विशेष: क्या गुजरात विधानसभा चुनाव से पूरा होगा ‘आप’ का राष्ट्रीय पार्टी बनने का सपना?

राजनीति में कदम रखने के केवल 10 सालों में नेशनल दर्जा प्राप्त पार्टी बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही आम आदमी पार्टी, दिल्ली के पिछले दो विस चुनावों और हाल ही में पंजाब चुनाव में झाडू ने विपक्ष की जो सफाई की है, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, अब देशभर में एक सिंबल हासिल करने पर टिकी हैं पार्टी की निगाहें

arvind kejriwal aam aadmi party
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Politalks Special Report on AAP. आम आदमी पार्टी को राजनीति में उतरे हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है. ज्यादा पीछे नहीं जाना पड़ेगा जब आप पार्टी ने 2013-14 के दिल्ली चुनाव में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बादशाहत खत्म करते हुए सत्ता में भागीदारी हासिल की थी और 6 महीने बाद ही फिर से हुए आम चुनावों में एक छत्र जीत हासिल कर सत्तारूढ़ होने का गौरव हासिल किया. तब से अब तक करीब करीब 10 साल हुए हैं आप पार्टी को राजनीति में उतरे हुए और केवल इतने कम वक्त में उन्होंने दिल्ली के राजनीति शिखर पर पहुंचने का रास्ता तय कर लिया है. दिल्ली के पिछले दो विधानसभा चुनावों और हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनाव में झाडू ने विपक्ष की जो सफाई की है, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है.

आपको बता दें, अब आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनने की ओर कदम बढ़ा रही है और इसका रास्ता गुजरात से होकर गुजरता दिख रहा है. हालांकि केवल 10 वर्षों में एक क्षेत्रीय पार्टी से राष्ट्रीय पार्टी बनने का सफर आसान नहीं होता, लेकिन आम आदमी पार्टी ने कर दिखाया है. इसका श्रेय केवल एक इंसान को जाता है – अरविंद केजरीवाल, पार्टी के मुखिया और संयोजक. वे मौजूदा वक्त में दिल्ली के लगातार तीसरी बार सीटिंग मुख्यमंत्री भी हैं.

आम आदमी पार्टी के नेशनल पार्टी बनने की संभावनाओं पर चर्चा करें, इससे पहले यह जानना भी जरूरी है कि आखिर एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल बनने के लिए क्या और कितने पायदान हैं. दरअसल, किसी भी दल को राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए 4 शर्तें होती हैं:-

1.कोई दल चार या इससे अधिक राज्यों में प्रादेशिक दल की मान्यता रखे.

2.किसी भी दल को क्षेत्रीय दल बनने के लिए आठ फीसदी वोटों की जरूरत होती है.

3.दल अगर लोकसभा चुनाव में तीन राज्यों के दो फीसदी सीटें जीत जाए.

4.कोई पार्टी लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा में 6 फीसदी वोट हासिल करे या विधानसभा चुनाव में छह फीसदी वोट और दो सीटें प्राप्त कर ले. एक विकल्प यह भी है कि पार्टी विधानसभा में कम से कम तीन सीटें प्राप्त कर ले.

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इनमें से अगर किसी पार्टी ने एक भी शर्त पूरी कर ली तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है. अब आपको ये भी बता दें कि फिलहाल देश में राष्ट्रीय दलों की श्रेणी में 7 पार्टियां आती हैं जिन्हें नेशनल पार्टी होने का तमगा हासिल है:-

  1. भाजपा (BJP) यानी भारतीय जनता पार्टी, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हैं.
  2. कांग्रेस (INC) यानी भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं.
  3. बसपा (BSP) यानी बहुजन समाज पार्टी, जिसका मुखिया मायावती हैं.
  4. भाकपा (CPI) यानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, कॉमरेड माणिक पार्टी अध्यक्ष हैं.
  5. माकपा (CPIM) यानी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, सीताराम येचुरी पार्टी के महासचिव हैं.
  6. एनसीपी (NCP) यानी नेशलिस्ट कांग्रेस पार्टी, शरद पवार पार्टी अध्यक्ष हैं.
  7. टीएमसी (TMC) यानी तृणमूल कांग्रेस, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पार्टी अध्यक्ष हैं.

अब फिर से लौटते हैं आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनने के सफर पर. उक्त चार या पांच शर्तों पर नजर डालें तो आप पार्टी फिलहाल के लिए इनमें से किसी भी टर्म पर खरा नहीं उतरती. पार्टी का जनआधार केवल दिल्ली और पंजाब तक सीमित है. लोकसभा में नेतृत्व न के बराबर है. अन्य राज्यों के चुनावों में पार्टी के पास वोट बैंक और सीट दोनों ही नहीं हैं लेकिन गुजरात चुनावों में ऐसा होते दिख रहा है. यानी सीधे मायनों में कहें तो आम आदमी पार्टी गुजरात के रास्ते से होकर राष्ट्रीय दल बनने की राह पर कदम बढ़ा रही है.

आम आदमी पार्टी गुजरात चुनावों के जरिए नेशनल पार्टी प्राप्त करने की चौथी शर्त पूरा कर सकती है. यानी कोई पार्टी विधानसभा चुनाव में 6% वोट और दो सीटें प्राप्त कर ले. ऐसा इसलिए हो सकता है कि पार्टी को दिल्ली और पंजाब में पहले ही स्थानीय पार्टी होने का सर्टिफिकेट हासिल है. दिल्ली के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 70 में से 62 सीटों पर कब्जा जमाया हुआ है. इस तरह, इसी साल पंजाब चुनावों में आप को पंजाब में 117 में से 92 विधानसभा सीटों पर जीत मिली है.

पंजाब में पार्टी को 42 फीसदी वोट शेयर मिले. इससे पहले आप ने पहली बार पंजाब चुनाव लड़ते हुए 2017 में 20 सीटें हासिल की थी. उस वक्त आप को पंजाब की सत्ता तो नहीं मिली थी लेकिन वह मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरे थे. तभी से आम आदमी पार्टी वहां लगातार मेहनत कर रही थी और आज नतीजे सब के सामने हैं.

अब दिल्ली के बाद पंजाब दूसरा ऐसा राज्य है, जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है. इस बार गोवा विधानसभा चुनाव में भी केजरीवाल एंड पार्टी ने अपना खाता खोल लिया है और यहां पार्टी ने 2 सीटों पर जीत हासिल की है. गोवा विधानसभा चुनाव में आप को 6.8 फीसद वोट और दो सीटों पर जीत मिली हैं. हालांकि पार्टी उत्तराखंड में कुछ खास नहीं कर सकी. अब आप की नजर हाल में हुए हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव और अगले महीने होने जा रहे गुजरात विस चुनावों पर है. यहां के प्रदर्शन से यह तय हो जाएगा कि आप को नेशनल पार्टी का दर्जा मिलेगा या नहीं.

बात करें हिमाचल की तो यहां पार्टी मेहनत तो कर रही है लेकिन उन्हें यहां सियासी जमीन तलाशने में थोड़ा सा वक्त लगेगा. यहां मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच में रहेगा. कुछ सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बनने की संभावना है लेकिन सीटें जीतने की संभावना क्षणिकभर है. पिछले हिमाचल चुनावों में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा पार्टी ने यहां भाग्य आजमाया था लेकिन वे खाता तक न खोल सके. उनके पास 0.5 फीसदी वोट जमा हुए. हालांकि आप की स्थिति इतनी बुरी नहीं होगी लेकिन 6 फीसदी वोट भी नहीं मिलने वाले हैं.

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अब आता है गुजरात, यहां से आम आदमी पार्टी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने का सफर भी पूरा हो जाएगा. गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों ने पार्टी ने 33 सीटों पर चुनाव लड़कर स्थानीय लोगों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है. हालांकि उन्हें वोट बैंक न के बराबर मिला. इस बार पार्टी की तैयारी पहले से कहीं गुना बेहतर है और केजरीवाल एंड पार्टी ने यहां की सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए कमर कस रखी है. पिछले गुजरात चुनावों में कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हुई पाटीदार नेताओं की तिगड़ी टूट चुकी है और कोई असरदार नेता न होने के चलते कांग्रेस अब यहां हासिए पर विराजमान है. यहां आप को 6 फीसद वोट बैंक और दो से अधिक सीटें मिलना तय है.

अब दिल्ली, पंजाब और गोवा के बाद गुजरात ऐसा चौथा राज्य बन जाएगा जहां आप को 2 से अधिक विस सीटें और 6 फीसद से अधिक वोट बैंक हासिल होगा. ऐसे में आम आदमी पार्टी को गुजरात चुनावों के बाद राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी का तमगा मिलना तय है.

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अब सवाल ये उठता है कि आखिर नेशनल पार्टी बनने के फायदें क्या हैं? इससे पहले आपको बता दें कि देश में तीन तरह की राजनीतिक पार्टियां हैं:- राष्ट्रीय पार्टी, राज्य स्तरीय पार्टी और क्षेत्रीय पार्टी. देश में करीब 400 राजनीतिक पार्टियां हैं. इनमें से महज 7 को ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है. इन सात के अलावा, राज्य स्तर के 35 राजनीतिक दल जबकि 350 से ज्यादा क्षेत्रीय दल मौजूद हैं.

अगर कोई राजनीतिक दल, राष्ट्रीय पार्टी बन जाता है तो इसका सबसे पहला फायदा मान्यता को लेकर है. राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो जाता है. राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद अखिल भारतीय स्तर पर एक आरक्षित चुनाव चिह्न मिल जाता है. नोमिनेशन फाइल करने के लिए उम्मीदवारों के प्रस्तावकों की संख्या बढ़ सकती है. साथ ही नेशनल मीडिया पर फ्री एयरटाइम मिल जाता है, जिससे पार्टी की पहुंच बढ़ने में आसानी होती है.

देखा जाए तो फर्श से अर्श तक का सफर तय करने में आम आदमी पार्टी को काफी सारी चुनौतियों से गुजरना पड़ा है. शुरूआत में पार्टी में नोन पॉलिटिक्स लोगों की भीड़ शामिल थी, जो अब राजनीति की चौसर पर अपने मुहरे फिट करने में महारथ हासिल कर चुके हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल भी उनमें से एक हैं. अब देखना ये है कि पार्टी गुजरात में संभावित प्रदर्शन कर पाती है भी या नहीं. अगर ऐसा नहीं होता है, जिसकी संभावना काफी कम है, तो अगले साल होने वाले मध्यप्रदेश और राजस्थान सहित दो हिन्दी भाषी राज्यों के विस चुनावों में आम आदमी पार्टी को सियासी जमीन एवं 6 फीसदी वोट हासिल करना आसान नहीं होगा.

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