Politalks.News/Bharat. देश का किसान एक बार फिर सड़कों पर उतरने को मजबूर है. इसकी वजह है वो तीन कृषि अध्यादेश जो केंद्र की मोदी सरकार ने संसद में बिल के रूप में पास कराए हैं. संसद में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ये तीनों बिल पेश किए थे और विपक्ष के हंगामे के बीच बहुमत के चलते तीनों बिल पास हो गए. अब विपक्ष के साथ साथ देश के कई इलाकों में किसान भी इन बिलों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां तक की संसद तक कूच करने की भी तैयारी चल रही है. यहां तक की विरोध को देखते हुए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उतरना पड़ा और विपक्ष पर बरसते हुए उन्होंने जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया.
पीएम मोदी ने शुक्रवार को ऐतिहासिक कोसी रेल महासेतु को राष्ट्र को समर्पित करने और बिहार के रेल यात्रियों की सुविधाओं के लिए 12 रेल परियोजनाओं का शुभारंभ करने के बाद अपने संबोधन में खासतौर पर कांग्रेस को आड़े हाथ लिया और विधेयकों का विरोध कर किसानों को भ्रमित करने का प्रयास करने का आरोप जड़ दिया. आखिर ऐसा क्या है इन तीनों कृषि बिलों में जिनका सड़क से लेकर संसद तक विरोध हो रहा है. यहां तक की इस बिल के विरोध एनडीए में शामिल अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर ने मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया. आइए विस्तार से जानते हैं इन दिनों बिलों के बारे में …
कृषि क्षेत्र से जुड़े ये तीन बिल हैं-
- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल,
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल,
- मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल.
केंद्रीय कैबिनेट पहले ही इनसे जुड़े अध्यादेश पास कर चुकी है, जिन्हें अब संसद में बिल के रूप में पेश किया गया है. लोकसभा से गुरुवार को विश्वकर्मा जयंती के दिन तीनों कृषि बिल पास हो गए. केंद्र सरकार बिलों को ऐतिहासिक कृषि सुधार विधेयक बता रही है जबकि विपक्ष इन्हें किसानों की कमाई का जरिया लूटने का तरीका कह रही है.
वैसे तो सरकार के इन बिलों का विरोध तब से ही किया जा रहा है, जब से अध्यादेश पास किए गए. किसानों और किसान संगठनों का कहना है कि ये नये तथाकथित कृषि सुधार लागू होने से किसान और उसकी उपज पर प्राइवेट कंपनियों का कब्जा हो जाएगा और सारा फायदा बड़ी कंपनियों को मिलेगा.
इस अध्यादेश का मूल उद्देश्य एक देश, एक कृषि बाजार की अवधारणा को बढ़ावा देना और एपीएमसी बाजारों की सीमाओं से बाहर किसानों को कारोबार के साथ ही अवसर मुहैया कराना है. ताकि किसानों को फसल की अच्छी कीमत मिल सके. यह अध्यादेश राज्यों के कृषि उत्पाद मार्केट कानूनों (राज्य APMC Act) के अंतर्गत अधिसूचित बाजारों के बाहर किसानों की उपज के फ्री व्यापार की सुविधा देता है. इस अध्यादेश के प्रावधान राज्यों के एपीएमसी एक्ट्स के प्रावधानों के होते हुए भी लागू रहेंगे. केंद्र सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे.
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यह अध्यादेश इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग को भी बढ़ावा देने वाला है जिससे उपज की ऑनलाइन खरीद-फरोख्द भी की जा सकेगी. अध्यादेश में यह भी व्यवस्था है कि कोई भी व्यापार करने पर राज्य सरकार किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स से कोई बाजार फीस, सेस या प्रभार नहीं वसूलेगी.
कृषि विशेषज्ञों की माने तो ये तीनों बिल किसानों को उनकी उपज देश में कहीं भी बेचने की इजाजत देता है. इस तरह ये बिल सरकार की वन नेशन वन मार्केट का मॉडल लागू करने में सहायक हैं. इस नियम से खासकर मंडी व्यापारी बहुत नाराज हैं. उनका कहना है कि इससे बाहरी या प्राइवेट कारोबारियों को फायदा पहुंचेगा. इस अध्यादेश के समर्थकों का मानना है कि इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी जबकि विरोधी खेमा कह रहा है कि इस अध्यादेश से मंडी एक्ट केवल मंडी तक ही सीमित कर दिया गया है. मंडी में खरीद-फरोख्त पर शुल्क लगेगा जबकि बाहर बेचने-खरीदने पर इससे छूट मिलेगी.
छोटे किसानों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए बिल
सरकार का कहना है कि ये बिल छोटे किसानों को ध्यान में रखते हुए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत तैयार किए गए हैं. बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और किसानों को अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा. किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर प्रोसेसर्स, एग्रीगेटर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा. इससे बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों पर नहीं रहेगा और साथ ही किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स तक पहुंच भी सुनिश्चित होगी. इससे किसानों की आय में सुधार होगा.
इसके साथ ही ये बिल किसानों की उपज की वैश्विक बाजारों में आपूर्ति के लिए जरूरी आपूर्ति चेन तैयार करने को निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करने में एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा. किसानों की ऊंचे मूल्य वाली कृषि के लिए तकनीक और परामर्श तक पहुंच सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें ऐसी फसलों के लिए तैयार बाजार भी मिलेगा.
इस व्यवस्था से निजी निवेशक हस्तक्षेप के भय से मुक्त हो जाएंगे. साथ ही उत्पादन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आजादी से व्यापक स्तर पर उत्पादन करना संभव हो जाएगा और इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में निजी/प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा, इससे कोल्ड स्टोरेज में निवेश बढ़ाने और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी.
संशोधन के तहत यह व्यवस्था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है. सरकार का कहना है कि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों ही के लिए ही यह मददगार साबित होगा. इसके साथ ही भंडारण सुविधाओं के अभाव के कारण होने वाली कृषि उपज की बर्बादी को भी रोका जा सकेगा.
इस अध्यादेश के जरिए अनाज, दलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को अनिवार्य वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है. यानी अब इनका स्टोरेज किया जा सकेगा. सरकार का मानना है कि किसानों की अच्छी पैदावार होने के बावजूद कोल्ड स्टोरेज या निर्यात की सुविधाओं के अभाव में और वस्तु अधिनियम के चलते अपनी फसल के सही दाम नहीं ले पाते हैं.
निजी कंपनियां करेंगी खेती, किसान बन जाएंगे मजदूर
विपक्ष इन बिलों का जमकर विरोध कर रहा है. विपक्ष का आरोप है कि ये बीजेपी की व्यवसाईयों को फायदा देने के लिए बिल पास कराए गए हैं. विपक्ष का दावा है कि अब निजी कंपनियां खेती करेंगी जबकि किसान मजदूर बन जाएगा. किसान संगठन, किसान व कांग्रेस समेत कुछ राजनीतिक दल इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे है. किसान नेताओं का कहना है कि इसमें एग्रीमेंट की समय सीमा तो बताई गई है लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नहीं किया गया है.
विरोध के पीछे एक दलील ये भी दी जा रही है इससे मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगा और निजी कारोबारियों या बाहरी कंपनियों की मनमानी बढ़ जाएगी. लोगों का ये भी कहना है कि इसके बाद किसानों की जमीन या खेती पर प्राइवेट कंपनियों का अधिकार हो जाएगा और किसान मजबूर व मजदूर बनकर रह जाएगा. उपज के स्टोरेज से कालाबाजारी भी बढ़ेगी और बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे.
ये भी कहा जा रहा है कि जब मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा तो किसान पूरी तरफ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर निर्भर हो जाएगा. इसका नतीजा ये होगा कि बड़ी कंपनियां ही फसलों की कीमत तय करेंगी. कांग्रेस ने तो इसे नया जमींदारी सिस्टम तक बता दिया है. पंजाब में भी इस बिल का जमकर विरोध हो रहा है.
प्रधानमंत्री ने किया आश्वस्त, एपीएमसी पर राजनीति का आरोप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के किसानों को आश्वस्त किया कि लोकसभा से पारित कृषि सुधार संबंधी विधेयक उनके लिए रक्षा कवच का काम करेंगे और नए प्रावधान लागू होने के कारण वे अपनी फसल को देश के किसी भी बाजार में अपनी मनचाही कीमत पर बेच सकेंगे. प्रधानमंत्री ने विपक्षी पार्टियों, खासकर कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह इन विधेयकों का विरोध कर किसानों को भ्रमित करने का प्रयास कर रही हैं और बिचौलियों के साथ किसानों की कमाई को बीच में लूटने वालों का साथ दे रही हैं. उन्होंने देश के किसानों से आग्रह किया कि वे इस भ्रम में न पड़ें और सतर्क रहें. पीएम मोदी ने कहा कि किसान और ग्राहक के बीच जो बिचौलिए होते हैं, जो किसानों की कमाई का बड़ा हिस्सा खुद ले लेते हैं, उनसे बचाने के लिए ये विधेयक लाए जाने बहुत आवश्यक थ़े. ये विधेयक किसानों के लिए रक्षा कवच बनकर आए हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि एपीएमसी एक्ट को लेकर अब ये लोग राजनीति कर रहे हैं. दुष्प्रचार किया जा रहा है कि सरकार के द्वारा किसानों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का लाभ नहीं दिया जाएगा. ये भी मनगढ़ंत बातें कही जा रही हैं कि किसानों से धान-गेहूं इत्यादि की खरीद सरकार द्वारा नहीं की जाएगी. ये सरासर झूठ है, गलत है, किसानों को धोखा है. उन्होंने कहा कि सरकारी खरीद भी पहले की तरह जारी रहेगी, कोई भी व्यक्ति अपना उत्पाद दुनिया में कहीं भी जहां चाहे वहां बेच सकता है. पीएम मोदी ने कहा कि 21वीं सदी में भारत का किसान बंधनों में नहीं रहेगा और खुलकर खेती करेगा. यही देश की जरूरत है और समय की मांग भी है.