Politalks.News/MaharashtraPolitics. अपनों की बगावत के बाद सत्ता से बाहर हो चुके शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने आने वाले वाले एमएलसी और बीएमसी चुनावों के लिए नए सिरे से पारी संगठन को मजबूत करने की मुहिम छेड़ दी है. इसी कड़ी में आदित्य ठाकरे ने सूबे में कई जगहों पर दौरे करके पार्टी में नया जोश भरने की कोशिश शुरू कर दी है. इस दौरान ठाकरे की रैलियों में आने वाली भीड़ को देखकर महाराष्ट्र भारतीय जनता पार्टी के साथ शिंदे गुट की चिंता बढ़ा दी है. मीडिया रिपोर्ट्स में छपी खबर के मुताबिक पार्टी सूत्रों ने बताया कि आदित्य ठाकरे की रैलियों में आने वाली भीड़ और उनका गर्मजोशी से स्वागत करने की खबरों ने बीजेपी के चुनावी रणनीतिकारों को मुंबई और ठाणे सहित राज्य भर में होने वाले निकाय चुनावों से पहले अलर्ट किया है.
आपको बता दें, आने वाले अक्टूबर के महीने में संभावित रूप से निर्धारित नगरपालिका चुनाव होने हैं जिनमें मुख्य तौर से मुकाबला ठाकरे गुट की शिवसेना और शिंदे गुट की शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के बीच होगा. इसी बीच प्रदेश भर में जारी आदित्य ठाकरे की रैलियों में दिखने वाले कार्यकर्ताओं के उत्साह ने शिंदे गट4और एक बीजेपी गठबंधन की नींद उड़ा दी है. अभी हाल के समय में आदित्य ठाकरे ने जलगांव के पचोरा गांव में एक जनसभा जंबोरी क्षेत्र में संबोधित किया था. ये मौजूदा शासन के वरिष्ठ मंत्री गुलाबराव पाटिल का सियासी क्षेत्र है. TOI के मुताबिक शिवसेना के एक कार्यकर्ता ने बताया कि पचोरा की रैली में शिवसैनिक पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे से मिलने के लिए बेचैन दिखाई दिए. इस दौरान वहां भगदड़ भी मच गई. इस घटना को लेकर बीजेपी के रणनीतिकारों के माथे पर पसीना साफ दिखाई दे रहा है.
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जानकारों की मानें तो शिवसेना को लेकर पिता-पुत्र उद्धव और आदित्य की जोड़ी लगातार पूरे राज्य में विद्रोहियों की बातों का धुन बजाते रहेंगे. उनका आरोप है कि सत्ता के लिए विद्रोहियों की बेलगाम लालसा राज्य में उथल-पुथल के लिए जिम्मेदार है. अब बीजेपी के सामने इस बात की चुनौती है कि वो जनता की इस धारणा कौ कैसे दूर करे कि उसने महाविकास अघाड़ी सरकार को गिराने के लिए शिवसेना के गद्दारों की मदद की. शिवसेना इस बात का इशारा करते हुए कि मौजूदा समय ‘गद्दार नेरेटिव’ शिवसेना के मतदाताओं को प्रभावित करने का सबसे बड़ा हथियार मातोश्री के पास है. विशेष रूप से एमएमआर क्षेत्र में जहां शिंदे की नगर निगम चुनावों में गहरी जड़ें जमाने की योजना है.
बीजेपी के एक पदाधिकारी ने बताया कि, हम ठाकरे पिता-पुत्र की ‘पीठ में खंजर भोंकने’ की बयानबाजी का मुकाबला करने के लिए चुनावी रणनीति को सही तरीके से डिफेंड नहीं कर पा रहे हैं. हमें इस पर सही तरीके से जनता को बताने की जरूरत है. वोटर चुनाव के समय अक्सर ‘सहानुभूति’ वाली बातों में बहक जाते हैं. इसलिए मातोश्री ने जनता की ‘सहानभूति’ पाने वाला दांव खेला है.
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आपको बता दें, महाराष्ट्र में एमवीए सरकार के पतन के बाद से उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ने सेना मशीनरी को सुधारने में फ्लैक्सिबिलिटी दिखाई है. शिवसेना के कई लोग सोचते हैं कि अपनों के किए गए विद्रोह ने मातोश्री को उसके मूढ़ता से झकझोर कर रख दिया है. एक ओर जहां उद्धव ठाकरे जमीनी स्तर के शिवसैनिकों का विश्वास जीतने के लिए शहर भर की शाखाओं का दौरा कर रहे हैं, तो वहीं आदित्य ठाकरे ‘शिव संवाद यात्रा’ धर्मयुद्ध के हिस्से के रूप में दूर की ग्रामीण सभाओं में जनता को संबोधित कर रहे हैं ताकि लोगों के मन से शिवसेना के प्रति इस धारणा को दूर किया जा सके कि वो सिर्फ मुंबई केंद्रित पार्टी है. अब आदित्य ठाकरे की रैलियों में आने वाली ये भीड़ वोटों में कितना तब्दील होती है ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा.