मानेसर से राहुल गांधी के घर का सफर पूरा करने में लगे 32 दिन? क्या सचिन पायलट देंगे जवाब?

पायलट साहब, सवाल तो आपसे ही बनता है, इसका जवाब गहलोत साहब तो देंगे नहीं कि 32 दिन हरियाणा में बैठकर कर क्या रहे थे, गहलोत समर्थक विधायकों में उपजा रौष, 'विश्वासघात करने वालों पर भरोसा कैसा और क्यों', इसको लेकर उठे कई सवाल

क्या सचिन पायलट देंगे जवाब?
क्या सचिन पायलट देंगे जवाब?

Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान की सियासी घमासान में ‘बड़ा सम्मान’ पाकर घर वापसी कर चुके सचिन पायलट सहित 18 विधायकों के खिलाफ कांग्रेस में विरोध के स्वर मुखर होते जा रहे हैं. ‘विश्वासघात करने वालों पर भरोसा कैसा और क्यों’, इसको लेकर अब कई नए सवाल खड़े हो रहे हैं: –

  • क्या सचिन पायलट की घर वापसी के बाद बगावत और नाराजगी से जुड़े सारे सवाल समाप्त हो गए?
  • क्या सचिन को निकम्मा, नाकारा कहने वाले मुख्यमंत्री गहलोत उनको गले लगाने के लिए तैयार बैठे हैं ?
  • क्या जिस सम्मान और स्वाभिमान की बात को लेकर कांग्रेस को संकट में डालने वाले पायलट को वाकई वो सम्मान और स्वाभिमान मिल चुका है?
  • क्या पायलट ने जो खोया है, उससे कहीं ज्यादा उन्हें मिल गया है?
  • क्या केंद्रीय नेतृत्व द्वारा बनाई गई तीन लोगों की कमेटी सबकुछ ठीक कर देगी?
  • क्या पालट को ताकतवर बनाने के लिए गहलोत को कमजोर करने की दिशा में आलाकमान कोई कदम उठा सकेगा?
  • क्या पायलट और गहलोत के बीच अब कोई टकराव नहीं होगा?

कांग्रेस की कहानी से जुड़े ऐसे कई सवाल पूरी मजबूूती से जवाब के इंतजार में है. कांग्रेस में वापसी करके सचिन पायलट ने यह तो कह दिया उन्होंने अपनी नाराजगी से जुड़े सारे पहलू पार्टी फोरम पर आलाकमान के सामने रख दिए हैं. आलाकमान ने उनकी बात को तसल्ली से सुना है, आश्वासन भी दिया है.

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अगर वो अपनी नाराजगी आलाकमान को बताने के लिए ही गए थे, तो 32 दिनों तक हरियाणा के मानेसर में कर क्या रहे थे. क्यों वो कांग्रेस के बड़े नेताओं के फोन तक नहीं उठा रहे थे? क्यों जब विधानसभा सत्र मे 3 दिन का समय बचा तो पार्टी फोरम तक अपनी बात वो भी बिना शर्त रखने पहुंच गए?

भले ही यह कांग्रेस का अंदरूनी झगड़ा हो. लेकिन इसका सीधा असर सरकार के साथ-साथ जनता पर भी पड़ा है. जिस भरोसे से जनता ने डेढ़ साल पहले कांग्रेस को सरकार बनाने का जनादेश दिया था. उस भरोसे को भी नुकसान पहुंचा है. इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस की छवि धूमिल हुई है.

अब सवाल सिर्फ इतना भर नहीं रहा है कि गहलोत और पायलट मिल गए तो कांग्रेस सरकार पूरी तरह सुरक्षित हो गई. सवाल यह खड़ा हुआ है कि आखिर दोनों के बीच तालमेल बैठाया कैसे जाएगा. गहलोत ने आखिरी समय तक कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए अपने आपको दिन रात खपाए रखा.

अच्छी खासी बहुमत से चल रही सरकार को होटलों में बंद करना पड़ गया. 30 दिनों तक पायलट नाराज होकर बैठे रहे, आलााकमान के संपर्क में नहीं रहे. तो फिर सवाल तोे उठेंगे ही कि आखिरकार पायलट हरियाणा में बैठकर किसके संपर्क में रहे. कौनसी राजनीतिक गणित थी, जो पूरी नहीं हो सकी. तो आखिरी में कह दिया कि “मुझे पद नहीं सम्मान चाहिए.”

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सवाल तो यह भी है कि जिस पायलट के कारण कांग्रेस के 100 विधायकों को होटल में कैद होकर रहना पड़ा हो, क्या वो इतनी आसानी से पायलट की इतनी बड़ी गलती कह लिजिए या राजनीतिक खेल को माफ कर देंगे.

पायलट ने घर वापसी के बाद कहा कि उनसे जुड़े लोगों को सम्मान मिलना चाहिए. सही बात भी है, सम्मान सबका होना चाहिए. लेकिन जो विधायक पायलट के साथ गए और कांग्रेेस के लिए इतनी बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी, क्या अब कांग्रेस के दूसरे कार्यकर्ता उनकों पदों से नवाजने पर आसानी से सहमति दे देंगे.

असल में सारी कहानी का एक सबसे बड़ा पहलू अशोक गहलोत की मजबूत किले बंदी से जुड़ा है. जिसने पायलट और उनके साथ गए 18 विधायकों को कांग्रेस में वापस आने के लिए मजबूर किया है.

अब आगे क्या? क्या पायलट के आलाकमान से मिलने और घर वापसी के बाद समझा जाए कि गहलोत -पायलट विवाद समाप्त हो गया. नहीं, राजनीति में कभी ऐसा नहीं होता. राजनीति वर्चस्व के संघर्ष का दूसरा नाम है. अभी भी जो घटनाक्रम हुए वो भी वर्चस्व को लेकर अपनी-अपनी ताकत दिखाने से जुड़ा था. ऐसे में एक को तो हारना ही होता है, सो इस कहानी में भी एक पूरी तरह हार गया. हारा भी तो ऐसा कि जो कुछ पार्टी ने उन्हें दे रखा था. यानि कि उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद, सब कुछ छिन गया.

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अब दिल्ली से कौनसा सम्मान और स्वाभिमान लेकर लौटे हैं पायलट. किसी के भी समझ में नहीं आ रहा है. पायलट तो उसी दिन कमजोर हो चुके थे, जब वो पहले दिन हरियाणा 26 विधायकों को लेकर गए थे. अगले ही दिन 26 में से 4 विधायक हरियाणा से मुख्यमंत्री गहलोत के पास वापस आ गए थे. पायलट के पास बचा क्या था 22 विधायक. इसमें भी तीन तो निर्दलीय थे, कांग्रेस के तो 19 ही थे.

इसमें भी गहलोत सरकार ने कह दिया था कि पायलट खेमे 5 से अधिक विधायक उनके संपर्क में हैं, और वो वापस आना चाहते हैं. मुख्यमंत्री गहलोत का यह दावा सच होता नजर आया. पायलट के आने से पहले ही भंवरलाल सहित कई विधायक जयपुर मुख्यमंत्री निवास पर पहुंच चुके थे.

असल में इस सारे खेल को विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी और मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के बीच हुई बातचीत के एक वायरल वीडियो से समझा जा सका है. इस वीडियो में स्पीकर कह रहे हैं कि अगर 30 विधायक चले जाते तो सरकार नहीं बचती. बस यही वो आंकड़ा था, जिसे पायलट नहीं छू सके. गहलोत की मोर्चा बंदी ने पायलट को 22 से आगे बढ़ने ही नहीं दिया. सियासी संग्राम के बीच कांग्रेस के उन नेताओं के बयानों से भी समझा जाना चाहिए कि जिसमें उन्होंने कहा था कि पायलट के साथ गए विधायकों ने भाजपा में शामिल होने से मना कर दिया.

यानि पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह भाजपा में जाने की बात सोच चुके थे. लेकिन अधिकांश विधायकों के गले में भाजपा में जाने वाली बात उतर नही सकी. तो नए दल की रणनीति पर विचार शुरू किया गया. लेकिन नया दल बनाने के लिए जितने विधायकों की संख्या चाहिए थी, पायलट के पास वो भी नहीं थी. यानि पायलट के एक एक विकल्प खत्म होते चले गए.

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भाजपा शुरू से ही कहती रही कि यह कांग्रेस के नेताओं का आपसी झगड़ा है, इससे उनका कोई लेना देना नहीं है. लेकिन तथ्य तो यह बताते हैं कि जहां-जहां भी कांग्रेस नेताओं में झगड़े हुए हैं, वहीं भाजपा कांग्रेस की जगह खुद की सरकार बना लेती है. लेकिन यह चमत्कार राजस्थान में नहीं हो सका.

वर्चस्व की लड़ाई थी और जारी रहेगी. नेताओं के भाषण में कुछ और होता है और वो करते कुछ और हैं. अभी कुछ समय बाद मंत्रीमंडल का विस्तार होना है. राजस्थान भर में संगठन के पदों पर नियुक्तियां होनी हैं. निगम और बोर्ड अध्यक्षों व अन्य पदों को भी भरना है.

यह सारे काम मुख्मंत्री अशोक गहलोत और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डटोसरा को करने हैं. यानि की अभी कई मौर्चों पर सीधा-सीधा टकराव होना है.

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