बिहार चुनाव में छाया वादा-ए-रोजगार, इस बार बनेगी तेजस्वी सरकार!

एनडीए के विकास के मुद्दे को जनता ने ठुकराया जबकि महागठबंधन के रोजगार मुद्दे को अपनाया, फेल हो सकता है नीतीश कुमार का इमोशनल कार्ड, दो युवराजों का पीएम मोदी का तंज कर जाएगा अपना काम

Bihar Exit Poll 2020
Bihar Exit Poll 2020

Politalks.News/Bihar/ExitPolls. बिहार विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान समाप्त हो चुका है और मतदान के अंतिम आंकड़े भी आ चुके हैं. तीसरे चरण में 56.02 फीसदी मतदान हुआ है. 28 अक्टूबर को हुए पहले चरण में 55 प्रतिशत और 3 नवंबर को दूसरे चरण में 45.05 फीसदी मतदान हुआ. 2015 के विधानसभा चुनावों पर एक नजर डालें तो 56.76 फीसदी मतदान हुआ था. सर्वे के अनुसार बिहार में नीतीश कुमार का तख्ता पलटने वाला है और तेजस्वी यादव की सरकार बनने वाली है. 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में महागठबंधन को स्पष्ट तौर पर बहुमत मिल रहा है.

इस बार बिहार विस चुनावों में राजद और महागठबंधन की ओर से जारी चुनावी घोषणापत्र छाया रहा. संकल्प पत्र में महागठबंधन ने 10 लाख नौकरियों का वादा किया था. इस वादे को एनडीए और अन्य विपक्षी दलों ने राजद और कांग्रेस की ओर से इसे चुनावी जुमला बता दिया. इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम सुशील मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को जमकर उठाया और इसे महज जनता को गुमराह करने का माध्यम बताया.

बिहार से जुड़ी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
बिहार से जुड़ी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें

विभिन्न मीडिया संस्थानों की तरफ से आए एक्जिट पोल के नतीजों के अनुसार एनडीए और महागठबंधन में कांटे की टक्कर बताई जा रही है. एनबीपी के सी-वोटर सर्वे के अनुसार, एनडीए को 104-128 और महागठबंधन को 108 से 131 सीटें मिल रही है. जदयू को 38-46 सीट, बीजेपी को 66-74 सीट, राजद को 81-89 सीट और कांग्रेस को 21-29 सीट मिल रही है. एनडीए में शामिल वीआईपी और हम को 0-4 सीटें मिल रही हैं जबकि महागठबंधन में शामिल वाम दलों को 6 से 13 सीट मिल रही है. लोजपा और जाप दोनों को एक से तीन सीटों पर सिमटते हुए बताया गया है.

यह भी पढ़ें: बिहार चुनाव का अंतिम चरण समाप्त, 56.02 फीसदी मतदान, टूटा पिछले चुनावों का रिकॉर्ड

टाइम्स नाउ के सी-वोटर सर्वे के मुताबिक, महागठबंधन को 120 और एनडीए को 116 सीटें मिल रही है. लोजपा को एक और अन्य सभी दल 6 सीट जीत रहे हैं. रिपब्लिक जन की बात के एग्जिट पोल के अनुसार, बिहार में महागठबंधन की सरकार बन सकती है. एनडीए को 37-39 फीसदी वोट के साथ 91-117 सीटें मिल सकती हैं तो महागठबंधन 40-43 फीसदी वोट शेयर के साथ 118-138 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है. लोजपा को 5-8 सीटों पर संतोष करना होगा. अन्य को 3-6 सीटों पर जीत हासिल होगी. वहीं TV9 भारतवर्ष के एग्जिट पोल के मुताबिक, एनडीए को 110 से 120 सीटें और महागठबंधन को 115 से 125 सीटें मिलती दिख रही हैं. लोजपा को 3-5 और अन्य के खाते में 10-15 सीटें जा सकती हैं.

वहीं पॉलिटॉक्स के सर्वे के अनुसार, महागठबंधन को 115 से 135 सीटें मिलते नजर आ रही है. एनडीए को 90 से 110 सीट मिल रही है. लोजपा और जाप को चार से छह जबकि थर्ड फ्रंट को 10 के अंदर अंदर सिमटते दिख रहा है.

अंदरूनी सर्वे रिपोर्ट में तेजस्वी शुरुआत के दोनों चरणों में पहले से ही आगे चल रहे थे. इस बात को भांपकर प्रधानमंत्री मोदी ने अंतिम चरण की अपनी 6 चुनावी रैलियों में लालू और राबड़ी को छोड़ तेजस्वी पर निशाना साधना शुरु कर दिया. पीएम मोदी ने तेजस्वी को जंगलराज का युवराज कहकर संबोधित किया और सीधे तौर पर कहा कि जो खुद 10वीं पास न हो, वो कैसे युवाओं को रोजगार देने की बात कर सकता है.

यह भी पढ़ें: मध्यप्रदेश उपचुनाव- बीजेपी की जीत पक्की लेकिन चौंका सकते हैं सिंधिया के गढ़ में नतीजे

यहां तक की सुशील मोदी और नीतीश कुमार ने तेजस्वी को बजट के बारे में भी नौसिखिया बताया. दोनों के अलावा अन्य सत्ताधारी पक्ष के नेताओं ने कहा कि तेजस्वी किसी बजट सत्र में उपस्थित नहीं रहे. ऐसे में उन्हें कैसे बजट और रोजगार के बारे में पता होगा. गौर करने वाली बात ये भी है ​कि महागठबंधन के घोषणा पत्र के बाद बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में 19 लाख रोजगार की बात कही है.

मध्यप्रदेश से जुड़ी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
मध्यप्रदेश से जुड़ी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें

फिर से आते हैं पीएम मोदी और नीतीश कुमार की चुनावी रैलियों पर. इन सभी जनसभाओं में केवल और केवल जंगलराज, युवराज और रोजगार जैसे शब्द उछलते रहे, जिनका तेजस्वी यादव को नुकसान से ज्यादा लाभ पहुंचा. सत्ताधारी पक्ष के नेताओं ने 10 लाख रोजगार देने वाली बात इतनी बात कही, कि तेजस्वी की जनसभाओं में उमड़ी भीड़ ने खुद इसका परिणाम दे दिया. तेजस्वी यादव ने जहां रोजगार का मुद्दा प्रमुखता से उठाया, वहीं राहुल गांधी ने लॉकडाउन में श्रमिकों की घर वापसी, पीएम मोदी के बिना किसी अग्रिम निर्देश अचानक से लॉकडाउन, कोरोना के बढ़ते आंकड़े, महंगाई, कृषि कानून जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्र सरकार को घेरने का काम किया.

बिहार में तेजस्वी युवा है इसलिए युवाओं में उनकी पैठ है. इतना ही नहीं, लॉकडाउन में तेजस्वी यादव घर का ऐशो आराम छोड़ गरीब तबके के बीच गए और वहां की स्थितियों का जायजा लिया. उन्होंने बाढ़ पीड़ित इलाकों का भी लगातार दौरा किया और गरीबों को अपने हाथों से खाना खिलाया. उन्होंने ये चाहें चुनावों के लिए किया हो लेकिन उनकी छवि बिहारियों में एक हमदर्द बनकर गई. इसी दौरान सुशील मोदी को परदे पर कहीं नजर ही नहीं आए. वहीं नीतीश मोदी ने न केवल बाहर से बिहार लौट रहे मजदूरों को जहां हैं, वहीं रहने पर जोर दिया, कोटा सहित अन्य शहरों में पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स के बिहार लौटने का भी विरोध किया. यहीं से स्थानीय लोगों के मन में नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी का भाव छाने लगा.

यह भी पढ़ें: नीतीश कुमार का ‘आखिरी चुनाव’, इमोशनल दांव है या फिर सियासी ‘सरेंडर’?

वहीं दूसरी ओर, नीतीश कुमार, सुशील मोदी, पीएम मोदी और अन्य सभी एनडीए के नेता विकास के मुद्दे पर जनता से वोट मांग रहे हैं. राज्य में पिछले 15 सालों से जदयू और एनडीए की सरकार सत्ता में रही है. ऐसे में विकास तो बाकी रहना ही नहीं चाहिए. इसी बीच पीएम मोदी ने पिछले तीन महीनों में प्रदेश में 6 हजार करोड़ रुपये से अधिक परियोजनाओं का शिलान्यास और उदघाटन किया है. ऐसे में पिछले 15 सालों में विकास भी एक जुमला ही लगता है. पिछले कुछ महीनों में नए बने पुलों का टूटना भी एनडीए सरकार के खिलाफ गया है. एनडीए के नेताओं ने भी मुद्दों की जगह केवल तेजस्वी पर निशाना साधा है जबकि तेजस्वी और कांग्रेस के नेता मुद्दों को लेकर मैदान में उतरे हैं.

बिहार के फाइनल परिणाम आने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है. 10 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे. पॉलिटॉक्स के सर्वे के मुताबिक राजद एक बार फिर बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी, साथ ही साथ तेजस्वी यादव प्रदेश की राजनीति के सबसे बड़े नेता बनकर सामने आएंगे. बीजेपी निश्चित तौर पर टक्कर में रहेगी लेकिन कांग्रेस और राजद सहित अन्य सहयोगी दलों के साथ महागठबंधन सरकार बनाने जा रही है. जदयू बीजेपी के सहारे मैदान में टिकी रहेगी. अन्य दलों की बात करें तो असुद्दीन ओवैसी को छोड़ दें तो कोई भी राजनीतिक पार्टी 10 सीटें भी नहीं जीत पा रही. पप्पू यादव की जाप और चिराग पासवान की लोजपा पर नजरें टिकी हुई है. लोजपा केवल नीतीश कुमार से प्रतिशोध लेने मैदान में हैं लेकिन खाते में 10 सीटें भी नहीं हैं. थर्ड फ्रंट के खाते में भी 8 से 12 सीटों से ज्यादा आती नहीं दिख रही.

Google search engine