Politalks.News/HaryanaPolitics. हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे कुलदीप बिश्नोई ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है. बीते बुधवार को ही बिश्नोई ने आदमपुर विधायक के तौर पर चंडीगढ़ से इस्तीफा दिया था और दूसरे दिन गुरुवार को बिश्नोई ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भाजपा मुख्यालय में उनका पार्टी में स्वागत किया. वहीं सियासी गलियारों में अब आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी के भविष्य को लेकर कानाफूसी शुरू हो गई है. दरअसल, हरियाणा की सियायत में एक नरेटिव यह बन गया है कि बिश्नोई जिसके साथ उसका तय है बंटाधार. पिछले 15 सालों के सियासी ट्रेंड पर नजर डालें तो यह बाद अच्छे से समझ आएगी.
दरअसल, 2007 में बनी कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस से भाजपा ने साल 2014 में तालमेल तोड़ दिया था और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी बड़े अंतर से जीत कर पहली बार सत्ता में आई थी. इससे भी दिलचस्प यह है कि 2016 में कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस में जुड़े थे और उसके बाद पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. यहां तक हरियाणा की राजनीति के क्षत्रप माने जाने वाले भूपेंदर सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंदर हुड्डा अपने सबसे मजबूत गढ़ यानी सोनीपत और रोहतक में लोकसभा का चुनाव हार गए थे. फिर इसके बाद हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस जीत नहीं पाई थी. वही कुलदीप बिश्नोई 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए हैं. भाजपा बिश्रोई से तोड़ कर सत्ता में आई थी तो अब उनको साथ लेने के बाद क्या होगा?
यह भी पढ़े: सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर राजस्थान का दबदबा, ‘बाबोसा’ के बाद जगदीप धनखड़ बने 14वें उपराष्ट्रपति
वहीं दूसरी ओर इसके उलट 2007 में कुलदीप बिश्नोई ने अपने पिता के साथ कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाई थी, लेकिन इसके बाद हुए 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लगातार दूसरी बार सत्ता में आई थी. यानी कुलदीप बिश्नोई जब कांग्रेस से अलग हुए तो कांग्रेस जीत गई थी और 2016 में जब बिश्नोई फिर कांग्रेस में शामिल हुए तो पार्टी हार गई. इसी तरह जब वे भाजपा से अलग हुए तो भाजपा जीत गई और अब वे भाजपा में शामिल हो गए हैं. सो, इतिहास दोहराने की अटकलें लगाई जा रही हैं. सियासी गलियारों में इसे लेकर जबरदस्त चर्चाएं शुरू हो गई हैं और अगर वाकई में 2024 के चुनाव परिणाम भाजपा के विपरीत चले गए तो फिर कुलदीप बिश्नोई के लिए कोई राजनीतिक दल शायद ही अपना दरवाजा खोले.
यहां आपको बता दें कि 2004 के चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री पद के लिए तरजीह दी गई थी, तो इससे नाराज चल रहे कुलदीप बिश्नोई और उनके पिता भजन लाल ने साल 2007 में हरियाणा जनहित कांग्रेस नाम की नई पार्टी लॉन्च की थी. खास बात है कि पार्टी को कुछ सफलता भी मिली, लेकिन अधिकांश विधायकों ने उनका साथ छोड़कर कांग्रेस का रुख कर लिया था. ऐसे में साल 2016 में कुलदीप बिश्नोई ने JHC का कांग्रेस में विलय कर लिया था. इसके बाद हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद पार्टी ने कई राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों की छुट्टी की थी.
यह भी पढ़े: तिरंगा कैसे बना राष्ट्रीय ध्वज? आजादी के 52 साल बाद RSS मुख्यालय पर तिरंगा फहराने का ये हुआ अंजाम?
इसी कड़ी में हरियाणा में भी कांग्रेस आलाकमान ने कुमारी सैलजा से प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी लेकर पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हूडा के खेमे के माने जाने वाले उदयभान को दे दी थी. हालांकि पूर्व कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई इसके प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन पार्टी का फैसला उदयभान के पक्ष में गया. प्रदेश अध्यक्ष की कमान ना सोंपें जाने के कारण कुलदीप बिश्नोई काफी समय से पार्टी आलाकमान से नाराज रहे. बिश्नोई की नाराजगी इस कदर बढ़ गई कि उन्होंने पिछले महीने हुए राज्यसभा चुनाव में पार्टी व्हिप से अलग हटकर बीजेपी प्रत्याशी के समर्थन में वोट किया. जिसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने कुलदीप बिश्नोई को पार्टी के सभी पदों से निष्काषित कर दिया था.
हालांकि सियासी सूत्रों की मानें तो कुलदीप बिश्नोई और भाजपा के रिश्तों की एक और कहानी चर्चा में है. कुलदीप की पार्टी के साथ भाजपा ने 2011 में एक समझौता किया था, जिसके मुताबिक 2014 का चुनाव भाजपा कुलदीप के चेहरे पर लड़ने वाली थी और भाजपा को उनको मुख्यमंत्री बनाना था. तब के पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज और प्रोफेसर गणेशी लाल की मौजूदगी में समझौता हुआ था. लेकिन 2014 में भाजपा ने समझौते को कूड़ेदान में डाल दिया था. बताया जा रहा है कि अब फिर एक समझौता हुआ है, जिसके तहत कुलदीप को 2024 में हिसार लोकसभा सीट मिलेगी और उनके बेटे व पत्नी को एक-एक विधानसभा सीट मिलेगी.
यह भी पढ़े: ED पड़ी पीछे तो ‘AAP’ को याद आई CBI, 1 साल पुराने बैजल के फैसले पर उंगली उठाई, सियासत गरमाई
गौरतलब है कि, बिश्नोई परिवार का गढ़ माना जाता है हिसार जिला, जहां की आदमपुर सीट से आज तक उनका परिवार कभी नहीं हारा है. कुलदीप बिश्नोई के इस्तीफा देने के बाद बताया जा रहा है कि उस सीट से वे अपने बेटे भव्य बिश्नोई को भाजपा की टिकट से लड़ाएंगे. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा ने उनको वहां से हराने का ऐलान किया है तो कुलदीप ने हुड्डा को आदमपुर सीट से लड़ने की चुनौती दी है.