Politalks.News/Rajasthan. छोटे थे, तो मोहल्ले में कभी कभार नौटंकी और कठपुतली होती थी. पास वाले बाड़े के मैदान पर रामायण भी होती थी, रामायण के दौरान कई बार सीटी बज जाने पर मोहल्ले वालें में महाभारत भी हो जाती थी. अब दौर बदल गया, रामलीला और नोटंकियाँ बंद हो गई हैं.
बदले दौर में, बड़े पर्दे की बड़े बजट वाली फिल्में आने लगी, छोटे पर्दों पर बड़े सीरियलों की भरमार है. अब वेब सीरिज का भी जमाना आ चुका है. आज टीवी न्यूज चैनल्स की भरमार है. दिन भर लोकतंत्र, संविधान, राजनीति, सरकार, सियासी ड्रामेबाजी की खबरों की भरमार है. इसमें कुछ छूट जाता है तो लोकतंत्र की वह तकलीफ, जिसके लिए डिजिटल न्यूज चैनल्स चल रहे हैं.
दौर बदला तो राजनीति, सियासत और सत्ता के खेल के तरीके भी बदल गए. कई राज्यों के बाद राजस्थान का सियासी ड्रामा भी ठीक किसी मल्टीस्टारर वेब सीरीज की तरह पूरे देश में छाया हुआ है. जनता में इसके अंत को जानने की उत्सुकता है, कौतूहल है, जिज्ञासा है. मल्टीस्टारर मूवीज/वेब सीरीज की खासियत ही ऐसी होती है, उसमें सबकुछ होता है, हीरो, विलेन, पुलिस, कोर्ट, नैतिकता, अनैतिकता और भी बहुत कुछ.
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इन दिनों राजस्थान सियासत की कहानी भी किसी वेब सीरीज की तरह ही चल रही है. पिछले 20 दिनों से चल रही इस सीरीज का हर दिन एक नया एपिसोड सामने आता है, सीरीज बहुत हिट हो चुकी है, देश की निगाहें टिकी हुई हैं. सही कहें तो इस सियासी वेब सीरीज ने असली सीरीज बनाने वालों को घनचक्कर बना दिया है. हर रोज का एपिसोड एक नए ट्विस्ट के साथ अगले एपिसोड का इंतजार छोड़ जाता है.
इस सीरीज का आगाज ही बहुत शानदार देखने को मिला. शुरूआत में एक सत्ताधारी राजनीतिक दल होता है. उसके दो भाई सामान नेताओं में वर्चस्व को लेकर त्योंरियां चढ़ जाती है. घर का झगड़ा घर में सुलझ नहीं पाता, और छोटे भईया, नाराज होकर बड़े भईया को गिराने के लिए घर के सबसे बड़े विरोधी खेमे के गांव में जाकर बैठ जाते हैं.
अब ससुरा 20 दिन हो गए. न तो छोटे भईया, बड़े भईया को गिरा पाए और ना ही वापस गांव से लौटने का नाम ले रहे हैं. वेब सीरीज देख रही, सारी पब्लिक परेशान, हर एक के पास बस सवाल पर सवाल.
छोटे भईया, बड़े भईया को गिरा पाएंगे कि नही? बड़े भईया, गिरेंगे तो गिरेंगे कैसे? नहीं गिरेंगे तो गिरने से बचेंगे कैसे? छोटे भईया, विरोधियों के गांव से वापस लौटेंगे की नहीं? लौटेंगे तो क्या होगा? नहीं लौटे तो क्या दूसरे गांव के ही हो जाएंगे. लौटेंगे तो, अकेले ही आएंगे या विरोधी गांव के लोग भी साथ में आएंगे. छोटे भईया, उनके साथ होंगे या वो छोटे भईया के साथ होंगे? जितने मुंह उतने सवाल.
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कौतूहल बना हुआ है. पब्लिक है, पिक्चर देखती है, तो आगे क्या होगा, इसको लेकर कई तरह के सवाल भी करती रहती है. एक ने पूछ लिया कि छोटे भईया, जब बड़े भईया को गिराने का संकल्प लेकर दूसरे के गांव गए तो, गिराने के लिए जरूरी यानि पूरा सामान साथ लेकर क्यों नहीं गए? कहीं छोटे भईया के साथ चोट तो नहीं हो गई. सामान जो ले जाना था, क्या वो सूटकेस में नहीं आ सका, क्या सूटकेस छोटा पड़ गया. या फिर जिन पर भरोसा किया, उन्होंने छोटे सूटकेस में जाने से इंकार कर दिया?
जो भी हो वेब सीरीज बहुत अच्छी चल रही है, अभी तक 20 एपिसोड आ चुके हैं. लगभग 15 और आने बाकी हैं. अब लग रहा है कि शायद छोटे भईया को अपने दोस्तों के साथ विरोधी गांव से लौटना पड़ेगा? लौटेंगे कैसे? यह भी भारी समस्या हो गई. ऐसे ही बिना गिराए लौटना था तो विरोधी के गांव जाकर बैठने की कोई जरूरत ही क्या थी?
हालांकि विरोधी खेमे के गांव के मुखिया पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कैसे भी हो छोटे भईया की बात रह जाए. उनका सम्मान बच जाए. हालात ऐसे हो गए हैं कि छोटे भईया के सम्मान से अब विरोधी खेमे के पूरे गांव का सम्मान जुड़ गया है. सो छोटे भईया का सम्मान बच जाए, तो उनकी भी कुछ बात रह जाएगी.
वैसे कुछ लोग भी उकता भी गए हैं, झल्ला रहे, बोले रहे हैं कि ई क्या माजरा है सुसरा, 20 दिन हो गए कबड्डी-कबड्डी की तरह खेलते हुए एक भी ऐसी लंगड़ी टांग नहीं मारी कि बड़े भईयां धड़ाम से गिर जाएं और कम से कह बड़े भईया नजर तो आ रहे हैं, छोटे भईया तो गायब ही हो गए हैं. किसी ने बताया कि ट्वीटर पर कल ही तो नजर आए छोटे भईया. बड़े भईया ने कल जिसे छोटे भईया की पदवी पर बिठाया था, उनको इलेक्ट्रॉनिक बधाई दी थी.
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बधाई मिलते ही नई पदवी पर बैठे बड़े भईया के खास ने भी कह दिया, धन्यवाद. घर के सारे मुखिया छोटे भईया को मनाने में लग रहे. आ जाओ-आ जाओ, यह घर तुम बिन सूना-सूना है, आ जाओ ना छोटे भईया. इतनी भी नराजगी काहे. दो-तीन दिन बाद राखी भी आ रही है. सब मिल जुलकर राखी का त्योंहार मना लेंगे. सूनी कलाइयां, राखी से भर देंगे. लेकिन छोटे भईया हैं कि आने का नाम ही नहीं ले रहे.
छोटे भईयां राखी तक आ जाएं तो ठीक. फिर उसके बाद आएगा, 15 अगस्त. यानि आजादी का दिन. ऐसे में बड़े भईया ने छोटे भईया के सम्मान में, एक दिन पहले यानि 14 अगस्त को बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया है. अब चूंकि छोटे भईया, पहले ही कह चुके हैं, कि वो केवल बड़े भईया से नाराज हैं, उन्होंने घर नहीं छोड़ा है, इससे तो कोई अच्छी बात हो ही नहीं सकती. 14 को बड़े भईया ने कार्यक्रम आयोजित किया है, घर का कार्यक्रम है, अब तो आना ही पड़ेगा.
दूसरों के गांव में नाराज होकर कब तक बैठे रहोगे? आखिर उनके वहां भी इतनी जगह तो दिखाई नहीं देती कि आपको खुद के घर में एडजस्ट कर लें? ऐसा तो हो नहीं सकता कि कोई अपने लोगों को घरों से बाहर निकाल कर दूसरे घर वाले को अपने मुख्य कमरे में बैठने दें? आइड-साइड के छोटे कमरे में बैठाया तो वो पसंद नहीं आएगा?
अगर किसी ने कोई गणित बनाकर मुख्य कमरे में बैठा भी दिया तो उनके खुद के घर की सारी गणित बिगड़ते देर नहीं लगेगी. फिर घर में अम्माजी भी हैं, उनसे भी पूछना पड़ेगा. आखिर दो-दो बार मुखिया रही हैं. ऐसे में अम्माजी को इग्नोर नहीं किया जा सकता. देख लो एक छोटे भईया को इग्नोर किया गया तो घर का क्या हाल हो गया? अब जरा सोचो अगर अम्माजी को इग्नोर किया गया तो, फिर क्या होगा?
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यानि कि कोई अपनी गणित खराब करके छोटे भईया कि गणित बिठाने के लिए नहीं बैठा है. सबको अपना घर प्यारा होता है. बिना मतलब और बिना स्वार्थ के ऐसे ही बाहर वालों को घर में नहीं रखा जाता. रख भी लिया जाता है तो मतलब खत्म होते ही जय रामजी की कह दिया जाता है.
राजस्थान की सियासी सीरीज अभी खत्म नहीं हुई है. लेकिन ये पब्लिक है, देखो कितनी बातें सोच लेती है. क्या-क्या सोच लेती है, भगवान ही बचाए इस पब्लिक से.