Politalks.News/Rajasthan/MP. मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की भले ही अभी औपचारिक घोषणा नहीं हुई हो, लेकिन यहां की सियासत जोरों पर है. सत्ताधारी बीजेपी को इन चुनावो में मात देने के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है. कांग्रेस को सत्ता में वापसी के लिए सभी सीटों पर जीत हासिल करनी है इसलिए जोड़ तोड़ की रणनीति पर भी अंदरूनी तौर पर काम किया जा रहा है. कांग्रेस का असली सिरदर्द ज्योतिरादित्य सिंधिया है जिसका 28 में से 16 सीटों पर गहरा प्रभाव है. हालांकि यहां के लोगों में सिंधिया को लेकर हलकी नाराजगी जरूर है लेकिन ये सिंधिया को सिंधिया के गढ़ में मात देने के लिए काफी नहीं है. ऐसे में सिंधिया गढ़ को हिलाने के लिए कांग्रेस एक मास्टर प्लान बना रही है जिसमें राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट सिंधिया के किले में सेंध लगाते हुए दिखाई देंगे.
दरअसल, ग्वालियर-चंबल की सीटों पर सिंधिया का अपना क्षेत्र है यहां उनका अपना दबदबा कायम है. इस संभाग का कुछ इलाका राजस्थान की सीमा से सटा हुआ है. इसी बात का फायदा उठाकर कांग्रेस को उम्मीद है कि सचिन पायलट सिंधिका के गढ़ में सेंध लगा सकते हैं. इतना ही नहीं कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का यह भी मानना है कि पायलट चुनाव-प्रचार में सिंधिया पर भारी पड़ सकते हैं.
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि एमपी कांग्रेस का पायलट को प्रचार में लाना जातिगत रणनीति के लिहाज से भी फायदा हो सकता है. संभाग की 16 सीटों पर गुर्जर-राजपूत वोटर ज्यादा संख्या में हैं. इनमें से भी 9 सीटें गुर्जर बाहुल्य हैं. इन 9 में से कुछ सीटें तो ऐसी हैं जो राजस्थान के जिलों से सटी हैं. राजस्थान के दिग्गज गुर्जर नेता सचिन पायलट यहां पर अपना असर छोड़ सकते हैं. पायलट का इन सीटों पर प्रचार करना भाजपा और सिंधिया की परेशानी बढ़ा सकता है. इसी सोच के साथ पायलट को कम से कम इन सीटों पर चुनावी मैदान में उतारने की रणनीति बनाई जा रही है. कांग्रेस आलाकमान भी इसे सीरियसली ले रहा है.
जब से पायलट के एमपी में चुनाव प्रचार की खबरें मीडिया में आई हैं, राजस्थान सहित अन्य लोगों में भी जिज्ञासा बनी हुई है कि दो जिगरी दो दोस्त जब एक दूसरे के खिलाफ सामने होंगे तब क्या होगा. वे पार्टी के बारे में बोलते हैं या एक-दूसरे के खिलाफ बोलते हैं. हम उम्र नेता पायलट और सिंधिया की साथ की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल भी हो रही हैं. ये फोटो उस वक्त की है जब सिंधिया कांग्रेस में थे और वह दोनों अक्सर एक साथ मंच साझा करते थे.
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ऐसे में कांग्रेस ने हाल के दिनों में राजस्थान में अपने बगावती तेवर से चर्चा में आए तेज-तर्रार नेता सचिन पायलट को इन क्षेत्रों में चुनाव प्रचार में उतारने की योजना बनाई है. सचिन पायलट को मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार में उतारने के पीछे कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति है. जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट एक-दूसरे के दोस्त रहे हैं. पायलट ने जब राजस्थान में बगावती तेवर दिखाए थे, तो सिंधिया ने उनके समर्थन में बयान भी दिया था. गौर करने वाली बात है कि मध्य प्रदेश में जिन 28 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होने हैं, उनमें से अधिकतर सीटें ग्वालियर-चंबल इलाके की हैं, जिसे सिंधिया का प्रभाव क्षेत्र वाला माना जाता है.
इसी साल मार्च में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ सरकार से समर्थन वापस लिया और बीजेपी में शामिल हुए, उस समय सिंधिया समर्थक 22 विधायकों ने भी इस्तीफा दिया था. इसके बाद प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार बनी. बाद में तीन और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. एक सीट पर निलंबन और एक निर्दलीय के इस्तीफा देने से रिक्त सीटों की संख्या 27 हो गई. वहीं तीन दिन पूर्व कांग्रेस के ब्यावरा विधायक के निधन के बाद अब 28 सीटें खाली हो चुकी हैं. इसे लेकर मध्य प्रदेश विधानसभा ने अधिसूचना जारी किया है और केंद्रीय चुनाव आयोग को यह अधिसूचना भेज दी गई है.
सिंधिया समर्थक विधायक इन्हीं इलाकों से आते हैं. मध्य प्रदेश का यह इलाका राजस्थान से सटा हुआ है. ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि सचिन पायलट का चुनाव प्रचार करना कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है.
कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने सचिन पायलट से ग्वालियर-चंबल संभाग की सीटों पर चुनाव प्रचार करने का अनुरोध किया था. हालांकि पायलट की तरह से कोई अधिकारिक सूचना अभी तक नहीं आई है लेकिन उड़ते उड़ते खबर आ रही है कि पायलट ने न हां कहा है और न ही ना. हां, पायलट के करीबी सूत्रों ने ये जरूर कहा कि मेरे लिए पार्टी से बड़ा कुछ नहीं है. मैं एक कांग्रेस नेता हूं और पार्टी जब चाहे जहां मेरा उपयोग कर सकती है. मैं अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटूंगा.
वैसे भी राजस्थान में गुर्जर आरक्षण की आग फिर से सुलगती हुई दिख रही है. सचिन पायलट पहले ही इस संबंध में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर गुर्जर आरक्षण की फाइल आगे बढ़ाने की बात कह चुके हैं. ऐसे में गुर्जरों के लिए पायलट की पैठ पहले से पक्की होती दिख रही है. वहीं किरोड़ी सिंह बैंसला भी राज्य सरकार एवं अपनी ही केंद्र सरकार को गुर्जर आरक्षण आरक्षण और 9वीं अनुसूची में शामिल करने के नाम पर आंखें दिखा चुके हैं. गहलोत सरकार को 15 दिन और केंद्र सरकार को एक महीने का अल्टिमेंटम दिया जा चुका है, कुछ न होने पर दिल्ली कूच की चेतावनी भी दी जा चुकी है.
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ऐसे में यहां गुर्जर नेता होने के चलते सचिन पायलट की भूमिका भी अहम हो जाती है. वैसे पायलट ने गहलोत सरकार में गुर्जर आरक्षण का मामला उठाने की बात कहकर अपनी सरकार का तो बचाव कर लिया है. गुर्जर आरक्षण का प्रभाव मध्य प्रदेश में भी पड़ना निश्चित है. एक नेशनल लीडरशिप होने के नाते भी वहां के गुर्जरों में भी सचिन पायलट की पैठ होना पक्का है. राजस्थान में पिछले कुछ महीनों में सियासी घटनक्रमों के बाद गुर्जरों में सचिन पायलट को लेकर सहानुभूति भी है. उस समय सिंधिया समेत राजस्थान के अन्य बीजेपी नेताओं ने पायलट के साथ ज्यादती होने की बात कहकर उनका पक्ष लिया था लेकिन वापिस लौटने के बाद विधानसभा में पायलट ने उन सभी नेताओं को घेरना जारी रखा जिससे उनकी छवि पर कोई दाग नहीं लगा.
ये कुछ ऐसी गहन बातें हैं जिनके कई तरह के राजनीतिक मायने निकल कर बाहर आते हैं. कांग्रेस इस फैक्टर को भुनाने से कभी पीछे नहीं हटेगी, ऐसा राजनीतिक विशेषज्ञों काम ढृढ मानना है. अब देखना होगा कि कांग्रेस का केंद्रीय आलाकमान इस मामले में एक्शन लेता है या फिर सचिन पायलट की मर्जी को त्वज्जो दी जाती है.
पायलट को मध्य प्रदेश के सियासी मैदान में प्रचार के लिए उतारने के पीछे एक बड़ी वजह ये भी है कि उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी के पास स्टार प्रचारकों के नाम पर कुछ भी नहीं है. दिग्विजय सिंह की स्वीकार्यता संगठन में भले ही कितनी हो परंतु एमपी की सियासत में जो उठा पटक हुई, उसके पीछे कहीं न कहीं दिग्गी राजा की अनभिग्यता को भी माना जाता है. कमलनाथ स्वयं भले ही राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के माहिर खिलाड़ी हो परंतु हजारों की भीड़ को मोहित करने वाला भाषण देने में सक्षम नजर नहीं आते.
कमलनाथ सरकार में पूर्व मंत्री जीतू पटवारी 2018 से पहले तक किसी न किसी तरीके से जनता के आकर्षण का केंद्र बन जाते थे परंतु कांग्रेस पार्टी के सरकार में आने और कैबिनेट मंत्री बनने के बाद उन्होंने जिस तरह के बयान दिए, फैसले लिए, उससे कहीं न कहीं जीतू की सीमा मीडिया प्रभारी तक सीमित रह गई है. सज्जन सिंह वर्मा भी इतना बड़ा जाना पहचाना चेहरा दिखाई नहीं देते.
बात करें दूसरी पीढ़ी के नेताओं यानि यूथ ब्रिगेड की तो दिग्विजय सिंह के युवराज जयवर्धन सिंह और कमलनाथ के उत्तराधिकारी नकुल नाथ अभी तक स्टार किड्स की पहचान से बाहर तक नहीं निकल पाए हैं. पॉलिटिक्स में नेपोटिज्म के कारण उन्हें पद तो मिल गए परंतु जनता में जादू बिखेरने की कला अभी तक नहीं सीख पाए हैं. दोनों में अपने पिताओं के 10 फीसदी गुण भी नजर नहीं आते.
हालांकि दोनों खुद को मध्य प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री मानते हैं. कुल मिलाकर कमलनाथ की टीम में कोई भी ऐसा नहीं है जो शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के समकक्ष नजर आता हो. ऐसे में कमलनाथ को उनकी बराबरी करने के लिए ही सचिन पायलट नाम का ब्रह्मास्त्र चाहिए जो न केवल शिवराज और सिंधिया की काट कर सके, कमलनाथ को सत्ता का सिंगासन भी दिला सके.