Politalks.news/Bihar. बिहार की राजनीति में हमेशा से ही बाहुबलियों का वर्चस्व रहा है. फिर चाहे वो पप्पू यादव हो, शहाबुद्दीन और अनंत सिंह हो या फिर राजन तिवारी. ये सभी नेता किसी भी तरह से बाहुबली बने लेकिन बाद में लालू यादव या नीतीश कुमार जैसे बड़े नेताओं का हाथ पकड़ राजनीति में आ गए. बिहार की राजनीति ऐसे बाहुबलियों से भरी पड़ी है. ऐसे ही एक बाहुबली राजनीतिज्ञ हैं प्रभुनाथ सिंह, जिन पर हत्या सहित कई अन्य अपराधों के आरोप लगे हैं. ये अपने क्षेत्र में जितने लोकप्रिय हैं, उतने ही खतरनाक भी. एक समय वो भी था जब प्रभुनाथ सिंह ने अपने विपक्ष के चुनावी उम्मीदवार को बम से उड़वा दिया था.
सिवान जिले के महाराजगंज सीट से चार बाद सांसद रहे प्रभुनाथ सिंह के राजनीतिक करियर पर गौर करें तो वह कभी लालू प्रसाद यादव के करीबी बने तो किसी वक्त में नीतीश कुमार के कैंप की शोभा बढ़ाते नजर आए. किसी भी पार्टी का टिकट हासिल करना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं रही. राजपूत जाति से आने वाले प्रभुनाथ सिंह ने पहली बार सारण के मशरख विधानसभा सीट से 1985 में चुनाव जीता था. सीमेंट कारोबारी रह चुके प्रभुनाथ सिंह ने ये जीत निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर हासिल की जिससे उनकी धाक अपने क्षेत्र में बन गई. विधायक बनने से पहले वह मशरक के तत्कालीन विधायक रामदेव सिंह काका की हत्या के बाद चर्चा में आए थे. काका की हत्या का आरोप उन पर भी लगा था. इसके बाद भी वे चुनाव में जीत गए. हालांकि बाद में कोर्ट से बरी हो गए.
1990 में जनता दल से टिकट प्रभुनाथ सिंह दोबारा विधायक चुने गए लेकिन जीत की हैट्रिक जमाने से चूक गए. 1995 में अपने ही शागिर्द अशोक सिंह के हाथों उन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. हालात ये हो गए कि मशरक में प्रभुनाथ सिंह की सियासी जमीन सरकने लगी. अपनी खत्म होती राजनीति को देख बौखलाए प्रभुनाथ सिंह बदला लेने की फिराक में लग गए.
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चुनाव के बाद 3 जुलाई, 1995 को शाम साढ़े सात बजे पटना के आवास में विधायक अशोक सिंह की बम मारकर हत्या कर दी गई. हत्या में प्रभुनाथ सिंह और उनके भाई दीनानाथ सिंह को आरोपी बनाया गया. हत्याकांड के बाद प्रभुनाथ सिंह ने पटना की राजनीति छोड़कर दिल्ली का रुख किया और लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए. ये उनका बाहुबल का ही कमाल था कि 1998 के आम चुनाव में प्रभुनाथ सिंह ने समता पार्टी के टिकट पर राजपूत वोटों का गढ़ कहे जाने वाले महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और स्थानीय राजपूतों के सपोर्ट के बिना कांग्रेस के महाचंद्र प्रसाद सिंह को हराकर लोकसभा में पहुंचे. 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने यहां से जीत दर्ज की.
उसके बाद प्रभुनाथ सिंह की सियासी नजदीकियां नीतीश कुमार से बढ़ने लगी और 2004 में हुए आम चुनाव में जदयू के टिकट पर उन्होंने जीत हासिल की. 2009 के लोकसभा चुनाव में वे फिर जीत की हैट्रिक लगाने से चूक गए और राजद के उमाशंकर सिंह के हाथों उन्हें पराजय झेलनी पड़ी.
वर्ष 2012 में महाराजगंज सांसद उमाशंकर सिंह का निधन हो गया और उपचुनाव से ठीक पहले प्रभुनाथ सिंह ने नीतीश यादव का हाथ छोड़ लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाया और राजद में शामिल हो गए. 2013 में महाराजगंज लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राजद के टिकट पर प्रभुनाथ सिंह को जीत मिली. हालांकि उन्हें एक साल ही सांसद का सुख भोगने का मौका मिला और 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में प्रभुनाथ सिंह को फिर शिकस्त झेलनी पड़ी.
23 मई, 2017 में प्रभुनाथ सिंह पर विधायक अशोक सिंह की हत्या के 22 साल पुराने मामले में जुर्म साबित हो गया और उन्हें उम्रकैद की सजा हो गई. आज वे जेल में हैं और जुर्म की सजा काट रहे हैं. इसके बावजूद प्रभुनाथ सिंह का परिवार राजनीतिक तौर पर काफी सक्रिय है. प्रभुनाथ सिंह के भाई केदारनाथ सिंह सारण की बनियापुर सीट से विधायक रह चुके हैं जबकि अन्य दो भाई दीना सिंह और मदन सिंह भी राजनीति से जुड़े हुए हैं. उनके भतीजे सुधीर सिंह सहित परिवार के कई अन्य लोग भी राजनीति से जुड़े हुए हैं.
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प्रभुनाथ सिंह के जीजा गौतम सिंह मांझी सीट से तो समधी विनय सिंह सारण की सोनपुर सीट से विधायक रह चुके हैं. प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह भी एक राजनीतिज्ञ हैं और राजद की तरफ से सारण की छपरा विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. 2019 में हुए 17वीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी के जनार्दन सिंह सिंगरीवाल के सामने उन्हें हार झेलनी पड़ी.
याद दिला दें, ये वहीं रणधीर सिंह हैं जो विश्वकर्मा जयंती पर हथियारों के साथ पूजा करते हुए सोशल मीडिया पर तस्वीर डालकर सुर्खियों में आए थे. विवाद उठने के बाद उन्होंने पोस्ट डिलीट कर दी. सोशल मीडिया पर उनकी जो फोटो सामने आई थी उसमें रिवाल्वर व रायफल से लेकर स्टेनगन जैसे हथियार भी रखे हुए थे. बाद में विधायक ने तस्वीर को काफी पुरानी बताते हुए सफाई दी कि सारे हथियार वैध हैं और लाइसेंसी हैं.