haryana politics
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हरियाणा के चुनावी दंगल में हुड्डा गुट से अदावत के बीच कुमारी सैलजा की सियासी चालें सुर्खियों में हैं. सैलजा अभी तक हुड्डा समर्थकों की समर्थित रैलियों में नहीं पहुंच रही हैं. हालांकि हाईकमाल जहां चुनाव प्रचार करने जा रहे हैं, वहां सैलजा प्रदेश के पूर्व सीएम भूपिन्दर सिंह हुड्डा के साथ मंच साझा कर रही हैं. हालांकि दोनों नेताओं की अदावत को देखते हुए सैलजा को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने दिल्ली भी बुलाया. इतना ही नहीं, अंबाला के नारायणगढ़ से शुरू हुई ‘हरियाणा विजय संकल्प यात्रा’ में राहुल गांधी ने खुद हुड्डा और सैलजा के हाथ मिलवाएं. हालांकि ये अदावत यहीं खत्म नहीं होते दिख रही है. अब सिरसा सांसद सैलजा राजस्थान में सचिन पायलट की राह पर चल पड़ी है. वे अपनी राजनीतिक तैवरों से ‘आलाकमान तुझसे बैर नहीं, हुड्डा तेरी खैर नहीं’ का संदेश स्पष्ट तौर पर दे रही है.

दरअसल, हुड्डा और सैलजा के बीच ये अदावत इसलिए भी है क्योंकि चुनाव की घोषणा के बाद सैलजा ने सीएम कुर्सी पर दावा ठोक दिया. कुमारी सैलजा हरियाणा कांग्रेस में दलित वर्ग चेहरा हैं. ऐसे में सिरसा सांसद ने कहा कि प्रदेश में अनुसूचित जाति का सीएम होना चाहिए. चूंकि इस वक्त भूपेंद्र हुड्‌डा सीएम कुर्सी के सबसे बड़े दावेदार हैं.

समर्थकों को टिकट न मिलने की नाराजगी

वहीं कांग्रेस के टिकट बंटवारे में पूरी तरह से हुड्डा की चली. 90 टिकटों में से 72 टिकट तो अकेले हुड्डा समर्थकों को ही मिल गए. इसकी वजह से सैलजा नाराज हो गई. यहां तक कि एक सीट पर सैलजा मंच से घोषणा करने के बावजूद अपने समर्थक को टिकट नहीं दिला सकी. यहां से भी हुड्डा समर्थक को तवैज्जो दी गई. इसके बाद इसी सीट के उम्मीदवार से जुड़े समर्थक ने सैलजा के प्रति जातिसूचक शब्द कहे. इससे सैलजा इस कदर नाराज हुईं कि उन्होंने चुनाव प्रचार छोड़ दिया. वह नाराज होकर घर बैठ गईं.

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सैलजा की नाराजगी बढ़ने से हरियाणा में दलित वोटरों की कांग्रेस के प्रति नाराजगी बढ़ने लगी. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी सैलजा की नाराजगी को लेकर कांग्रेस को कोसने लगे. प्रदेश के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर ने तो सैलजा को हाथ का साथ छोड़ बीजेपी में आने तक का न्यौता दे दिया.  इसके बाद सैलजा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे से मिली. नाराजगी दूर हुई और वह प्रचार के लिए आ भी गईं लेकिन कड़वाहट मन की मन में ही रह गयी. हाल में अपने जन्मदिन पर भूपिन्दर सिंह हुड्डा की ओर से दी गई बधाई पर भी सैलजा ने कोई प्रतिक्रिया न देकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं.

तो ये है सैलजा की सियासी बिसात

अब हरियाणा के सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि सैलजा जिस तरह से सियासी बिसात बिछा रही हैं, उसमें राजस्थान के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की झलक नजर आ रही है. हरियाणा की तरह ही राजस्थान में भी कांग्रेस के भीतर इसी तरह की सियासी गुटबाजी देखने को मिली थी. यहां अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट आमने-सामने थे. पायलट गुट ने गहलोत कैंप के खिलाफ जमकर मोर्चेबंदी की, लेकिन हाईकमान के खिलाफ कभी बगावत नहीं की.

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पायलट को इसका इनाम भी मिला. मंच से राहुल ने उनकी तारीफ की तो पार्टी ने पायलट को महासचिव की कुर्सी भी सौंपी. वर्तमान में वे छत्तीसगढ़ के प्रभारी हैं. कहा जा रहा है कि सैलजा भी इसी रास्ते पर चल रही हैं. वर्तमान में जो हरियाणा कांग्रेस की राजनीति है, उसमें सैलजा गुट हुड्डा कैंप के सामने काफी कमजोर स्थिति में है. सैलजा यह बात बखूबी जानती हैं. यही वजह है कि सैलजा हुड्डा गुट का तो विरोध कर रही हैं, लेकिन हाईकमान से करीबी दिखाने की कोशिश भी कर रही हैं. कहा जा रहा है कि इस बहाने सैलजा हरियाणा कांग्रेस में सियासी मोल-भाव बनाए रखना चाहती है.

हरियाणा का सबसे बड़ा दलित चेहरा

हालांकि सिरसा से लोकसभा सांसद कुमारी सैलजा हरियाणा की राजनीति में कोई छोटा नाम नहीं है. उनकी छवि एक दलित नेता की है. सैलजा को राहुल, प्रियंका और सोनिया का करीबी माना जाता है. सैलजा को राजनीति अपने पिता चौधरी दलबीर सिंह से विरासत में मिली है. सैलजा की अंबाला और सिरसा इलाके में मजबूत पकड़ है. इन इलाकों में लोकसभा की 2 और विधानसभा की करीब 20 सीटें हैं. इनके साथ साथ प्रदेश की 36 सीटों पर सैलजा की पकड़ है. पिछले विस चुनाव में हुड्डा और सैलजा गुट के मतभेदों की वजह से ही हवा होने के बावजूद कांग्रेस 31 सीटों पर ही बढ़त बना सकी थी.

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इस बार सैलजा गुट को कांग्रेस ने केवल 9 टिकट दिए हैं. सैलजा इसी वजह से नाराज चल रही हैं. अब राहुल गांधी ने भूपिन्दर हुड्डा और सैलजा के हाथ तो जबरदस्ती मिलवा दिए लेकिन मतभेदों के चलते मन मिलना जरा मुश्किल है. इसी बड़ी कीमत कांग्रेस को हरियाणा चुनावों में चुकानी पड़ सकती है. गौर इस बात पर भी किया जाएगा कि क्या सैलजा भी ठीक वही तरीका अपनाती है जो राजस्थान में सचिन पायलट ने अपनाया था या फिर मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की तर्ज पर तख्ता ही पलटने का माद्दा रखना चाह रही हैं.

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