MadhyaPradesh Politics: राजगढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के मध्य प्रदेश राज्य के 29 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. यह लोकसभा सीट पूरे राजगढ़ जिले सहित गुना और आगर मालवा जिलों के कुछ हिस्सों को कवर करता है. वैसे देखा जाए तो राजगढ़ कांग्रेस का गढ़ रहा है. कांग्रेस ने यहां दशकों तक राज किया है. हालांकि पिछले दो चुनावों से यह सीट मोदी लहर में भारतीय जनता पार्टी के पाले में जा रही है. यहां फिर से पैर जमाने के लिए कांग्रेस ने अपने दिग्गज और मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को एक बार फिर मैदान में उतारा है. इससे पहले 1984-89 और 1991-94 तक वे यहां से सांसद रह चुके हैं.
दिग्गी वर्तमान में राज्यसभा से सांसद और पार्टी की सर्वोच्य निर्णायक संस्था कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य भी हैं. राजगढ़ में सात चरणों में होने वाले आम चुनावों के तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होगा.
दिग्गी के सामने बीजेपी बेदम
अनुभवी दिग्विजय सिंह 33 साल बाद राजगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं. पिछली बार से 2014-2019 और 2019-2024 तक भारतीय जनता पार्टी के रोडमल नागर यहां से सांसद रहे हैं. बीजेपी ने जीत की हैट्रिक लगाने के लिए फिर से रोडमल नागर पर दांव खेला है. वहीं जिस तरह से दिग्गी राजा ने अपने क्षेत्र में धांसू प्रचार किया है, उससे ऐसा ही लग रहा है कि दिग्गी केवल और केवल जीतने के लिए ही यहां से उतरे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें भोपाल से चुनाव लड़ाया गया था, जहां उन्हें हार का स्वाद चखना पड़ा था. बीजेपी की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने उन्हें 3.6 लाख से अधिक के वोट मार्जिन से हराया था. दिग्गी के धूंआधार प्रचार और नागर के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी का माहौल देखते हुए बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली है. बीजेपी अब यहां पीएम मोदी की लोकप्रियता, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और राम मंदिर जैसे मुद्दों को आगे कर रही है.
केंद्रीय गृहमंत्री भी समर में उतरे
बीते दिन राजगढ़ लोकसभा के खिचलीपुर कस्बे में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी दिग्विजय सिंह पर जमकर हमला बोला था. शाह ने कहा, ‘शहजादे राहुल गांधी और दिग्गी राजा अध्योध्या में रामलला की मूर्ति अभिषेक में क्यों शामिल नहीं हुए क्योंकि वे आपके वोट बैंक से डरते हैं. उन्हें कभी माफ नहीं किया जाना चाहिए जिन्होंने अयोध्या में मूर्ति प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण अस्वीकार किया.’ इससे पहले 8 अप्रैल को ब्यावरा में विधायक रामेश्वर शर्मा भी कह चुके हैं कि ये चुनाव रोडमल नागर का नहीं है. यह चुनाव तो उन राम भक्तों का है, जो 500 वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे थे. इस हमलों से बीजेपी दिग्विजय सिंह को हिंदू और राम मंदिर विरोधी बताने की कोशिश कर रही है.
यह भी पढ़ें: राजसमंद की नाटकीय परिस्थितियों में क्या बीजेपी पर पार पा सकेगी कांग्रेस?
बीजेपी के इन चुभनशील हमलों से कांग्रेस के दिग्गी आहत तो हैं लेकिन वे अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान यहां किए गए विकास कार्यों से उन घांवों पर मलहम लगाने का काम कर रहे हैं. दिग्विजय सिंह बीजेपी के हर उस मुद्दे का जवाब दे रहे हैं, जो वो उठा रही है. जैसे पदयात्रा निकाल कर दिग्गी यह साबित करना चाहते हैं कि 77 साल की उम्र में भी वे फिट हैं, क्योंकि बीजेपी समय-समय पर उनकी उम्र को लेकर सवाल उठाती रही है. दिग्विजय सिंह इमोशनल कार्ड भी खेल रहे हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है. ऐसे में स्थानीय नेता अपने राजनीतिक भविष्य के लिए इस चुनाव को गंभीरता से लेंगे. चूंकि बीजेपी के रोडमल नागर यहां कोई जाना पहचाना चेहरा नहीं है, ऐसे में दिग्गी राजा का कद उन पर भारी पड़ता दिख रहा है.
राजगढ़ का जातिगत समीकरण
राजगढ़ लोकसभा में कुल आठ विधानसभा आती हैं। इनमें से 6 पर बीजेपी और 2 पर कांग्रेस के विधायक हैं। इसके बाद भी राजगढ़ में जातिगत समीकरण काफी अहम है. राजगढ़ में करीब 15 लाख मतदाता हैं. खिचलीपुर विधायक हजारीलाल दांगी और प्रत्याशी रोडमल नागर (धाकड़) की वजह से 2 लाख दांगी और एक लाख धाकड़ वोटर्स का रुझान बीजेपी की तरफ है. वहीं करीब 1.5 लाख मीणा और सवा लाख राजपूत वोटर्स का रुझान कांग्रेस की तरफ माना जा रहा है. हालांकि गुना क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया का उनके खिलाफ चुनावी प्रचार दिग्गी को परेशान कर रहा है.
राजगढ़ लोकसभा का सियासी समीकरण
दिग्गी राजा मध्यप्रदेश की राजनीति के एक स्तंभ रहे हैं. केंद्रीय राजनीति में भी उनके बाद प्रबल बाहुबल है लेकिन दिग्गी का ज्यादातर ध्यान मध्यप्रदेश की सियासत पर ही रहा. कमलनाथ और उनके बीच राजनीति संबंध में कभी अच्छे नहीं रहे. खासतौर पर कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के 15 महीने प्रदेश की राजनीति में काफी उथल पुथल भरे रहे. दिग्गी को ज्योतिरादित्य सिंधिया पर वरियत्ता देना भी सिंधिया को नागवार गुजरा और उसके बाद कमलनाथ की सीएम कुर्सी भी खिसक गयी. इसका जिम्मेवार भी कहीं न कहीं दिग्गी को माना गया. ऐसे में दिग्विजय सिंह इस जीत से केंद्रीय आलाकमान तक मैसेज देना चाहते हैं कि राजनीति में उनका सानी अभी तक मध्यप्रदेश में कोई नहीं है.
हालांकि राम मंदिर और रामलला प्राण प्रतिष्ठा जैसे मुद्दों पर कांग्रेस के कदम से लोगों के मन में नाराजगी है. इसके बावजूद दिग्गी जोर शोर से दम लगा रहे हैं. ढलती उम्र में दिग्गी के जोश से बीजेपी खेमे में भी खलबली मची हुई है. ऐसे में बीजेपी के रोडमल नागर और दिग्गी राजा के बीच मुकाबला कांटे की टक्कर का होने जा रहा है.