, वैश्य, जाट और गुर्जर करीब करीब एक समान संख्या में है. जाट व गुर्जर समुदाय के 35-35 हजार और पंजाबी-वैश्य समुदाय के 25-25 हजार के करीब वोटर हैं. यहां फाइट जाट और नॉन-जाट के बीच है. मुकाबला कांटे का है. अगर कोर वोटर के साथ इलाके में सुरजेवाला मैजिक चलता है तो आदित्य का राजनीतिक करियर यहां से शुरू हो सकता है.

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