रामपुर में बदल रहा ‘आजम माहौल’, जो बनते थे कभी आवाज, अब क्यों छोड़ रहे हैं साथ?

समाजवादी पार्टी और आजम खान के वफादार एक के बाद एक पकड़ रहे अलग राह, आजम के अजेय गढ़ में लग रही सेंध, अखिलेश की चुप्पी और अनदेखी से सपा गंवा रही अपना एक मजबूत किला

aazam khan sp leader
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UP_Bypoll Rampur Azam Khan. उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट इस समय हॉट बनी हुई है. करीब तीन दशक से अधिक समय तक यह सीट सपा की सत्ता की धूरी रही है. इस सीट पर आजम खान का प्रभुत्व है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो रामपुर में आजम का मतलब सपा और सपा का मतलब केवल और केवल आजम खान है. यहां सीट बंटवारे से लेकर सपा के सभी फैसले आजम के अलावा कोई नहीं लेता. यहां आजम खान का एकछत्र राज है. आजम की छत्रोछाया में न केवल रामपुर, बल्कि आसपास के जनपदों में भी सपा लंबे समय तक मजबूत रही है. लेकिन अब सियासी आंकड़े काफी बदल रहे हैं. भड़काउ भाषण मामले में तीन साल की सजा सुनाए जाने के बाद यहां की सियासी हवा तेजी से बदली है. कभी आजम के लिए आवाज उठाने वाले ही अब पार्टी का साथ छोड़ जाने लगे हैं, जिसका असर सपा पर पड़ना निश्चित दिख रहा है.

दरअसल, आजम खान खुद रामपुर सीट से 13 बार चुनाव लड़ चुके हैं. इनमें से 10 बाद विधायक और एक बार सांसद रहे हैं. अब सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान के सजा याफ्ता होते ही उनकी आवाज उठाने वाले वफादारों में भगदड़ का माहौल है. पिछले दो दिनों में कई समाजवादी पार्टी के वफायदार पार्टी का साथ छोड़ अलविदा कह चुके हैं. इनमें से कुछ ने तो बीजेपी का हाथ थाम उनके उम्मीदवार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है. यह आजम के अजेय गढ़ को गहरा धक्का पहुंचाने जैसे स्थिति है.

कभी आजम की आवाज को बुलंद करने वाले नेताओं की फेहरिस्त की बात करें तो आजम खान के मीडिया प्रभारी फसाहत अली खां शानू, सपा से चेयरमैन का चुनाव लड़ चुके ट्रांसपोटर ताहिर, लोहिया वाहनी के जिलाध्यक्ष रह चुके मोईन हसन खां पठान, पूर्व मंत्री व कांग्रेस के बड़े नेता नवेद मियां, आजम के भरोसेमंद नवीन शर्मा, आसिम ऐजाज और इरशाद महमूद सहित काफी लंबी लिस्ट है. पिछले 48 घंटों में इनमें से अधिकांश ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. इन सभी ने बीजेपी प्रत्याशी आकाश सक्सेना को समर्थन दे दिया है जिससे सपा कमजोर जबकि बीजेपी काफी मजबूत स्थिति में आ गई है.

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समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक आजम खान के बुरे वक्त में लोहिया विचार मंच का गठन कर आजम की आवाज उठाने का काम मोईन पठान ने किया था. जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की चुप्पी पर मोईन पठान और फसाहत अली शानू ने ही मीडिया में अपनी आवाज बुलंद की थी. इसके बाद अखिलेश यादव को आजम खान की हिमायत में बोलना पड़ा था. करीब 8 महीने पहले लोकसभा उपचुनाव में जब आजम सीतापुर की जेल में थे, उस दौरान मीडिया पर आजम की आवाज मोईन पठान ही थे. वह आजम की ओर से हर टीवी डिबेट में जाते और आजम खान का पक्ष रखते दिखाई दिए थे, लेकिन अब वे आजम और सपा का साथ छोड़ धुर विरोधी पार्टी में चले गए.

इसकी वजह भी आजम खान ही बताए जा रहे हैं. दरअसल, रामपुर उपचुनाव में मोईन पठान सपा से टिकट मांग रहे थे. उन्हें उम्मीद थी कि आजम खान का विश्वस्त होने की वजह से उन्हें टिकट आसानी से मिल जाएगा और आजम का ये अभेद गढ़ सपा के पास बना रहेगा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने जेल जाने के बाद आजम खान से इस सीट के बारे में कोई सुझाव नहीं मांगा और आजम खान की प्रतिष्ठा से जुड़ी इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने आजम खां के परिवार के किसी भी सदस्य को प्रत्याशी ना बनाकर उनके करीबी आसिम राजा को टिकट थम दिया. आसिम राजा तो लोकसभा उप चुनाव में भी हार गए थे.

दूसरी ओर, मतदान तो सिर्फ चंद रोज रह गए हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी की ओर से कोई बड़ा नेता रामपुर नहीं आ रहा है. इसी वर्ष लोकसभा उपचुनाव में भी ऐसा ही हुआ था. तब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव रामपुर नहीं आए थे और उसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला था. सपा इस सीट पर उपचुनाव हार गई थी. अब फिर से समाजवादी पार्टी के सामने अपना एक बड़ा गढ़ रामपुर सदर सीट बचाने की बड़ी चुनौती है. इसके बाद भी समाजवादी पार्टी का कोई बड़ा नेता रामपुर सदर सीट को लेकर बेहद संजीदा नहीं है.

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इधर, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इस सीट पर प्रचार करने आने वाले हैं. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी लगातार रामपुर में बने हैं तो समय-समय पर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भी पहुंच रहे हैं. इतना ही नहीं योगी सरकार के संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना, अल्पसंख्यक एवं पशुधन प्रसार मंत्री धर्मपाल सिंह, लोक निर्माण विभाग के मंत्री जितिन प्रसाद सहित आधा दर्जन से अधिक मंत्री और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी लगातार रामपुर में डटे रहने के साथ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी आकाश सक्सेना के पक्ष में माहौल बना रहे हैं.

आजम के गढ़ रामपुरी में अखिलेश यादव समेत अन्य बड़े सपाईयों की निष्क्रियता की वजह मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव है जो मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के बाद अखिलेश यादव की नाक का सवाल बन गई है. यहां से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सपा उम्मीदवार है जिसकी जीत पक्की करने के लिए अखिलेश ने ऐडी चोटी का जोर लगा रखा है. यही वजह है कि अखिलेश एंड टीम का पूरा फोकस वहीं लगा हुआ है और रामपुरी हाथ से फिसलती जा रही है. आजम खान के समर्थक अखिलेश की इसी अनदेखी से जरा भी खुश नहीं है

पार्टी छोड़ने पर मोईन पठान का दर्द उनके इसी बयान में स्पष्ट दिखता है, जो उन्होंने मीडिया को दिया. मोईन ने कहा, ‘टिकट नहीं मिला. आजम की उपेक्षा से मन टूट गया. मैं हर चुनाव में पार्टी के लिए ताकत लगाता था. मुझे टिकट मिलता तो आजम की इज्जत और बना देता.’ इधर, सपा के कद्दावर नेता और आजम खान के भरोसेमंद फसाहत अली खां शानू के करीबी कह रहे हैं कि सपा में रहते हुए शानू पर बहुत जुल्म एवं ज्यादती हई थी. वह राहत चाहते थे और इसलिए बीजेपी में चले गए. ये भी बता दें कि बीते 17 सालों से आजम के मीडिया प्रभारी होने के चलते वे सपा का चेहरा रहे. आजम की घेराबंदी के वक्त शानू भी कानूनी पचड़ों में फंसते रहे लेकिन शानू पूरी इमानदारी से आजम खान से जुड़े रहे. अब वे इतना टूट चुके हैं कि बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह के समक्ष उन्होंने बीजेपी ज्वॉइन कर ली.

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सपा के इन वरिष्ठ और मजबूत नेताओं ने जैसे ही बीजेपी का दामन थाम, उनके पीछे कई अन्य नेता भी उसी डगर हो लिए. इधर, जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष मशकूर अहमद मुन्ना जैसे भी कुछ नेता हैं जिन्होंने बीजेपी ज्वॉइन तो नहीं की लेकिन बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन तो दे ही दिया है. ऐसे में बीजेपी को आजम के गढ़ में सीधी सेंध लगाने का अवसर मिल गया है. सभी परिस्थिति देखकर तो यही संभावना जताई जा सकती है कि रामपुर लोकसभा उपचुनाव के बाद अब विधानसभा उपचुनाव में भी आजम खान के साथ समाजवादी पार्टी की किरकिरी होना निश्चित है.

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