कांग्रेस की सियासी खींचतान भी बड़ी वजह रही गुजरात हार की, हिमाचल में पायलट ने भरी विजयी उड़ान

हिमाचल में कांग्रेस की जीत को प्रदेश में चली आ रही पुरानी परंपरा के आधार पर किया जाए जज तो राजस्थान में भी है परिवर्तन का ट्रेंड है, फिर ऐसे में राजस्थान में भी कांग्रेस की हालात होगी पतली! राजस्थान में अपनी कुर्सी बचाने में लगे रहे सीएम अशोक गहलोत गुजरात में इस बार नहीं दिखा पाए सियासी जादूगरी, जबकि 2017 के चुनाव में मनवा दिया था लोहा, वहीं पायलट ने हिमाचल में जो कहा करके दिखाया

Sachin Pilot in Himachal Pradesh
Sachin Pilot in Himachal Pradesh

Sachin Pilot in Himachal Pradesh: गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद कांग्रेस को एक राज्य में खुशी तो दूसरे राज्य में हार से दो चार होना पड़ा है. बात करें हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की तो 68 सीटों वाली हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस ने 40 सीटें हासिल करते हुए बहुमत से भी अधिक का आंकड़ा पार कर लिया. उधर बीजेपी को पिछले विस चुनाव के मुकाबले 19 सीटों का नुकसान हुआ. तीन सीट अन्य को मिली. हिमाचल विधानसभा चुनावों में मिली जीत का क्रेडिट राजस्थान के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट को भी निश्चित तौर पर दिया जाना चाहिए क्योंकि हिमाचल के ऑब्जर्वर की भूमिका में रहे सचिन पायलट ने 7 से 8 दिन तक लगातार 22 से ज्यादा जनसभाओं के साथ कई रोड़ शो हिस्सा बने. जबकि गुजरात में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रभारी रघु शर्मा ने भी मेहनत तो बहुत की लेकिन वहां वो जादू दिखाने में असफल रहे. ऐसे में हिमाचल में मिली सफलता को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ‘पायलट की हिमाचल में उड़ान’ को तरजीह दे सकता है.

वहीं राजस्थान कांग्रेस में जारी पुरानी अंदरूनी खींचतान का असर यहां भी नजर आ रहा है, जहां कुछ नेता हिमाचल जीत को महज प्रदेश में चली आ रही पुरानी परंपरा के आधार पर जज कर रहे हैं. आपको बता दें कि अगर ऐसा ही है तो राजस्थान में भी परिवर्तन का ट्रेंड है, फिर ऐसे में तो राजस्थान में भी कांग्रेस की हालात पतली हो सकती है. जबकि यहां कांग्रेस के सभी दिग्गज कांग्रेस की सरकार रिपीट करने क़्क़ दावा ठोक रहे हैं. हालांकि, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हिमाचल में हमेशा से सत्ता परिवर्तन की परंपरा रही है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 44 सीटों पर जीत हासिल करते हुए सत्ता का कब्जा जमाया था. लेकिन इस बार बीजेपी ने इस मिथक को तोड़ने के हरसंभव भरकस प्रयास किए थे. यहां तक कि एक दिन पहले तक तमाम राष्ट्रीय और प्रादेशिक चैनल्स पर आने वाले एग्जिट पोल्स या तो बीजेपी की जीत बता रहे थे या बता रहे थे कांटे की टक्कर, जबकि एग्जिट पोल के तमाम नतीजों को गलत साबित करते हुए कांग्रेस ने यहां एक तरफा जीत हासिल की और अब सत्ता पर काबिज होने की तैयारी कर रही है.

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वहीं दूसरी तरफ, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मंत्री रघु शर्मा को गुजरात विस चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. गुजरात में गहलोत के आब्जर्वर बनने के बाद राजस्थान के मंत्रियों और विधायकों की ड्यूटी भी लगाई थी. वहीं रघु शर्मा को पहले ही बप्रदेश प्रभारी बनाया दिया गया था लेकिन दोनों प्रमुख नेताओं का प्रभाव गुजरात में फीका रहा. आपको बता दें कि 2017 में गुजरात विस चुनावों में अशोक गहलोत को प्रभारी बनाया गया, तब चुनाव लड़ने की स्टाइल से लेकर कैंपेन तक की चर्चा देशभर में थी. कांग्रेस वॉर रूम से लेकर ग्राउंड तक गहलोत का असर और प्रजेंस थी. उस वक्त स्थानीय समीकरणों के अलावा गहलोत ने आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ने की रणनीति तैयार की थी. हर विधानसभा सीट पर राजस्थान के अपने विश्वासपात्र नेताओं को जिम्मेदारी देकर माइक्रो मैनेजमेंट किया था.

लेकिन इस बार सीनियर ऑब्जर्वर के तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की वह जादुई स्टाइल गायब थी. सीएम गहलोत ने गुजरात में दो दर्जन के आसपास सभाएं जरूरी कीं, लेकिन ग्राउंड पर चुनाव 2017 वाली रणनीति से नहीं लड़ा गया. 2017 वाला न ग्राउंड वर्क था, न रणनीति. यहां तक कि राजस्थान कांग्रेस में जारी झगड़ों की वजह से सीएम गहलोत की गुजरात चुनावों में वो धार गायब थी और गहलोत का सारा ध्यान राजस्थान में अपनी कुर्सी बचाने में ही लगा रहा. इस तरह इस बार गुजरात से ये सभी गहलोत फेक्टर कमजोर रहे. यही कारण हैं कि गुजरात की बहुत बुरी हार पर सीएम अशोक गहलोत की सियासी जादूगर और खाटी रणनीतिकार की छवि पर भी अब सवाल उठ रहे हैं. रघु शर्मा ने तो गुजरात प्रभारी पद से इस्तीफे की पेशकश कर इस बात को स्वीकार भी कर लिया है.

इन सबके अलावा गुजरात की हार को लेकर सियासी गलियारों से निकल कर जो कारण सामने आ रहे हैं, उनमें यह कि बीती 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक के बहिष्कार के साथ ही गहलोत समर्थक 91 विधायकों ने स्पीकर को अपने इस्तीफे सौंप दिए थे. इस घटना के बाद गुजरात में ड्यूटी लगाए गए गहलोत समर्थक मंत्री-विधायक ग्राउंड पर ही बनहीं गए. राजस्थान के सियासी विवाद में फंसने के कारण ज्यादातर मंत्रियों ने गुजरात में ग्राउंड स्तर पर काम नहीं किया. यहां तक कि इनमें से ज्यादातर विधायक अभी भी कंफ्यूज ही हैं कि हम स्टैंड किसके साथ रहें, अशोक गहलोत या सचिन पायलट?

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इधर, सचिन पायलट ने हिमाचल प्रदेश के चुनावों में लगातार प्रचार किया था, जिसका बेहतरीन परिणाम कांग्रेस को यहां देखने को भी मिला. स्टार प्रचारक बनाकर हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भेजे गए सचिन पायलट ने लगातार 7-8 दिन तक करीब 22 से ज्यादा जनसभाएं की और कई रैलियों का हिस्सा बने. इस दौरान हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में भी पायलट की चुनावी सभाओं में भारी जनसैलाब देखने को मिला. आपको बता दें कि सचिन पायलट का ना सिर्फ युवाओं के बीच है जबरदस्त क्रेज है बल्कि हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा पर उनकी पकड़ पायलट जो ग्लोबल बना देती है, और उस पर अच्छा वक्ता होना है सोने पर सुहागा जैसा. इसमें कोई शक नहीं कि पायलट खेमे को हिमाचल की इस जीत से मजबूती मिली है. इस जीत के बाद पायलट का सियासी परसेप्शन बदलेगा और पायलट खेमा अब आक्रामक होकर इस जीत को अपने पक्ष में भुनाने का प्रयास भी करेगा. वहीं सीएम अशोक गहलोत की रणनीति पर सवाल उठेंगे, इसमें भी कोई शक नहीं होना चाहिए.

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चूंकि आगामी वर्ष में राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव होने हैं और यहां भी एक बार बीजेपी और अगली बार कांग्रेस का सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड है. इसे देखते हुए और वक्त की नजाकत को समझते हुए आलाकमान को सचिन पायलट के पक्ष में कोई बड़ा फैसला करना ही होगा. इसमें कोई शक नहीं है कि राजस्थान कांग्रेस में जारी अंदरूनी टकराव भी गुजरात में बुरी हार की एक वजह बना है. जब राज्य के बाहर गहलोत बनाम पायलट का मुद्दा प्रभाव रखता है तो राजस्थान में क्यों नहीं? राजस्थान में तो इस टकराव एवं खींचतान को लेकर कई बार बवाल उठ चुका है और हर बार आलाकमान को बीच-बचाव करना पड़ा है. इसी सियासी खींचतान के चलते अब आम जनभावना भी कांग्रेस से हटती जा रही है. चूंकि अब गुजरात और हिमाचल के चुनाव का शोर थम चुका है, राहुल गांधी वैसे ही सक्रिय राजनीति से अलग होकर भारत जोड़ो यात्रा के सफर पर निकल गए हैं. ऐसे में सियासी गलियारों में जबरदस्त चर्चा है कि अब जल्द ही कांग्रेस आलाकमान निश्चित तौर पर सचिन पायलट के लिए कुछ सोचेगा, जिसमें हिमाचल में कांग्रेस की जीत का जश्न एक अहम योगदान साबित होगा.

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