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Rajasthan Politics: राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर मतदान 26 अप्रैल को समाप्त हो चुका है. परिणाम आने का इंतजार है लेकिन प्रदेश की सभी सीटों में से एक सीट ऐसी भी है जहां एक मिथक की वजह से उसे मतदान के बार भी याद रखा जा रहा है. वो है कोटा-बूंदी सीट, जहां से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला बीजेपी की ओर से मैदान में हैं. युवा मोर्चा से अपनी राजनीतिक सफर की शुरूआत करने वाले बीजेपी नेता ओम बिरला एक जुझारू नेता रहे हैं. उनका व्यवहार काफी सौम्य और शांत है. यही वजह रही कि केवल दूसरी बार सांसद बनने के बाद ही उन्हें लोकसभा अध्यक्ष का अहम और सर्वाधिक जिम्मेदारी वाली संवैधानिक पद सौंपा गया. ओम बिरला ने 2014 और 2019 कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीते.

इस बार उनका मुकाबला उनके पुराने साथी और दो बार के विधायक रहे प्रहलाद गुंजल से है. बीजेपी से नाराज होकर गुंजल ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया और चुनावी जंग में उतर गए. दोनों नेता युवा छात्र राजनीति से संबंध रखते हैं. हालांकि बिरला की इस बार जीत से ज्यादा मिथक तोड़ने की चुनौती है.

छात्र राजनीति से जुड़े रहे बिरला-गुंजल

सबसे पहले बात करें ओम बिरला की, तो बिरला इससे पहले 1991 से 1997 तक भारतीय जनता पार्टी के युवा प्रदेश अध्यक्ष रहे. उसके बाद 1997 से 2003 तक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे. वहीं प्रहलाद गुंजल को राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है. कोटा महाविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष रह चुके प्रहलाद गुंजल की युवाओं पर खास पकड़ है. बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर गुंजल कोटा उत्तर सीट से हार गए थे. इसके बाद किसी बात पर नाराज होकर वे कांग्रेस में आए और ओम बिरला के समक्ष चुनावी ताल ठोक ​दी.

क्या है बिरला से जुड़ा मिथक

ओम बिरला को बीते ढाई दशक से किसी भी लोकसभा अध्यक्ष का दोबारा सदन में नहीं पहुंचने का मिथक तोड़ना हैै. दरअसल पिछले करीब 25 सालों से जो भी लोकसभा अध्यक्ष बना, वो वापिस लोकसभा में नहीं पहुंच पाया है. शुरूआत से बात करें तो साल 1999 में हुए आम चुनावों के बाद जीएमसी बालयोगी अध्यक्ष बने थे. 2001 में एक दुर्घटना में उनका निधन हो गया था. उस समय शिवसेना के मनोहर जोशी को संवैधानिक पद पर बिठाया गया लेकिन जोशी 2004 का आम चुनाव हार गए. 2004 में लोकसभा अध्यक्ष बने सोमनाथ चटर्जी को अगले आम चुनाव में टिकट नहीं मिला.

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वहीं साल 2009 में लोकसभा अध्यक्ष बनीं मीरा कुमार 2014 में चुनाव हार गईं. इसी कड़ी में 2014 में सदन सर्वेसर्वा (लोकसभा अध्यक्ष) बनी सुमित्रा महाजन का टिकट 2019 में बीजेपी ने काट दिया. ऐसे में ओम बिरला का अगला नंबर है. अगर वे इस मिथक को तोड़ देते हैं और प्रहलाद गुंजल को हरा ​देते हैं तो न केवल ये मिथक टूटेगा, बल्कि लगातार दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष बनने का मौका भी मिल सकता है.

युवाओं के हाथों में है हार-जीत का फैसला

कोटा संसदीय क्षेत्र की आठ में से छह विधानसभा सीट पर आधे से अधिक मतदाता युवा हैं. बीजेपी में ही युवा राजनीति से सदन में पहुंचे ओम बिरला अब खुद भी युवाओं के भरोसे हैं. युवा वर्ग का भरोसा जीतने वाले के सिर पर ही जीत का सेहरा बंधना निश्चित है. अब देखना रोचक होगा कि युवा ओम बिरला का भरोसा तोड़ते हें या फिर ओम बिरला लोकसभा का मिथक तोड़ पाने में कामयाब होते हैं.

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