यादों में ‘कल्याण’: फायर ब्रांड नेता और आक्रामक फैसले के लिए जाने जाते थे कल्याण सिंह, शोक की लहर

कल्याण सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के राज्यपाल भी रहे, अपने फायर ब्रांड और आक्रामक फैसले के लिए जाने जाते थे. पार्टी और कार्यकर्ताओं के बीच में 'बाबूजी' नाम से भी विख्यात थे, मिलने वालों के लिए कभी बन्द नहीं हुए राजभवन के दरवाजे

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Politalks.News/UttarPradesh. शनिवार रात उत्तरप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी का ‘कल्याण’ युग खत्म हो गया. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह ने लंबी बीमारी के बाद 89 साल की आयु में लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में शनिवार रात करीब 9:15 अंतिम सांस ली. आपको बता दें, कल्याण सिंह पिछले काफी समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे. उन्हें चार जुलाई को संजय गांधी पीजीआई के आईसीयू में गंभीर अवस्था में भर्ती किया गया था. लंबी बीमारी और शरीर के कई अंगों के धीरे-धीरे फेल होने के कारण शुक्रवार रात कल्याण सिंह ने अंतिम सांस ली.

स्व0 कल्याण सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के राज्यपाल भी रहे. पिछले काफी समय से बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं ने अस्पताल में जाकर उनका हाल भी जाना था. शुक्रवार को दिल्ली से लौटने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री योगी सीधे ही कल्याण सिंह से मिलने पहुंचे थे, तो वहीं शनिवार को भी अपना गोरखपुर दौरा रद्द कर सीएम योगी ने अस्पताल जाकर उनका हाल जाना था. लेकिन शुक्रवार रात जैसे ही उनके निधन की खबर पहुंची लखनऊ से लेकर दिल्ली तक भाजपा में शोक की लहर दौड़ गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और विनय कटियार समेत तमाम भाजपा के नेताओं ने गहरा शोक जताते हुए श्रद्धांजलि दी है. राजस्थान के पूर्व राज्यपाल रहे कल्याण सिंह के निधन पर राज्यपाल कलराज मिश्र, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट सहित प्रदेश के कई नेताओं ने शोक जताया है. 4 सितंबर 2014 से सितंबर 2019 तक राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह को उनके सुधारों के लिए याद रखा जाएगा.

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आपको बता दें, भारतीय जनता पार्टी में कल्याण एक ऐसे नेता थे जो अपने फायर ब्रांड और आक्रामक फैसले के लिए जाने जाते थे. पार्टी और कार्यकर्ताओं के बीच में ‘बाबूजी‘ नाम से भी विख्यात थे. वे जन जन के नेता थे. उत्तर प्रदेश में जब पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी तो कल्याण सिंह पहले मुख्यमंत्री थे. राम जन्मभूमि मामले में कल्याण सिंह देश और विदेशों तक सबसे चर्चित नेता के तौर पर उभरे थे. भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक कल्याण सिंह का पार्टी के साथ ही भारतीय राजनीति में कद काफी बड़ा था. अलीगढ़ के अतरौली विधानसभा सीट से वे कई बार विधायक रहे. अयोध्या के विवादित ढांचा के विंध्वस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह भाजपा के कद्दावर नेताओं में से एक थे.

बता दें कि पहली बार कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वर्ष 1991 में बने और दूसरी बार यह वर्ष 1997 में मुख्यमंत्री बने थे. इनके पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान ही बाबरी मस्जिद की घटना घटी थी. कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने के बाद जून 1991 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद अयोध्या में विवादित ढांचा के विध्वंस के बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए छह दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया. इसके बाद भाजपा ने बसपा के साथ गठबंधन करके उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई. तब कल्याण सिंह सितंबर 1997 से नवंबर 1999 में एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. गठबंधन की सरकार में मायावती पहले मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन जब भाजपा की बारी आई तो उन्होंने समर्थन वापस ले लिया. बसपा ने 21 अक्टूबर 1997 को कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया.

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यही नहीं पार्टी से मतभेद होने पर साल 1999 में कल्याण सिंह भाजपा से नाराज होकर मुलायम सिंह के साथ जुड़ गए थे. करीब पांच वर्ष बाद जनवरी 2003 में उनकी भाजपा में फिर वापसी हो गई. भाजपा ने 2004 लोकसभा चुनाव में उनको बुलंदशहर से प्रतत्याशी बनाया और उन्होंने जीत दर्ज की. इसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव 2009 से पहले भाजपा को छोड़ दिया. वह एटा से 2009 का लोकसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़े और जीत दर्ज की. 2010 में कल्याण सिंह ने अपनी पार्टी बनाई जन क्रांति पार्टी भी बनाई . साल 2013 में एक बार फिर कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी हो गई.

राज्यपाल को महामहिम की जगह माननीय संबोधित करने के आदेश
सक्रिय राजनीति में फायर ब्रांड राजनेता रहे कल्याण सिंह ने सितंबर 2014 में जब राजस्थान के राज्यपाल का पद संभाला तो पहले ही दिन उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ब्रिटिश राज से चली आ रही परंपरा को बंद करवाने का ऐलान कर दिया. कल्याण सिंह ने राज्यपाल को महामहिम की जगह माननीय संबोधित करने के आदेश दिए. राज्यपाल पद की शपथ लेने के बाद मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था कि महामहिम शब्द में औपनिवेशिक बू आती है, हम स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं, इसलिए राज्यपाल के लिए महामहिम का संबोधन नहीं किया जाए. माननीय या दूसरा सम्मानजनक शब्द ही ठीक हैं.

हर साल दीक्षांत समारोह आयोजित करने की परंपरा को फिर से शुरू करवाया कई साल से अटकी डिग्रियां बंटवाईं
राजस्थान के राज्यपाल रहते हुए कल्याण सिंह ने उच्च शिक्षा पर खास फोकस किया. विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होने के नाते उन्होंने पद संभालते ही कुलपति समन्वय समिति की बैठक बुलाकर साफ कह दिया था कि समय पर रिजल्ट जारी हों. विश्वविद्यालयों में हर साल तय टाइम टेबल के हिसाब से दीक्षांत समारोह आयोजित करके स्टूडेंट्स को डिग्री देने पर जोर दिया. कल्याण सिंह के कार्यकाल में राजस्थान यूनिवर्सिटी सहित प्रदेश के कई सरकारी विश्वविद्यालयों में कई साल से लंबित चल रही डिग्रियों को दीक्षांत समारोह आयोति करवाकर बंटवाया गया. हर साल दीक्षांत समारोह आयोजित करने की परंपरा को फिर से शुरू करवाने का श्रेय कल्याण सिंह को जाता है. पहले ही साल कई हजार डिग्रियां एक साथ राजस्थान यूनिवर्सिटी ने दीक्षांत समारोह आयोजित कर बांटी.

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मिलने वालों के लिए कभी राजभवन के दरवाजे बंद नहीं किए
लोकतांत्रिक मूल्यों और राजनीति पर कल्याण सिंह की सोच बहुत व्यावहारिक थी, मिलने वालों के लिए उन्होंने कभी राजभवन के दरवाजे बंद नहीं किए. राज्यपाल बनने के बावजूद वे अपने गृह क्षेत्र के लोगों से बराबर मिलते थे. यूपी से बड़ी तादाद में उनसे लोग मिलने आते थे, उन्होंने मेल मुलाकात के मामले में किसी को निराश नहीं किया.

आपको बता दें, कल्याण सिंह राजस्थान में दो अलग अलग पार्टियों की सरकारों में राज्यपाल रहे लेकिन कभी उन पर पक्षपात के आरोप नहीं लगे. जब वे 2014 में राज्यपाल बनकर आए तब राजस्थान में वसुंधरा राजे सीएम थीं. सितंबर 2019 में जब उनका उनका कार्यकाल पूरा हुआ तब तक सीएम अशोक गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार का आठ महीने का कार्यकाल पूरा हो चुका था. राज्यपाल के तौर पर वे हमेशा समदर्शी रहे, यही उन्हें याद रखे जाने का एक बड़ा कारण है.

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