MadhyaPradesh Politics: मध्यप्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट, जो अपने प्राचीन इतिहास और राजनीतिज्ञों की कर्मस्थली मानी जाती है. मध्यप्रदेश का विदिशा शहर काफी प्राचीन है. विदिशा लोकसभा सीट तो 1967 में अस्तित्व में आई लेकिन इस शहर का भारत के इतिहास में खासा महत्व है. महान मौर्य सम्राट बनने से पहले अशोक विदिशा के ही गर्वनर थे. आठवें तीर्थंकर चंद्रनाथ की मूर्ति मिलने का स्थान सिरोनी, गिरधारीजी का मंदिर,जटाशंकर और महामाया का मंदिर इस जिले की समृद्ध विरासत को बयां करता है. इस सीट से प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और विदेश मंत्री तक निकले हैं. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक करियर बनाने वाली सीट भी विदिशा ही है. यहीं से शिवराज सिंह 5 बार सांसद बने हैं और छठी बार मैदान में हैं. उनके सामने कांग्रेस ने 77 साल के प्रताप भानु शर्मा को टिकट दिया है. जो दो बार सांसद रह चुके हैं. 33 साल बाद शिवराज-शर्मा आमने-सामने हैं.
इस बार विदिशा सीट केवल शिवराज की वजह से ही नहीं, बल्कि चर्चा में इसलिए भी है क्योंकि यह सीट बीजेपी का गढ़ है और कांग्रेस इसमें सेंध लगाने में अब तक कामयाब होती नहीं दिख रही है. बीते 36 सालों से कांग्रेस यहां जीत का मौका तलाश रही है लेकिन पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा में ऐसा ‘कमल’ खिलाया कि यहां तभी से भगवा लहरा रहा है.
विदिशा सीट का सियासी हिसाब-किताब
इस वीआईपी सीट ने अब तक देश को पीएम, सीएम, विदेश मंत्री और नोबेल पुरस्कार विजेता दिए हैं. 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी विदिशा में ही जन्मे हैं. विदिशा में हुए अब तक 16 आम चुनावों में से 11 बार बीजेपी और दो बार कांग्रेस जीत पायी है. दो बार जनसंघ और एक बार जनता पार्टी को विजयश्री मिली है. शिवराज सिंह यहां सर्वाधिक 5 बार सांसद रहे हैं. दो-दो बार सुषमा स्वराज और राघवजी को यहां से जीत मिली है. अटल बिहारी वाजपेयी 1991 में यहां से चुनाव लड़े और जीते लेकिन उन्होंने इस सीट को छोड़ दिया. दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक करियर बना दिया. जब वाजपेयी ने यहां की सीट छोड़ी तो उन्हीं की अनुशंसा पर बीजेपी ने यहां से शिवराज को मैदान में उतारा. उसके बाद शिवराज सिंह ने 1991, 96, 98, 99, 2004 में चुनाव जीता और उसके बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
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शिवराज ने लगातार पांच बार संसद में विदिशा का प्रतिनिधित्व किया और इस सीट को बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित बना दिया. तभी तो बीजेपी को जब सुषमा स्वराज को लोकसभा में भेजने की जरूरत महसूस हुई तो पार्टी ने उन्हें विदिशा भेजा. वे यहां से लगातार दो बार सांसद रहीं. वर्तमान में भी बीजेपी के रमाकांत भार्गव यहां से सांसद हैं.
विदिशा का विधानसभा गणित
विदिशा संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा आती हैं, जिनमें भोजपुर, सांची, सिलवानी, विदिशा, बासोदा, बुदनी, इछावर और खातेगांव शामिल है. खास बात यह है कि आठ विधानसभाओं में से सात विधानसभा सीटों पर बीजेपी काबिज है, जबकि एक मात्र सिलवानी सीट कांग्रेस के पास है. कांग्रेस के देवेन्द्र पटेल सिलवानी से विधायक हैं.
विदिशा का जातिगत गणित
साल 2019 में विदिशा सीट पर मतदाओं की संख्या 17 लाख 41 हजार से ज्यादा है. इसमें से 9 लाख 19 हजार मतदाता पुरुष और 8 लाख 21 हजार से ज्यादा महिला मतदाता शामिल हैं. विदिशा की 76 फीसदी जनसंख्या शहरी और 23 फीसदी जनता गावों में निवास करती है जबकि 88 प्रतिशत आबादी हिंदू और 10 फीसदी आबादी मुस्लिम है. विदिशा में दांगी, किरारा और ब्राह्मण तो सिलवानी और बसौदा में रघुवंशी और जैन समाज निर्णायक भूमिका में है. देवास के खातेगांव और सीहोर के इछावर में खाती और यादव मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. इनके वोट का कोई खास पैटर्न नहीं रहा है. यहां जातीय से ज्यादा शिवराज फैक्टर काम करता है.
विदिशा का सियासी समीकरण
विदिशा में भारतीय जनता पार्टी मजबूत दिख रही है. इसका कारण यह है कि बीजेपी ने भारी भरकम कैंडिडेट उतारा है. वे पहचान को मोहताज नहीं है. इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता, राष्ट्रवाद भी यहां मुद्दा है. शिवराज जिस तरह से गांव-गांव घूम कर प्रचार कर रहे हैं, उससे लगता है कि जैसे वह पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. वे पार्टी के स्टार प्रचारक की लिस्ट में भी शामिल हैं. बावजूद इसके उनके विदिशा से बाहर दौरे सीमित है. जानकार कहते है कि शिवराज पूरी ताकत इसलिए झोंक रहे हैं, क्योंकि उन्होंने 10 लाख से अधिक लीड से जीतने का लक्ष्य रखा है. विदिशा में कांग्रेस की ओर से किसी बड़े नेता की उपस्थिति न के बराबर रही है. कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप भानु शर्मा भी लंबे समय से विदिशा में सक्रिय नहीं रहे. उन्हें पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं से तालमेल बनाना पड़ रहा है.
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, विदिशा के चुनाव में सवाल इस बात को लेकर नहीं है कि बीजेपी जीतेगी या कांग्रेस? बल्कि सवाल यह है कि यहां से उम्मीदवार शिवराज सिंह चौहान की जीत का मार्जिन कितना होगा? शिवराज सिंह लंबे समय तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. अब उन्हें इस पद से हटा दिया गया. ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें साइड लाइन कर दिया गया हो. वे इस चुनाव में बड़े मार्जिन से जीत दर्ज कर केंद्रीय नेतृत्व को यह संदेश भी देना चाहते हैं कि उनका राजनीतिक प्रभुत्व अभी भी कायम है.