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हरियाणा विधानसभा चुनावों के बीच ऐन वक्त पर कांग्रेस की गुटबाजी सामने आने लगी है. इसका असर यह हुआ है कि चुनावी माहौल से पहले जहां कांग्रेस की हवा चल रही थी, अब उन हवाओं ने अपना रुख बदल विपरीत दिशा में बहना शुरू कर दिया है. इन हवाओं में हरियाणा की बड़ी नेता एवं कांग्रेस की वर्तमान सांसद कुमारी सैलजा के बीजेपी में शामिल होने की संभावनाएं भी उड़ रही हैं. उनकी चुप्पी और राज्य के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर का बयान यही संकेत दे रहा है. इसी बीच कांग्रेस का एक और बड़ा नेता सैलजा की राह पर चलने की तैयारी कर रहा है. वजह भी वही है और अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस का अंजाम भी वैसा ही होने वाला है.

कांग्रेस के इस नेता का नाम है रणदीप सिंह सुरजेवाला, जो वर्तमान में पार्टी के राज्यसभा सांसद हैं. सुरजेवाला का राज्य के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से 36 का आंकड़ा है. मंशा भी वहीं है – राज्य का मुख्यमंत्री बनना. वे कैंथल से अपने लिए टिकट की डिमांड भी आलाकमान से कर रहे थे लेकिन लगातार दो चुनाव हारने के बाद उनकी इस मांग को पूरी तरह से कुचल सा दिया गया.

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हरियाणा विधानसभा चुनाव की शुरुआत सुरजेवाला मीडिया की सुर्खियों में छाए हुए थे. हालांकि अपने धुर विरोधी भूपिंदर सिंह हुड्डा के खिलाफ बिना किसी प्रभाव के वे पीछे हटने को तैयार हुए. हालांकि सुरजेवाला को अभी भी सीएम पद की उम्मीद है लेकिन जो टिकट बंटवारे में हुआ और जो सोनिया गांधी की करीबी कुमारी सैलजा के साथ हो रहा है, उससे आहत होकर सुरजेवाला हरियाणा में बीजेपी के लिए ‘कमल’ खिलाने में सहयोग कर सकते हैं.

चुनावी कैंपेन से दूर हैं सुरजेवाला

दरअसल, रणदीप सिंह सुरजेवाला ने अपने लिए कैंथल और अपने कुछ समर्थकों के लिए 5-6 टिकटों की मांग की थी. आलाकमान ने न तो सुरजेवाला की सुनी और न ही उनके चेहतों की. कैंथल सीट से उनके सुपुत्र आदित्य सुरजेवाला को टिकट देकर रणदीप को बस लॉलीपोप थमा दी. बस फिर क्या था, सुरजेवाला ने पार्टी के लिए प्रचार से दूरी बना ली. अब वे केवल आदित्य की रैलियों एवं चुनाव प्रचार में नजर आ रहे हैं. सैलजा की तरह उन्होंने भी हर तरह से दूरी बनाना ठीक समझा और चुप्पी साध रखी है.

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दूसरी तरफ, राहुल और सोनिया गांधी सैलजा को मनाने में जुटे हुए हैं. उसके बाद ही सुरजेवाला का नंबर आएगा. दोनों नेताओं की टिकट डिमांड तो मानी नहीं गयी है. अब नई मुसीबत दोनों को सीएम पद न लेने के लिए भी राजी करना टेड़ी खीर साबित होने वाला है. हालांकि रणदीप सिंह सुरजेवाला का हरियाणा में कोई खास जनाधार नहीं है लेकिन राजनीतिक विरासत होने के चलते एकआता सीटों पर उनका प्रभाव जरूर है.

बीते दो चुनावों में हार का स्वाद चख चुके सुरजेवाला

कैथल सीट पर रणदीप सिंह के पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला (अब दिवंगत) ने 2005 में जीत दर्ज की थी. इससे पहले वे नरवाना सीट से चार बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं. उनके बाद सुरजेवाला ने 2009 और 2014 में कैथल सीट पर विजयी पताका फहराई लेकिन उसके बाद वे कोई चुनाव नहीं जीत पाए. पहले 2019 में कैथल विधानसभा सीट और बाद में 2020 में जींद विधानसभा उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

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गांधी परिवार के विश्वस्तपरस्त होने के चलते सुरजेवाला को पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया. अब आदित्य को टिकट देकर सुरजेवाला को शांत रखने का प्रयास किया गया है. हालांकि आदित्य हरियाणा में सबसे कम उम्र के चुनावी प्रत्याशी हैं और न के बराबर राजनीतिक अनुभव होने के चलते उनका दावा 63 वर्षीय लीला राम के सामने कमतर नजर आ रहा है.

आदित्य के लिए मंच सांझा करेंगे सुरजेवाला

लीलाराम कैंथल से रणदीप सिंह सुरजेवाला को भी हार का स्वाद चखवा चुके हैं. लीलाराम ने 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में सुरजेवाला को सीनियर को 1,246 मतों से हराया था. जींद से उप चुनाव हारने के बाद सुरजेवाला की साख प्रदेश सहित पार्टी में भी कम हुई है. हालांकि रणदीप सिंह के चुनावी प्रचार से बाहर रहने या पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन एक राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के नाते पार्टी का बचाव करना और ​सत्तारूढ़ सरकार पर आरोप जड़ना उन्हें बखूबी आता है. ऐसे में पार्टी सैलजा को मनाने के बाद रणदीप सिंह सुरजेवाला को भी मनाने का प्रयास जरूर करेगी. तब तक अपनी राजनीतिक विरासत बचाने की कोशिश में सुरजेवाला आदित्य के साथ मंच साझा करते हुए तो जरूर दिखाई देंगे.

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