Ajmer Sharif Dargah Controversy:
Ajmer Sharif Dargah Controversy:

Ajmer Sharif Dargah Controversy: हिंदू सेना द्वारा अजमेर स्थित शरीफ दरगाह को भगवान शिव का मंदिर बताने वाली याचिका को अदालत द्वारा स्वीकार कर लिया गया है. इसके बाद इस मुद्दे पर देशभर में बवाल उठता जा रहा है. विपक्षी नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना करते हुए देश में कानून के शासन को कमजोर करने का आरोप जड़ा है. इस मामले पर कई बड़े राजनेताओं के बयान आए आ रहे हैं. एआईएमआईएम सांसद एवं मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने अजमेर शरीफ के बहाने पीएम मोदी पर निशाना साधा और मस्जिदों एवं दरगाहों को लेकर नफरत फैलाने का आरोप जड़ा है. राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने भी इस घटनाक्रम को चिंताजनक बताया है. वहीं राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि पीएम मोदी भी यहां चादर चढ़ाते हैं.

यह भी पढ़ें: पहली बार संसद में गांधी परिवार के तीन सदस्य, क्या ‘कमल’ को दबा पाएगा ‘हाथ’?

भेदभाव दूर करने के लिए अभियान चलाए आरएसएस

कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने अजमेर शरीफ पर चल रहे विवाद पर कहा कि आरएसएस को देश में भेदभाव को दूर करने के लिए एक अभियान शुरू करना चाहिए. देश भर से लोग अजमेर दरगाह पर प्रार्थना करने आते हैं. यहां तक ​​कि पीएम मोदी समेत जितने भी प्रधानमंत्री देश में हुए हैं सभी अजमेर दरगाह पर चादर चढ़ाते. देश-विदेश के लोग यहां पर चादर चढ़ाने आते हैं. बीजेपी से जुड़े के लोग अदालतों में जाकर भ्रम फैला रहे हैं? जहां शांति है, वहां अशांति फैलाने से विकास नहीं होगा.

जो हो रहा, वो देशहित में नहीं

ओवैसी ने दरगाह में हिंदू मंदिर होने के दावे को बीजेपी और आरएसएस की नफरती राजनीति का हिस्सा बताते हुए सवाल उठाया है कि यदि इस प्रकार के विवाद बढ़ते रहे तो देश में कानून और लोकतंत्र का क्या होगा? ओवैसी ने कहा कि ये सब जो हो रहा है, वह देशहित में नहीं है और यह देश को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है. ओवैसी ने आरोप लगाया कि इस विवाद से भाजपा और संघ के लोग सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं.

यह भी पढ़ें: क्या जमीनी सियासत पर ढीली पड़ती जा रही है किरोड़ी की पकड़?

ओवैसी ने इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी को दखल देने का सुझाव दिया है. साथ ही बीजेपी पर सवाल दागते हुए पूछा है कि एक पूरे समुदाय को किनारे किया जा रहा है, उनके धर्म स्थानों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है, क्या हमें इस देश से निकालना चाहते हैं? कितनी मस्जिदों में आप मंदिरों की तलाश करेंगे? क्या इसकी कोई सीमा है या नहीं? वे पूजा स्थल अधिनियम को को भी नहीं मान रहे हैं. क्या वे अपने राजनीतिक फायदे के लिए पूरे देश में आग लगाना चाहते हैं? उन्होंने शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि जब आग लगती है तो सबके घर लगती है.

अन्य नेताओं ने भी जाहिर की प्रतिक्रिया

सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि जिस तरह के जज (निचली अदालतों में) बैठे हुए हैं, वे इस देश में आग लगाना चाहते हैं. इसका कोई मतलब नहीं है. ऐसी जगह को लेकर विवाद करना बहुत ही घृणित और ओछी मानसिकता है. बीजेपी को लोग सत्ता में रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि देश में आग लगे, उन्हें बस सत्ता चाहिए.

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने गुरुवार को कहा कि हिंदुओं को अदालतों में जाकर मस्जिदों का सर्वेक्षण कराने का अधिकार है. क्योंकि यह सच है कि इनमें से कई मस्जिदें मुगल आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए गए मंदिरों के खंडहरों पर बनाई गई थीं. उन्होंने यह भी कहा कि अगर आजादी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऐसे विवादों को खत्म करने के लिए कदम उठाए होते तो हिंदुओं को अदालतों का दरवाजा खटखटाना नहीं पड़ता.

इसी संदर्भ में आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने न्यायपालिका और राजनीतिक तंत्र पर तीखे सवाल खड़े किए. उनका कहना था कि इस तरह की खबरें हर सुबह देखने को मिलती हैं, यह चिंताजनक है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि यह सब रोटी, कपड़ा, मकान और बेरोजगारी जैसे बुनियादी मुद्दों से ध्यान हटाने का एक षड्यंत्र है, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा.

समाजवादी पार्टी (सपा) की नेता डिंपल यादव ने भाजपा पर देश को पीछे ले जाने का प्रयास करने का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि मौजूदा सरकार युवाओं के रोजगार को प्राथमिकता नहीं दे रही है और इसके बजाय ऐसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जो जनता का ध्यान अधिक महत्वपूर्ण चिंताओं से हटा रहे हैं. वहीं कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि ऐसी चीजें पूरे देश को जला देगी.

क्या है पूरा मामला

दरअसल अजमेर दरगाह को शिव मंदिर बताने वाली याचिका अजमेर की स्थानीय अदालत में दायर की गई है. मुकदमे में दावा किया गया था कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का स्थान मूलतः शिव मंदिर था, जिसका आधार ऐतिहासिक साक्ष्य है, जो यह बताता है कि 13वीं शताब्दी के सूफी संत की सफेद संगमरमर की मजार को मंदिर के ऊपर बनाया गया था. उसके बाद यह उनकी कब्र बन गई. अब अदालत ने दरगाह समिति, सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

Leave a Reply