Politalks.News/Delhi. जातिगत जनगणना को लेकर बिहार की राजनीति गर्माने लगी है. इसी मसले को लेकर सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव समेत कुल 11 नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. बिहार से दिल्ली की दौड़ करने वाले इन नेताओं की मांग है कि देश में जातिगत आधार पर जनगणना होनी चाहिए, जिससे पिछड़ी जातियों के विकास में तेज़ी लाई जा सके. तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद देश में जाति आधारित जनगणना की मांग करते रहे हैं. बिहार की सियासत में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही एकमत हैं. बीजेपी और केंद्र सरकार जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में नहीं है. यही वजह है कि नीतीश कुमार सत्तापक्ष से लेकर विपक्षी दलों के नेताओं को एकजुट कर दिल्ली लाए हैं. आपको बता दें कि नीतीश कुमार पहली बार केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए सर्वदलीय नेताओं का सहारा नहीं ले रहे हैं. इससे पहले भी कई मसलों पर वो बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्रियों से मुलाकात कर अपनी मांगें मनवाने में सफल रहे हैं. ऐसे में देखना है कि नीतीश कुमार इस बार जातिगत जनगणना के लिए क्या मोदी सरकार को राजी कर पाते हैं?
‘पीएम ने ध्यान से सुनी बात, विचार कर उचित निर्णय लेने का आग्रह’- नितिश
पीएम मोदी से मुलाकात के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार ने कहा कि, ‘बिहार की 10 पार्टी के 11 दिग्गजों ने मुलाकात की, जातीय आधारित जगगणना को लेकर पीएम को पूरी जानकारी दी. बिहार की स्थिति की भी जानकारी दी. सरकार के मंत्री के बयान के बाद लोगों में बेचैनी थी कि जातीय जनगणना नहीं हो पाएगी. इसके बाद तय हुआ कि पीएम से मिलेंगे. हमने इसके पक्ष में पीएम को अपनी बात बताई’. नितिश कुमार ने कहा कि, ‘पीएम ने सभी की बात सुनी, हमारी बातों को ध्यान से सुना, हमें उम्मीद है कि इस मांग को गंभीरता से लिया जाएगा. नितिश ने पूरा विचार कर उचित निर्णय लेने का आग्रह किया’.
‘जातीय जनगणना राष्ट्रहित में, धर्म के आधार पर हो सकती है तो जाति के आधार पर क्यों नहीं?’- तेजस्वी
पीएम से मुलाकात के बाद तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना को राष्ट्रहित में बताते हुए कहा कि, ‘राष्ट्र हित में कोई काम हमने अपनी बात रखी, इस फैसले से देश के गरीब को भी लाभ मिलेगा. मंडल कमीशन के बाद पता लगा था कि देश में कितनी जातियां हैं, जानवरों, पेड़ों की गणना होती है तो सबकी गिनती होनी चाहिए, ST-SC की जनगणना होती है तो OBC की भी जनगणना होनी चाहिए, आंकड़े आएंगे तो OBC का भला होगा’ आंकड़ों को लेकर RJD नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि,’सरकार के पास जातियों का आंकड़ा नहीं है. तो जनकल्याण की योजनाएं कैसे बनेगी, जब धर्म के आधार पर हो सकती है तो जातीय जनगणना क्यों नहीं?’. मुख्यमंत्री नितिश कुमार को धन्यवाद देते हुए तेजस्वी ने कहा कि, ‘हमारे कहने पर पीएम से मिलने आए. ये बिहार की जनगणना की बात नहीं हुई है. पूरे देश में जातीय जनगणना
की बात की है’.
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बिहार की राजनीति की धुरी है जाति
दरअसल, बिहार की सियासत जाति के धुरी पर पिछले कई दशकों से घूम रही हैं. हर दल अपने-अपने वोट बैंक को ध्यान में रखकर राजनीति कर रही है. बिहार की सत्ता की चाबी ओबीसी जातियों के हाथ में है. यही वजह है कि सभी दल अपने को पिछड़ी जातियों का सच्चा हितैषी साबित करने की होड़ लगी है. इसी मद्देनजर जातिगत जनगणना की मांग को लेकर बिहार के ओबीसी जातियों को लुभाने में जुटी है. ऐसे में जातीय जनगणना को लेकर हो रही मुलाकात को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है.
जाति की बात पर हम साथ-साथ हैं!
नितिश कुमार के साथ राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की ओर से विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) से पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, बीजेपी की ओर से बिहार सरकार में मंत्री जनक राम, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) से मंत्री मुकेश सहनी डेलिगेशन में शामिल हैं. पीएम मोदी से मुलाकात करने जा रहे डेलिगेशन में कांग्रेस की ओर से अजीत शर्मा, सीपीआई से सूर्यकांत पासवान, सीपीएम से अजय कुमार, सीपीआई माले से महबूब आलम और एआईएमआईएम से अख्तरुल इमान भी शामिल रहे.
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डेलिगेशन में शामिल रहे ये नेता
नीतीश कुमार (मुख्यमंत्री) जाति- कुर्मी
तेजस्वी यादव (नेता प्रतिपक्ष) जाति- यादव
जीतन राम मांझी (पूर्व मुख्यमंत्री) जाति- मुसहर
विजय कुमार चौधरी (शिक्षा मंत्री) जाति- भूमिहार
जनक राम (खनन एवं भूतत्व मंत्री) जाति- दलित
मुकेश सहनी (पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री) जाति- मल्लाह
अजीत शर्मा (कांग्रेस विधायक दल के नेता) जाति- भूमिहार
सूर्यकांत पासवान (विधायक, सीपीआई) जाति- दलित
अजय कुमार (विधायक, सीपीएम) जाति- कुशवाहा
महबूब आलम (विधायक, भाकपा माले) – मुस्लिम नेता
अख्तरुल इमान (विधायक, AIMIM) – मुस्लिम नेता
बीजेपी के नेता आए, उपमुख्यमंत्री रहे नदारद
दिलचस्प बात यह है कि बिहार में NDA की सरकार है और बीजेपी की बिहार इकाई दो उपमुख्यमंत्रियों या बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल सहित अपने वरिष्ठ नेताओं को नहीं भेज रही है. नीतीश कुमार सरकार में कैबिनेट मंत्री जनक राम प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी की बिहार इकाई का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
जातिगत जनगणना पर जेडीयू-आरजेडी एकमत
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का कहना है कि जातीय जनगणना का काम आज हो या बाद में लेकिन इसे होना ही है, बेहतर यही है कि इसे आज ही कर लिया जाएं. वहीं, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी का कहना है कि अगर केंद्र के स्तर पर जातीय जनगणना को लेकर फैसला नहीं होता है, तब राज्य सरकार अपने स्तरपर जातीय जनगणना करवा सकती हैं. वहीं, केंद्र के राजी नहीं होने पर बिहार में कर्नाटक मॉडल पर जातिगत जनगणना कराने का फॉर्मूला तेजस्वी यादव पहले ही नीतीश के सामने रख चुके हैं.
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नितिश ने पीएम को लिखी थी चिट्ठी
आपको बता दें कि बिहार में जातिगत जनगणना का मुद्दा एक बार फिर से गर्म हो गया है. पिछले कुछ दिनों से लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही तेजस्वी यादव और कई अन्य नेता देश में जातिगत जनगणना करवाने की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने जाति आधारित जनगणना को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा है कि, ‘आरक्षण को पारदर्शी बनाया गया तो समाज में द्वेष दूर होगा. क्रीमी लेयर और नॉन क्रीमी लेयर में लोगों का प्रतिशत भी सभी को पता चल जाएगा’. उन्होंने कहा कि, ‘जाति आधारित जनगणना को बिहार ही नहीं, पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए’. वहीं, सीपीआईएम के अजय कुमार ने जाति आधारितजनगणना को जरूरी बताते हुए कहा कि, ‘जातीय आधार पर शोषण से छुटकारा दिलाने के लिए जाति आधारित जनगणना जरूरी है’.
आखिरी बार कब हुई थी जातिगत जनगणना?
देश में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी. पहली बार हुई जनगणना में भी जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे. तब से हर 10 साल पर जनगणना होती है.1931 तक की जनगणना में जातिवार आंकड़े भी जारी होते थे. 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया. आजादी के बाद सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी का डेटा जारी करने का फैसला किया. इसके बाद से बाकी जातियों के जातिवार आंकड़े कभी पब्लिश नहीं हुए.
जातिगत जनगणना की जरूरत क्या है?
आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई. तब से अब तक हुई सभी 7 जनगणना में SC और ST का जातिगत डेटा पब्लिश होता है, लेकिन बाकी जातियों का डेटा इस तरह पब्लिश नहीं होता. इस तरह का डेटा नहीं होने के कारण देश की OBC आबादी का ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. पूर्व में वीपी सिंह सरकार ने जिस मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिया, उसने भी 1931 की जनगणना को आधार मानकर देश में OBC की आबादी 52% मानी थी. चुनाव के दौरान अलग-अलग पार्टियां अपने चुनावी सर्वे और अनुमान के आधार पर इस आंकड़े को कभी थोड़ा कम कभी थोड़ा ज़्यादा करके आंकती रहती हैं.एक्सपर्ट्स कहते हैं कि देश में SC और ST वर्ग को जो आरक्षण मिलता है उसका आधार उनकी आबादी है, लेकिन OBC आरक्षण का कोई मौजूदा आधार नहीं है,
अगर जातिगत जनगणना होती है तो इसका एक ठोस आधार होगा. जनगणना के बाद उसकी संख्या के आधार पर आरक्षण को कम या ज्यादा करना पड़ेगा.इसकी मांग करने वालों का दावा है कि ऐसा होने के बाद पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के लोगों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति का पता चलेगा. उनकी बेहतरी के लिए मुनासिब नीति निर्धारण हो सकेगा. सही संख्या और हालात की जानकारी के बाद ही उनके लिए वास्तविक कार्यक्रम बनाने में मदद मिलेगी.
केंद्र सरकार का इस पर क्या रुख है?
गृह मंत्रालय ने बजट सत्र में राज्यसभा और मानसून सत्र में लोकसभा में इस तरह की जनगणना से इनकार किया है. अपने जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा है कि हर बार की तरह इस बार भी केवल SC और ST कैटेगरी की जातिगत जनगणना होगी. हालांकि, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सरकार का रुख ऐसा नहीं था. 31 अगस्त 2018 को उस वक्त के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 2021 की जनगणना की तैयारियों पर एक मीटिंग की थी. इस मीटिंग के बाद PIB ने जानकारी दी थी कि इस बार की जनगणना में OBC की गणना के बारे में सोचा जा रहा है.
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केंद्र सरकार जातिगत जनगणना से क्यों कतरा रही है?
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएडीएस) में प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार संजय कुमार ने कहा कि, ‘मंडल कमीशन के बाद की राजनीति में बड़ी संख्या में बहुत ही मजबूत क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ, खासकर बिहार और यूपी में. आरजेडी और जेडीयू ने बिहार में और सपा ने उत्तर प्रदेश में ओबीसी के मसले को उठाया और ओबीसी वोटरों का जबर्दस्त समर्थन पाने में सफल रहे. हकीकत में ओबीसी वोटर ही बड़ी संख्या में क्षेत्रीय दलों के प्रमुख समर्थक बन गए. पिछले कुछ चुनावों से ओबीसी वोटरों में भाजपा की लोकप्रियता बढ़ी है. भाजपा उत्तर भारत के अनेक राज्यों में प्रभावी ओबीसी की तुलना में निचले ओबीसी को लुभाने में अधिक सफल रही. इसलिए भाजपा ने भले ही ओबीसी पर अपनी पहुंच बनाकर चुनावी लाभ ले लिया हो, लेकिन इनके बीच उसका समर्थन उतना मजबूत नहीं है, जितना कि उच्च वर्ग और उच्च जातियों के बीच है. सूत्रों की माने तो भाजपा का जातिगत गणना से कतराने का मुख्य कारण यह डर है कि अगर जातिगत गणना हो जाती है, तो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को केंद्र सरकार की नौकरियां और शिक्षण संस्थाओं में ओबीसी कोटे में बदलाव के लिए सरकार पर दबाव बनाने का मुद्दा मिल जाएगा, बहुत हद तक संभव है कि ओबीसी की संख्या उन्हें केंद्र की नौकरियों में मिल रहे मौजूदा आरक्षण से कहीं अधिक हो सकती है.