Politalks.News/Rajasthan. 32 दिनों तक कांग्रेस सरकार को संकट में डालने वाले सचिन पायलट और 18 विधायकों ने आखिर बिना शर्त कांग्रेस में वापसी कैसे कर ली? वो भी तब जब पायलट अपना उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद खो चुके हों, साथ ही उनके खेमे के दो मंत्रियों के अहम पद चले गए हों. तब जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नकारा, निकम्मा के साथ सरकार गिराने की साजिश में शामिल होने के गम्भीर आरोप लगाते हुए पायलट खेमे के विधायकों के ऑडियो टेप तक रिलीज करवा दिए हों.
ऐसे में राजनीतिक गलियारों में यह बड़ा सवाल बना हुआ है कि जो पायलट खेमा 30 दिन तक कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से बात तक करने को तैयार नहीं था, या बकौल पायलट खेमा जो गांधी परिवार या कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने उनसे संपर्क तक नहीं किया, तो आखिरी क्षणों में गांधी परिवार ने अचानक पायलट की बात सुन कैसे ली? अगर गांधी परिवार के कुछ घंटों की केवल बातचीत से ही यह सारा मामला हल हो सकता था, तो फिर यह काम तो पहले ही एक दो दिन में हो सकता था.
क्या गांधी परिवार ने राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में बैलेंसिंग का फार्मूला तो नहीं अपनाया. जिस तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बहुमत के लिए जरूरी 101 विधायकों के साथ भाजपा और पायलट को अपनी ताकत दिखाई. कहीं गांधी परिवार ने उसे ही तो अंडर लाइन नहीं किया? पहले भी कई बार ऐसा होता रहा है कि जब भी देश में कांग्रेस के किसी बड़े नेता का कद और बढ़ा होता है तो गांधी परिवार उस नेता के प्रति एकदम से सक्रिय हो जाता है.
असल में जब भाजपा कहती है कि कांग्रेस का मतलब ही गांधी परिवार है, उस बात का अपना एक बड़ा अर्थ है. यह बात कई मौकों पर देखी जा चुकी है. राहुल गांधी भी इस बात को गहराई से समझते हैं, इससलिए ही उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़कर कहा कि गांधी परिवार से इस पद पर कोई नहीं होगा. लेकिन गांधी परिवार के नाम पर अपनी राजनीति कर रहे शीर्ष नेताओं ने तुंरत सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बना दिया.
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आज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज जिस कद के हो चुके हैं, इतना बड़ा अनुभव रखने वाले नेता कांग्रेस में गिने चुने रह गए हैं. जब-जब भी कांग्रेस में किसी नेता का पद और लोकप्रियता बड़ी है, तब-तब किसी ना किसी रूप में उसे गांधी परिवार से चुनौती मिली है. सचिन पायलट के पिता स्वर्गीय राजेश पायलट जैसे कद्दावर नेता हों या फिर माधवराव सिंधिया जैसी बड़ी शख्सियत. महाराष्ट्र में शरद पंवार हो, या फिर कोई और नेता. इस क्रम में प्रणव मुखर्जी के नाम की भी खूब चर्चा रही है, जिसे कोई भूल नहीं सकता. कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद का सबसे बड़े चेहरे को केवल राहुल गांधी को राजनीतिक को अवसर देने के लिए राष्ट्रपति बना दिया गया.
यह तो हुई कांग्रेस के दिग्गज नेताओं से जुड़ी बात. इसके पार्ट-2 में एक कहानी और छुपी हुई है. यह कहानी राहुल गांधी से जुड़ी है. राहुल गांधी ने अध्यक्ष बनकर हर राज्य में युवा नेताओं की एक टीम बनाई. इन युवा नेताओं को महत्व देकर आगे बढ़ाया गया. यानि उन्हें आपने-अपने राज्यों में बड़ी राजनीतिक शख्सियत बनने के अवसर प्रदान किए गए. राहुल गांधी की मेहनत से देश के लगभग हर राज्य में एक युवा तैयार हो चुका था. लेकिन उसके साथ-साथ ही राज्यों में अनुभवी और युवाओं के बीच वर्चस्व को लेकर संघर्ष शुरू हो गए. हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और अब राजस्थान इसके बड़े उदाहरण के तौर पर सामने आए. इसके बाद टीम राहुल के इन असन्तुष्ट युवाओं ने जहां भी संभव हुआ अपने दम पर कांग्रेस की सरकारों को गिराकर ताकत दिखानी शुरू कर दी. वो अलग बात है कि राजस्थान में गणित सफल नहीं हो सकी.
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खैर, यह तो हुई कांग्रेस के उन दो तरह की नेताओं की बात जो जनता के बीच जाकर राजनीति कर रहे हैं. मेहनत करते हैं, चाहे अनुभवी हो या युवा, सब मिलकर जैसे तैसे कांग्रेस को बचाए और बनाए रखते हैं.
अब इनसे हटकर कांग्रेस की एक टीम और है, यह टीम जमीनी नेताओं की नहीं बल्कि गांधी परिवार के विश्वासपात्र और वफादारों की है. इस टीम का काम ही गांधी परिवार के हितों को ध्यान में रखने का है. इसी टीम में एक बड़ा नाम है केसी वेणुगोपाल का. वेणुगोपाल अभी हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा विधायकों की गई बाड़ेबंदी के बाद राजस्थान से राज्यसभा में गए हैं.
बता दें, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का टकराव कोई नया नहीं है. यह चुनाव के पहले, चुनाव के समय और चुनाव के बाद सरकार बनने के समय से ही चल रहा है. ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस आलाकमान को इस जगजाहिर बात का पता नहीं हो. लेकिन गांधी परिवार की ओर से इस प्रणचुप्पी साधे रखी गई.
राजस्थान में सियासी घमासान शुरू होते ही केसी वेणुगोपाल की भूमिका नजर आने लगी. सूत्रों की मानें तो एक तरफ तो वो गहलोत कैंप में दिख रहे थे, तो पर्दे के पीछे पायलट कैंप से भी संपर्क में लगे रहे. दरअसल, वेणुगोपाल ने मुख्यमंत्री गहलोत के एक दम से बढ़ते सियासी कद को भांप लिया और महसूस किया कांग्रेस में पहले से हाशिये पर जा चुका युवा नेतृत्व अब सचिन पायलट को मिलने वाली सम्भावित शिकस्त के बाद बिलकुल समाप्त हो जाएगा. राहुल गांधी ने देश के विभिन्न राज्यों में जिस युवा नेतृत्व को तैयार किया था वो पूरी तरह खत्म हो जाएगा जो कहीं न कहीं राहुल गांधी का मनोबल तोड़ने जैसा ही होगा.
सूत्रों की मानें तो इस पटाक्षेप के पहले अगर विधानसभा सत्र शुरू हो जाता तो प्रदेश में कांग्रेस सरकार और पायलट खेमा दोनों के जाने का खतरा बढ़ जाता. जिसके चलते केसी वेणुगोपाल ने सबसे पहले प्रियंका गांधी को सारा गणित समझाया और उसके बाद भंवर जितेंद्रसिंह, मिमिलंद देवड़ा, जितिन प्रसाद सहित अन्य युवा नेतृत्व का सहयोग लेकर केसी वेणुगोपाल ने ही सचिन पायलट के साथ गांधी परिवार का भी राजनीतिक भविष्य को बचा लिया. वहीं अगर राजस्थान में सरकार गिरती तो बाद में समीक्षा में सामने आता कि गांधी परिवार कोई निर्णय नहीं ले सका. जबकि राजनीति में संभवानाओं और अवसरों की कोई कमी नहीं होती.
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कांग्रेस महासचिव के साथ राजस्थान से राज्यसभा सांसद केसी वेणुगोपाल ने पर्दे के सामने और पर्दे के पीछे जो भूमिका निभाई वो गांधी परिवार के हितों को पूरी तरह सुरक्षित करती हुई नजर आ रही है. राजस्थान की राजनीति में ही नहीं हर राज्य में नेताओं के बीच के ध्रुवीकरण से ही गांधी परिवार की अहमियत बनी रह सकती है. केसी वेणुगोपाल ने वही काम करके दिखाया है. यानि राजस्थान में अनुभव और युवा के बीच बैलेंसिंग. इस बैलेंसिंग के तहत सचिन पायलट को भविष्य का क्या प्रॉमिस किया गया है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा. फिलहाल तो राजस्थान में कांग्रेस सरकार पर छाया संकट समाप्त हो गया नजर आ रहा है.