loksbaha election
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Delhi Politics: दिल्ली लोकसभा की 7 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने अपने 6 मौजूदा सांसदों के टिकट काट दिए हैं. इन सबकी जगह नए चेहरों को मौका दिया गया है. इकलौते मौजूदा सांसद जो अपना टिकट बचाने में कायमबा हो पाए हैं, वो हैं मनोज तिवारी. भोजपुरी सिनेमा की एक प्रमुख हस्ती और दिल्ली में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा मनोज तिवारी पर बीजेपी ने लगातार तीसरा बार भरोसा जताया है. इसके पीछे उनका पूर्वांचली होना भी बड़ी वजह माना जा रहा है. साल 2019 के लोकसभा चुनावों में मनोज तिवारी ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शिक्षा दीक्षित को हराकर अपने आप को साबित किया था. हालांकि इस बार नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सीट पर भोजपुरी गायक और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी की अग्नि परीक्षा है क्योंकि यहां कांग्रेस ने युवा नेता कन्हैया कुमार को चुनावी मैदान में उतारा है. इसके बाद इस सीट पर मुकाबला रोचक और टक्कर का हो चला है.

कन्हैया कुमार जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं और उनकी गिनती अच्छा वक्ता के रूप में होती है. कांग्रेस में शामिल होने से पहले कन्हैया कुमार लेफ्ट का चेहरा रहे हैं. 2019 में लेफ्ट ने कन्हैया को मोदी सरकार के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह ​के खिलाफ बेगुसराय से उम्मीदवार बनाया था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

पूर्वांचली बनाम पूर्वांचली में मुकाबला

बीजेपी ने दो बार के सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी पर लगातार तीसरी बार भरोसा जताया है तो उसके पीछे उनका पूर्वांचली होना भी बड़ी वजह माना जा रहा है. अब कांग्रेस ने भी एक पूर्वांचली के सामने पूर्वांचली को ही टिकट दे दिया है. मनोज तिवारी बिहार के कैमूर जिले के निवासी हैं तो कन्हैया कुमार भी बिहार से ही आते हैं. बीजेपी को भरोसा है कि पूर्वांचली और दलित-पिछड़ा वोटर्स के समर्थन से मनोज तिवारी जीत की हैट्रिक लगाएंगे.

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कन्हैया कुमार की सियासत का आधार लेफ्ट की लाइन रही है. कन्हैया के भाषणों में युवाओं, रोजगार के साथ ही दलित-पिछड़े, दबे-कुचले वर्गों, गरीब-मजदूर-दलित-शोषित-वंचित की बात अधिक रहती है. नॉर्थ ईस्ट लोकसभा क्षेत्र में बड़ी तादाद यूपी, बिहार, हरियाणा जैसे राज्यों से आकर मेहनत-मजदूरी कर जीवनयापन कर रहे मजदूरों की है. लेफ्ट से आए कन्हैया के चेहरे पर कांग्रेस की रणनीति इस वोटर वर्ग को साधने की भी है.

मोदी की नांव में सवार तिवारी

मनोज तिवारी लगातार तीसरी बार जीत की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि अपना गढ़ बरकरार रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. इस निर्वाचन क्षेत्र के भीतर विधानसभा सीटों का बड़ा हिस्सा रखते हुए आम आदमी पार्टी एक मजबूत विपक्ष प्रस्तुत करती है. चूंकि दिल्ली में आप और कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़ रही है तो कन्हैया को आम आदमी पार्टी का समर्थन मिलना तय है. वहीं मनोज तिवारी एक बार फिर केवल मोदी की नांव में सवार हैं.

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पिछले 10 साल से सांसद मनोज तिवारी को लेकर एंटी इनकम्बेंसी कैश कराने की कोशिश में जुटी कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के समर्थन से एकमुश्त दलित-मुस्लिम-ओबीसी वोट की आस है. कांग्रेस नेताओं को लगता है कि थोड़े-बहुत पूर्वांचली वोटर्स का साथ भी मिल गया तो यह बफर का काम करेगा और ऐसे में पार्टी के यहां से जीतने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.

पूर्वांचल का जातिगत सियासी

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा सीट के चुनाव नतीजे तय करने में पूर्वांचली वोटर्स का रोल निर्णायक माना जाता है. इस सीट के समीकरणों की बात करें तो यूपी और और बिहार से नाता रखने वाले मतदाताओं की तादाद करीब 28 फीसदी है. इलाके में अनुसूचित जाति की आबादी 16.3 फीसदी, मुस्लिम 20.74 फीसदी, ब्राह्मण 11.61 फीसदी हैं. वैश्य 4.68 फीसदी, पंजाबी 4 फीसदी, गुर्जर 7.57 फीसदी और ओबीसी की आबादी इस लोकसभा क्षेत्र में 21.75 है.

इस लोकसभा क्षेत्र की कुल आबादी में मुस्लिम समाज के लोगों की भागीदारी करीब 21 फीसदी है. मुस्तफाबाद, सीलमपुर, करावल नगर और घोंडा जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है तो वहीं यूपी की सीमा से सटे इलाकों में पड़ोसी राज्य के साथ ही बिहार और हरियाणा के लोगों की आबादी प्रभावी है. विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो रोहतास नगर, घोंडा और करावल नगर सीट से बीजेपी, जबकि अन्य सात सीटों से आम आदमी पार्टी के विधायक हैं.

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली का सियासी समीकरण

पूर्वांचलियों की लड़ाई में ओबीसी-दलित के साथ ही सवर्ण वोटर्स का रोल अहम हो गया है. कहा यह भी जा रहा है कि पूर्वांचली वोट स्थानीय अस्मिता के आधार पर बंट सकता है. मनोज तिवारी भोजपुरी बेल्ट से आते हैं. वहीं, कन्हैया कुमार जिस बेगूसराय से आते हैं, वहां अंगिका और मगही भाषा बोली जाती है. नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में भोजपुरी भाषी वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है और यह मनोज तिवारी के पक्ष में जा सकता है. वहीं बिहारी बैकग्राउंट से आने वाले कन्हैया कुमार को दिल्ली के युवाओं का साथ मिला तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है.

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