maharashtra politics
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महाराष्ट्र की बारामती संसदीय सीट देश की एक हॉट श्रेणी की सीट है लेकिन यहां का मुकाबला इस बार रोचक होने जा रहा है. इस सीट पर एक ही परिवार की बेटी और बहू आमने सामने हैं और चुनावी दंगल में दांव पेंच खेल रही हैं. यहां न तो मोदी की गारंटी की चर्चा है और न ही किसी स्थानीय मुद्दे की. यहां चर्चा है पवार परिवार के दंगल की, जो इस सीट पर होने जा रहा है. यह सीट पिछले 27 सालों से शरद पवार समर्थित एनसीपी-एसपी के पास है. यहां से शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले तीन बार सांसद रह चुकी हैं. अब बार अजित पवार और एनडीए की ओर से उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार हैं, जो महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार की धर्मपत्नी हैं. थर्ड फेज में 7 मई को इस सीट पर वोट डाले जाएंगे.

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वैसे बता दें कि बारामती सीट पर 64 साल बाद पावर बनाम पवार का मुकाबला होने जा रहा है. 1960 के समय शरद पवार जब कांग्रेस के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार कर रहे थे. उस वक्त शरद पवार के बड़े भाई वसंतराव कांग्रेस के खिलाफ चुनावी मैदान में थे. शरद पवार तब युवक कांग्रेस के सचिव हुआ करते थे. हर कोई सोच रहा था कि अब शरद पवार क्या करेंगे. चुनाव में भाई का साथ देंगे या फिर पार्टी का. शरद पवार ने पार्टी के लिए चुनाव प्रचार में जान लगा दी और उनके भाई चुनाव हार गए. अब करीब साढ़े छह दशक बाद फिर से ऐसा ही एक घमासान मुकाबला देखने को मिल रहा है. शरद पवार इस बार अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए प्रचार कर रहे हैं, वहीं उनके भतीजे अजित पवार अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार के लिए जमकर पसीना बहा रहे हैं.

स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दें गायब

चुनाव को गौर से देखें तो यहां स्थानीय के साथ साथ राष्ट्रीय मुद्दे तक गायब हैं. मोदी की गारंटी और राम मंदिर की बात यहां कम ही देखने को मिलती है. यहां चर्चा में है तो बस पवार परिवार का बंटवारा. एनसीपी के बंटने से यहां का वोटर भी दोनों गुटों में बंट गया है. देखा जाए तो यहां शरद पवार का भी आधिपत्य रहा है. शरद पवार खुद बारामती से 6 बार सांसद रह चुके हैं. एक बार अजित पवार और लगातार तीन बार सुप्रिया सुले यहां से वर्तमान सीटिंग सांसद हैं. भाभी और ननद पहली बार आमने सामने आयी हैं. बारामती​ में पार्टी और परिवार टूटने के इमोशनल मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है. चुनाव में बहू-बेटी का आमने-सामने होना और शरद पवार का परिवार टूटना बड़ा मुद्दा है. मोदी की गारंटी और राम मंदिर जैसे मुद्दे यहां गायब हैं.

तकनीकी तौर पर अजित पवार भारी

तकनीकी तौर पर देखा जाए तो यहां एनडीए और अजित पवार समर्थित एनसीपी भारी पड़ते नजर आ रहे हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभाएं आती हैं. इनमें इंदापुर, बारामती, दौंड, पुरंदर, भोर और खड़कवासला है. इनमें से दो पर कांग्रेस, दो पर बीजेपी ओर और दो सीटों पर अजित पवार गुट वाली एनसीपी का कब्जा है. लिहाजा, एनडीए का ज्यादा दबदबा है. बारामती विधानसभा क्षेत्र में अजित पवार का वर्चस्व रहा है. वे स्वयं यहां से विधायक हैं. इंदापुर में पूर्व विधायक हर्षवर्धन पाटिल नाराज थे, लेकिन अब वे और मौजूदा विधायक दत्तात्रय भरणे सुनेत्रा पवार के लिए प्रचार कर रहे हैं.

क्या है बारामती का सियासी गणित

बारामती संसदीय क्षेत्र में करीब 23 मतदाता हैं. इनमें से एसटी, एससी, ओबीसी मतदाताओं की संख्या 15 लाख के करीब है. बारामती में 5 लाख से ज्यादा धनगर समाज के वोटर हैं. मराठा समाज के बाद यही वोट बैंक निर्णायक है. धनगर समाज के वोटर जिस ओर जाएंगे, उसकी जीत पक्की मानी जा रही है. आरक्षण का वादा पूरा न होने से धनगर समाज बीजेपी से नाराज है. हालांकि एनसीपी के बंटने से धनगर समाज के वोटर भी बंटे नजर आ रहे हैं.

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बारामती में धनगर समाज के बड़े लीडर विश्वास देवकाते पाटिल अजित पवार के साथ हैं. इसी सीट से लगी माढा लोकसभा सीट से धनगर समाज के लीडर उत्तम जानकर शरद पवार गुट में शामिल हो गए हैं. वे सुप्रिया सुले के लिए प्रचार कर रहे हैं. शरद पवार धनगर लीडर के संपर्क में ज्यादा हैं. यहां धनगर वोटरों का बंटवारा होता दिख रहा है. इस स्थिति में धनगर समाज का वोटर किसे वोट देगा, बता पाना मुश्किल है. वहीं बसपा उम्मीदवार प्रियदर्शनी कोकरे भी पवार फैमेली को चुनौती दे रही है. वे इसी समुदाय से आती हैं और उनका धनगर वोट बैंक में सेंध लगाना पक्का है. ऐसे में सुप्रिया सुले और सुनेत्रा पवार के बीच कांटे की टक्कर है. बारामती का ग्रामीण वोट पूरी तरह से शरद पवार के साथ है. वहीं शहरी वोटर अजित पवार और बीजेपी के साथ है. ऐसे में फिलहाल कुछ भी कहना मुश्किल है. हालांकि ननद और भाभी के बीच राजनीति का ये दंगल देखने में मजा जरूर आने वाला है.

 

 

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